Gopal Krishna Gokhle Birth Anniversary: महात्मा गांधी व जिन्ना के राजनैतिक गुरु थे गोपाल कृष्ण गोखले

Gopal Krishna Gokhale
Prabhasakshi

महान समाज सुधारक, शिक्षाविद, नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले का 9 मई को जन्म हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा गांधीजी व जिन्ना उन्हें अपना राजनैतिक गुरु मानते थे।

भारत देश करीब 200 सालों तक गुलामी की जंजीरों में बंधा रहा। न जाने कितने कितने शहीदों के बलिदान के बाद हमारे देश को आज़ादी मिली। देश की आजादी में तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अहम भूमिका निभाई है। ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ने वाले भारतीयों में से एक थे ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले थे। वह स्वतंत्रता संग्राम के सामाजिक और राजनैतिक नेता भी थे। बता दें कि गोपाल कृष्ण गोखले का आज 9 मई को जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में...

जन्म और शिक्षा

गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म ला रत्नागिरी, तालुका गुहागर के कोथलुक नामक गांव में 9 मई 1866 को हुआ था। वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। इसलिए उनके परिजन चाहते थे कि गोखले अच्छी शिक्षा प्राप्त करें। जिससे कि वह ब्रिटिश राज में क्लर्क अथवा कोई छोटी – मोटी नौकरी कर सकें। शुरूआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद गोखले ने साल 1884 में Elphinstone College से ग्रेजुएशन पूरा किया।

बाल गंगाधर तिलक से प्रतिद्वंद्विता

साल 1889 में गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने। वह हमेशा आम जनता की परेशानियों को दूर करने के लिए प्रयासरत रहते थे। उनके विचार संतुलित होते थे। कुछ समय बीतने के बाद गोखले बाल गंगाधर तिलक के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जॉइंट सेक्रेटरी बन गये। बता दें कि गोखले और तिलक में काफी समानताएं थी। जिसके बाद भी दोनों में प्रतिद्वंद्विता देखने को मिली। जब गोखले और तिलक कांग्रेस के सदस्य बनें तो उन दोनों का उद्देश्य देश को आजादी दिलाने के साथ ही  आम भारतीय को मुश्किलों से उबारना भी था।

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उस दौरान बाल विवाह के संबंध में ब्रिटिश सरकार ने एक कानून पास किया था। इस कानून से गोखले और तिलक एकमत नहीं थे। यहीं से उन दोनों में प्रतिद्वंद्विता की शुरूआत हो गई। जब साल 1905 में गोखले कांग्रेस के प्रेसिडेंट बन गए तो कांग्रेस 2 गुटों में बट गई। जहां तिलक ब्रिटिश सरकार को क्रांतिकारी कार्यों के साथ खदेड़ना चाहते थे। तो वहीं दूसरी ओर गोखले शांतिपूर्ण वार्ता और समन्वयवादी नेता थे। 

सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी की स्थापना

जब 1905 में गोखले कांग्रेस के प्रेसिडेंट बन गए तो वह राजनीतिक ताकत के चरम पर थे। इसी दौरान गोखले ने सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की। इसकी स्थापना के पीछे उनका उद्देश्य भारतीयों को शिक्षित किया जाना था। गोखले के मुताबिक जब भारतीय शिक्षित होंगे तो वे अपने देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भलीभांति समझने के साथ उसका निर्वहन भी करेंगे। भारतीयों के विकास के लिए तत्कालीन शिक्षण प्रणाली और इंडियन सिविल सर्विसेस पर्याप्त नहीं थी। इसके बाद इस सोसाइटी ने कई स्कूल, कॉलेज की स्थापना की। जिसमें रात में कक्षाएं लगाई जाती थीं। 

महात्मा गांधी व जिन्ना के गुरु

गोपाल कृष्ण गोखले शुरूआती वर्षों में महात्मा गांधी के परामर्शदाता रहे। वहीं साल 1912 में महात्मा गांधी के आमंत्रण पर उन्होंने दक्षिण भारत की यात्रा भी की थी। बता दें कि उस दौरान गांधीजी नए-नए बैरिस्टर बने थे। दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलन के बाद भारत वापस आए थे। गांधीजी ने भारत और भारतीयों के विचारों के बारे में समझने के लिए गोखले का साथ चुना। गोखले के परामर्श पर गांधीजी ने कार्य भी किया। साल 1920 में गांधीजी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के लीडर बन गये। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में गोखले को अपना पसंदीदा लीडर बताया। साथ ही वह एक निपुण राजनीतिज्ञ भी थे। इसके अलावा गोखले पाकिस्तान के संस्थापल मोहम्मद अली जिन्ना के भी परामर्शदाता थे। जिन्ना को 'मुस्लिम गोखले' भी कहा जाता था। 

भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन

भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर गोखले का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। क्योंकि वह एक समन्वयवादी नेता थे। जिसके कारण ब्रिटिश इंपीरियल के साथ उनका सामंजस्य पूर्ण व्यवहार था। जिसका सबसे गहरा प्रभाव पड़ा। गोखले का मानना था कि जब भारतीय शिक्षित होंगे तो उनका पूर्ण विकास हो पाएगा। गोखले पश्चिमी शिक्षण प्रणाली से भी बहुत प्रभावित थे। लेकिन पश्चिमी शिक्षण प्रणाली से गांधीजी सहमत नहीं थे। इसलिए गांधी जी ने उसे अस्वीकार कर दिया। हालांकि आजादी के बाद साल 1950 में यही प्रणाली अपनाई गई। 

गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु 

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी गोखले राजनैतिक रूप से सक्रीय रहे। जिसमें गोखले ने विदेश यात्राएं और विदेशों में होने वाले आंदोलनों और सुधार कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। वहीं 19 फरवरी 1915 को 49 वर्ष की आयु में गोपाल कृष्ण गोखले का निधन हो गया। गोखले के निधन पर उनके प्रतिद्वंदी रहे बाल गंगाधर तिलक ने कहा खा कि वह भारत का हीरा, श्रमिकों का राजकुमार और महाराष्ट्र का आभूषण थे।

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