बचपन से ही सांसारिक सुखों से विमुख थे गौतम बुद्ध
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी नामक स्थान पर बैसाख पूर्णिमा को हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो शाक्य राज्य कपिलवस्तु के शासक थे। गौतम बुद्ध की माता का नाम महामाया था जो देवदह की राजकुमारी भी थी।
बौद्ध धर्म के संस्थापक, महान दार्शनिक, धर्मगुरू गौतम बुद्ध ने अपने विचारों से संसार को नयी राह दिखाई। बैसाख महीने की पूर्णिमा को उनका जन्मदिन है तो आइए इस अवसर पर हम आपको गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित विषयों पर चर्चा करते हैं।
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गौतम बुद्ध का बचपन
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई.पू. में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी नामक स्थान पर बैसाख पूर्णिमा को हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो शाक्य राज्य कपिलवस्तु के शासक थे। गौतम बुद्ध की माता का नाम महामाया था जो देवदह की राजकुमारी भी थी। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ एकान्तप्रिय, मननशील तथा दयावान थे। गौतम बुद्ध के पिता शाक्यों के राजा थे इसलिए बुद्ध को शाक्य मुनि भी कहा जाता है। गौतम बुद्ध के जन्म के बाद उनकी माता की मृत्यु हो गयी थी तब उनकी मौसी गौतमी प्रजापति ने पाला था।
जब हंस को बचाया राजकुमार सिद्धार्थ ने
राजकुमार सिद्धार्थ बचपन से ही दयावान प्रवृत्ति के थे। उनमें संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए करूणा कूट-कूट कर भरी थी। वह किसी प्राणी को दुखी नहीं देख पाते थे। जब वह घोड़ों की दौड़ होती तो वह उन्हें थकने नहीं देते और रेस को बीच में रोक देते। किसी भी प्रकार के खेल में सिद्धार्थ खुद हार जाते लेकिन किसी भी हार का दुख नहीं झेलने देते। एक बार सिद्धार्थ जंगल में घूम रहे थे तभी उन्हें एक घायल हंस दिखी दिया। उन्होंने हंस को उठा कर पानी पिलाया और घाव को साफ करने लगे। तभी उनका चचेरा भाई देवदत्त आया और उसने कहा कि यह हंस उसका है और उसे वापस कर दें। इस बात से सिद्धार्थ नाराज हुए और उन्होंने कहा कि हंस को मैंने बचाया है मैं नहीं दूंगा। इस बात पर देवदत्त महाराजा शुद्धोदन के पास गया और सिद्धार्थ के हंस नहीं देने की बात कही। राजकुमार सिद्धार्थ ने कहा कि उन्होंने हंस को उन्होंने बचाया और मारने वाले से बचाने वाले का अधिकार अधिक होता है इसलिए यह घायल हंस देवदत्त को मैं नहीं दूंगा। महाराजा शुद्धोदन को यह बात बहुत पसंद आयी और उन्होंने हंस सिद्धार्थ को दे दिया।
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सांसारिक जीवन भी न रोक सका गौतम बुद्ध को
गौतम बुद्ध को बचपन से सांसारिक वस्तुओं के प्रति विशेष अनुराग नहीं था। वह सदैव सांसारिक सुखों के प्रति विरक्ति दिखाते हैं। इसलिए उनके माता-पिता ने बचपन से ही उनके लिए भोग-विलाग का सबसे उत्तम प्रबंधन किया। वे लोग राजकुमार सिद्धार्थ को सदैव सांसारिक सुखों में लिप्त रखने का प्रयास करते। राजकुमार को तीन ऋतुओं में रहने लायक तीन सुंदर महल बनवाए गए। इन तीनों महलों में विविध प्रकार की सुख-सुविधाएं रखी गयीं। उनके मनोरंजन हेतु सबसे अच्छे नर्तकी तथा गायक की व्यवस्था की गयी। साथ ही विभिन्न प्रकार के दास-दासी भी उनकी सेवा में रखे गए। विवाह के कुछ दिनों बाद गौतम बुद्ध को एक पुत्र भी पैदा हुआ जिसका नाम उन्होंने राहुल रखा। लेकिन यशोधरा जैसी सुंदर पत्नी तथा अबोध बालक भी गौतम बुद्ध को रोक नहीं सके और वह एक रात दोनों को सोता हुआ छोड़कर महल से बाहर चले गए। उसके बाद उन्होंने जंगल में तपस्या की तथा अनेक वर्षों के तप के पश्चात उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ।
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जानें गौतम बुद्ध के उपदेशों के बारे में
गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर उपदेश दिया। उन्होंने पाली भाषा में अपना उपदेश दिया था। उन उपदेशों का सार कुछ इस प्रकार है-
- संसार दुखमय है, बुढ़ापा, रोग तथा मृत्यु जीव को बहुत दुख देते हैं।
- संसार में जो दुख व्याप्त है उसका कारण हैं जीव की असीमित इच्छाएं।
- व्यक्ति को अपनी तृष्णाओं पर नियंत्रण करना चाहिए। तृष्णाओं पर नियंत्रण इंसान को दुखों से दूर रखता है।
- सांसारिक दुखों को दूर करने के लिए गौतम बुद्ध ने आठ मार्ग बताए हैं, इन्हें आष्टांगिक मार्ग की संज्ञा दी जाती है। आष्टांगिक मार्ग के तहत इच्छा तथा हिंसात्मक विचारों को त्यागना, सत्य बोलना तथा सही तरीके से काम करने को सम्मिलित किया जाता है। जीवन यापन हेतु आजीविका कमाने का सही तरीका, गलत भावनाओं से दूर रहना, अच्छा आचरण तथा किसी विषय पर एकाग्रता को बनाए रखना आष्टांगिक मार्ग में शामिल किया जा सकता है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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