Dadabhai Naoroji Birth Anniversary: भारतीय राजनीति के पितामह थे दादाभाई नौरोजी, कहे जाते थे भारत के ग्रैंड ओल्ड मैन

Dadabhai Naoroji
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मुंबई के एक गरीब पारसी परिवार में 04 सितंबर 1825 को दादाभाई नौरोजी का जन्म हुआ था। वह पक्के राष्ट्रवादी, लेखक और बेहतरीन वक्ता थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से ही उन्होंने देश की आजादी की मुहिम की शुरूआत की थी।

आज ही के दिन यानी की 04 सितंबर को भारतीय राजनीति के पितामह कहे जाने वाले दादाभाई नौरोजी का जन्म हुआ था। जिस वक्त भारत अंग्रेजों के अधीन था, उस दौरान दादाभाई नौरोजी हाउस ऑफ कॉमंस के सदस्य थे। साल 1982 में नौरोजी ने ब्रिटेन में जीत हासिल कर वहां की संसद का हिस्सा बने थे। इस दौरान उन्होंने पूरी दुनिया के सामने अंग्रेजों के भ्रष्टाचार को लाकर देश के लोगों को जगाने का काम किया। देश के प्रति उनके योगदान को देखते हुए उनको 'ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया' भी कहा जाता है। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर दादाभाई नौरोजी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म 

मुंबई के एक गरीब पारसी परिवार में 04 सितंबर 1825 को दादाभाई नौरोजी का जन्म हुआ था। वह पक्के राष्ट्रवादी, लेखक और बेहतरीन वक्ता थे। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन से ही उन्होंने देश की आजादी की मुहिम की शुरूआत की थी। साल 1852 में नौरोजी ने पहली राजनीतिक पार्टी द बांबे एसोसिएशन भी बनाई। वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाने में भी उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई थी। वह तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे।

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विदेश में बनें भारतीयों की आवाज

यह उस समय की बात है जब भारत अंग्रेजों के अधीन था और ब्रिटेन में भारतीय लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। तब दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन में भारतीयों की आवाज बनें और उन्होंने भारत में ब्रिटिश राज में होने वाली दिक्कतों को लेकर अभियान चलाया। उनके इस कदम से ब्रिटेन में एक ऐसा तबका बन गया था, जो भारत में अंग्रेजी शासन के तरीकों पर सवाल उठाने लगा था। दादाभाई नौरोजी के इस अभियान का नैतिक असर ब्रिटेन की संसद में भी दिखने लगा था। 

ब्रिटिश पीएम ने की थी नस्लीय टिप्पणी

इस दौरान दादाभाई नौरोजी ब्रिटेन में कई चुनाव लड़े, लेकिन उनको हमेशा हार का सामना करना पड़ा। वहीं साल 1886 में उन्होंने लंदन के पास की हालबॉर्न सीट से लिबरल पार्टी के टिकट चुनावी मैदान में खड़े हुए। इस बार भी उनको हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद ब्रिटेन के तत्कालीन पीएम लार्ड सेल्सबरी ने उनपर नस्लीय टिप्पणी की थी। ब्रिटिश पीएम सेल्सबरी ने कहा कि ब्रिटिश में चुनावी इलाके किसी ब्लैक मैन के लिए अभी तैयार नहीं हैं।

अपमानजनक नस्लीय टिप्पणी से खुद पीएम सेल्सबरी अपने ही देश में मीडिया में मजाक के पात्र बन गए और दादाभाई चर्चा में आ गए। ब्रिटिश देश में दादाभाई को जिस पहचान की जरूरत थी, वह उन्हें विवादों के कारण मिल गई। इसी दौरान फ्लोरेंस नाइटेंगल समेत कई अभियानों को दादाभाई ने समर्थन दिया या उनसे जुड़ गए। धीरे-धीरे उन्होंने ब्रिटेन के लोगों के दिलों में जगह बनाई और लोग उनकी बातों को ध्यान से सुनने लगे थे।

ऐसे बनें सांसद

इसके बाद साल 1892 में चुनाव के दौरान लिबरल पार्टी ने दादाभाई को फिन्सबरी सेंट्रल से मैदान में उतारा। यह इलाका श्रमिकों और कामकाजी बाहुल्य था। वहीं दादाभाई ने इस चुनाव को जीतकर इतिहास रच दिया था। चुनाव जीतकर वह भारतीय के तौर पर हाउस ऑफ कॉमंस पहुंचे और एक मुखर सांसद बनें। वह लगातार ब्रिटिश संसद में भारत की आजादी के साथ ही अधिकार और दिक्कतों को उठाते रहे। हालांकि साल 1895 के चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा। लेकिन दादाभाई नौरोजी पूरी जिंदगी ब्रिटेन में भारत की आवाज बने रहे।

कांग्रेस के बने अध्यक्ष

बता दें कि दादाभाई नौरोजी तीन बार कांग्रेस के अध्ययक्ष चुने गए थे। कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वह साल 1906 में पार्टी के अध्यक्ष चुने गए। इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में स्वराज को सबसे ज्यादा महत्व दिया था।

मृत्यु

वहीं 30 जून 1917 को बम्बई में दादाभाई नौरोजी का निधन हो गया था।

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