साधुओं की भीड़ पहुंच गई संसद और पीएम इंदिरा ने गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा को पद से हटा दिया

Gulzari Lal Nanda
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jul 4 2022 1:13PM

गुलजारी लाल नंदा कभी भी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने, बल्कि उन्होंने दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। पहली बार, 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद और फिर दो साल बाद, लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद।

4 जुलाई 1898 को अविभाजित पंजाब के सियालकोट में जन्मे गुलजारीलाल नंदा एक अर्थशास्त्री और राजनेता, जिन्होंने 13 दिनों में दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। नंदा ने लाहौर, आगरा और इलाहाबाद में अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जिसके बाद 1920 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक रिसर्च स्कॉलर के रूप में काम किया। फिर  वे बॉम्बे (वर्तमान मुंबई) के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी। नंदा श्रम कल्याण के कार्यों में शामिल थे और ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा भी रहे। वे 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और कई मौकों पर जेल भी गए।

उनकी 124वीं जयंती पर आपको भारत के पूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री के बारे में कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताते हैं:

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- नंदा कभी भी भारत के प्रधानमंत्री नहीं बने, बल्कि उन्होंने दो बार देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। पहली बार, 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद और फिर दो साल बाद, लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद।

- श्रम अधिकारों के पैरोकार गुलजारीलाल नंदा अपने शुरुआती दिनों से ही श्रम कल्याण के कार्यों में शामिल थे। उन्होंने मई 1947 में भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

- 1957 के आम चुनाव के बाद बनी सरकार में नंदा को श्रम मंत्री नियुक्त किया गया था। उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था।

- संत स्वामी करपात्री जी महाराज लगातार गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून की मांग कर रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार इस तरह का कोई कानून लाने पर विचार नहीं कर रही थी। इससे संतों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा था। उनके आह्वान पर सात नवंबर 1966 को देशभर के लाखों साधु-संत अपने साथ गायों-बछड़ों को लेकर संसद के बाहर आ डटे थे। संतों को रोकने के लिए संसद के बाहर बैरीकेडिंग कर दी गई थी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार को यह खतरा लग रहा था कि संतों की भीड़ बैरीकेडिंग तोड़कर संसद पर हमला कर सकती है। फिर देखते ही देखते मामला हाथ से निकल गया और गोलीबारी तक पहुंच गई। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नंदा को पद से हटा दिया था, जिसमें आठ लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे।

- सत्तारूढ़ कांग्रेस के सदस्य होने के बावजूद, नंदा ने 1975 में आपातकाल लगाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इस कदम ने भारत में लोकतंत्र लाने के बलिदान को निरर्थक बना दिया।

- नंदा एक साधारण जीवन शैली जीते थे और उनके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी।

- उन्हें 1997 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

- अभिनय आकाश

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