नैतिकता की मिसाल थे लाल बहादुर शास्त्री, आजीवन माँ भारती की सेवा की
लाल बहादुर शास्त्री ने जनरल डिब्बे के यात्रियों को भी सुविधाएं देने का निर्णय लिया। रेल के जनरल डिब्बों में पहली बार पंखा लगवाते हुए रेलों में यात्रियों को खानपान की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पैंट्री की सुविधा भी उन्होंने शुरू करवाई।
लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री, गृहमंत्री और रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद संभाल चुके थे। एक बार वे रेल के ए.सी. कोच में सफर कर रहे थे। उस दौरान वे यात्रियों की समस्या जानने के लिए जनरल बोगी में चले गए। वहां उन्होंने अनुभव किया कि यात्रियों को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे वे काफी नाराज हुए और उन्होंने जनरल डिब्बे के यात्रियों को भी सुविधाएं देने का निर्णय लिया। रेल के जनरल डिब्बों में पहली बार पंखा लगवाते हुए रेलों में यात्रियों को खानपान की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पैंट्री की सुविधा भी उन्होंने शुरू करवाई। एक अन्य अवसर पर रेल में यात्रा करते वक्त शास्त्री जी उस समय भड़क गए थे, जब विशेष रूप से उनके लिए रेल कोच में कूलर लगाने की व्यवस्था की गई। शास्त्री जी उस समय रेल मंत्री थे और बम्बई जा रहे थे। गाड़ी चलने पर शास्त्री जी अपने पीए से बोले कि बाहर तो बहुत गर्मी है लेकिन डिब्बे में काफी ठंडक है। तब उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा, सर, डिब्बे में कूलर लग गया है, इसीलिए डिब्बे में इतनी ठंडक है। शास्त्री जी को गुस्सा आया और उन्होंने अपने पीए से पूछा कि बगैर मुझसे पूछे कूलर कैसे लग गया? आप लोग कोई भी कार्य करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं? क्या इतने सारे लोग, जो इस गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गर्मी नहीं लगती होगी? उन्होंने कहा कि होना तो यह चाहिए था कि मुझे भी जनरल डिब्बे में ही सफर करना चाहिए था लेकिन वह संभव नहीं है किन्तु जितना हो सकता है, उतना तो किया ही जाना चाहिए। उन्होंने सख्त लहजे में पीए को निर्देश दिया कि अगले स्टेशन पर गाड़ी जहां भी रूके, वहां सबसे पहले इस कूलर को निकलवाइए। इस प्रकार मथुरा स्टेशन पर शास्त्री जी कूलर हटवाकर ही माने।
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1964 में शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री बने, तब उन्हें सरकारी आवास के साथ इंपाला शेवरले कार भी मिली थी लेकिन उसका उपयोग वे बहुत ही कम किया करते थे। वह गाड़ी किसी राजकीय अतिथि के आने पर ही निकाली जाती थी। एक बार की बात है, जब शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री किसी निजी कार्य के लिए यही सरकारी कार उनसे बगैर पूछे निकालकर ले गए और अपना काम पूरा करने के पश्चात् कार चुपचाप लाकर खड़ी कर दी। जब शास्त्री जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाकर पूछा कि गाड़ी कितने किलोमीटर चलाई गई? ड्राइवर ने बताया, चौदह किलोमीटर! उसके बाद शास्त्री जी ने उसे निर्देश दिया कि रिकॉर्ड में लिख दो, ‘चौदह किलोमीटर प्राइवेट यूज’। शास्त्री जी इतने से ही शांत नहीं हुए, उन्होंने पत्नी ललिता को बुलाया और निर्देश दिया कि निजी कार्य के लिए गाड़ी का इस्तेमाल करने के लिए उनके निजी सचिव से कहकर वह सात पैसे प्रति किलोमीटर की दर से सरकारी कोष में पैसे जमा करवा दें।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1940 के दशक में लाला लाजपत राय की संस्था ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ द्वारा गरीब पृष्ठभूमि वाले स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को जीवनयापन हेतु आर्थिक मदद दी जाया करती थी। उसी समय की बात है, जब लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे। उन्होंने उस दौरान जेल से ही अपनी पत्नी ललिता को एक पत्र लिखकर पूछा कि उन्हें संस्था से पैसे समय पर मिल रहे हैं या नहीं और क्या इतनी राशि परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त है? पत्नी ने उत्तर लिखा कि उन्हें प्रतिमाह पचास रुपये मिलते हैं, जिसमें से करीब चालीस रुपये ही खर्च हो पाते हैं, शेष राशि वह बचा लेती हैं। पत्नी का यह जवाब मिलने के बाद शास्त्री जी ने संस्था को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने धन्यवाद देते हुए कहा कि अगली बार से उनके परिवार को केवल चालीस रुपये ही भेजे जाएं और बचे हुए दस रुपये से किसी और जरूरतमंद की सहायता कर दी जाए।
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प्रधानमंत्री बनने के बाद शास्त्री जी जब पहली बार अपने घर काशी आ रहे थे, तब पुलिस-प्रशासन उनके स्वागत के लिए चार महीने पहले से ही तैयारियों में जुट गया था। चूंकि उनके घर तक जाने वाली गलियां काफी संकरी थी, जिसके चलते उनकी गाड़ी का वहां तक पहुंचना संभव नहीं था, इसलिए प्रशासन द्वारा वहां तक रास्ता बनाने के लिए गलियों को चौड़ा करने का निर्णय लिया गया। शास्त्री जी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने तुरंत संदेश भेजा कि गली को चौड़ा करने के लिए किसी भी सूरत में कोई भी मकान तोड़ा न जाए, मैं पैदल ही घर जाऊंगा।
- श्वेता गोयल
(लेखिका शिक्षिका एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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