जीव-जन्तुओं में क्रमविकास के सिद्धांत को चार्ल्स डार्विन ने किया था प्रतिपादित

charles darwin

24 नवम्बर 1859 को चार्ल्स डार्विन की एक किताब प्रकाशित हुई थी ‘ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ जिसमें डार्विन ने जीवों के विकास की इतनी सटीक व्याख्या की कि लोगों को यह स्वीकारना पड़ा कि जीवों का विकास किसी चमत्कार से नहीं बल्कि क्रमबद्ध तरीके से हुआ है।

चार्ल्स डार्विन एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के साथ ही एक महान दार्शनिक, चिंतक, अर्थशास्त्री और यहां तक की कुशल राजनीतिक भी थे। डार्विन ने उस समय दुनिया को एक क्रांतिकारी वैज्ञानिक नजरिया दिया जब लोग धार्मिक मान्यताओं से विलग कुछ भी मानने को तैयार न थे।

24 नवम्बर 1859 को चार्ल्स  डार्विन की एक किताब प्रकाशित हुई थी ‘ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ जिसमें डार्विन ने जीवों के विकास की इतनी सटीक व्याख्या की कि लोगों को यह स्वीकारना पड़ा कि जीवों का विकास किसी चमत्कार से नहीं बल्कि क्रमबद्ध तरीके से हुआ है। सभी जीव एककोशीय जीवों से विकसित हुए हैं। डार्विन के विकासवाद का सिद्धांत आगे चलकर विज्ञान का एक सर्वमान्य सिद्धांत बना जो विज्ञान का एक बड़ा आधार बना।

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डार्विन की किताब ‘ओरिजिन ऑफ स्पीशीज’ के प्रथम प्रकाशन दिवस 24 नवम्बर को ‘इवोल्यूशन डे’ के रूप में मनाया जाता है। इस किताब के कुछ समय पश्चात ही डार्विन की एक और महत्वपूर्ण किताब 1871 में प्रकाशित हुई ‘द डिसेंट ऑफ मैन’। जिसमें डार्विन ने दुनिया को बताया कि मनुष्य के पूर्वज बंदर थे। बंदरों के क्रमबद्ध चरणों में विकास के बाद ही मनुष्य बने।

चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर श्रेव्स्बुरी में हुआ था। उनके पिता रोबर्ट डार्विन चिकित्सक थे। बचपन से ही डार्विन का मन प्रकृति और पशु-पक्षियों के व्यवहार के अवलोकन, बीटल्स की दुर्लभ प्रजातियां खोजने, फूल-पत्तियों के नमूने इकट्ठा करने में लगता था।

पिता रोबर्ट डार्विन बेटे चार्ल्स डार्विन को भी अपनी ही तरह चिकित्सा के क्षेत्र में भेजना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने चार्ल्स का दाखिला मेडिकल में कराया भी किन्तु वहां चार्ल्स डार्विन का मन नहीं लगा और उन्होंने बीच में ही मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी। वनस्पति विज्ञान में चार्ल्स डार्विन की रूचि को देखते हुए बाद में उनका दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कराया गया जहां से 1831 में चार्ल्स डार्विन ने डिग्री प्राप्त की। 

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में चार्ल्स डार्विन के प्रोफेसर हेन्सलो चार्ल्स डार्विन के कार्यो विशेषकर प्रकृति में उनकी विशेष रूचि और लगाव को देखकर बहुत प्रभावित थे जिसके चलते उन्होंने समुद्री जहाज एचएमएस बीगल पर चार्ल्स को प्रकृतिवादी के पद पर नियुक्ति के लिए ऑफर दिया, हालांकि चार्ल्स के पिता इसके लिए तैयार नहीं थे किन्तु चार्ल्स डार्विन ने इस पद को स्वीकार कर लिया।

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1831 से 1836 तक डार्विन ने बीगल जहाज पर 5 वर्ष समुद्री यात्रा की जिसमें उन्होंने कई महाद्वीपों का भ्रमण किया, जो उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनी। रास्ते में जहां-जहां वे जहाज से उतरे वहां के जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, पत्थरों-चट्टानों, कीट-पतंगों को जांचते-परखते और उनके नमूने जमा करते रहे। इस समुद्री यात्रा के दौरान डार्विन ने जगह-जगह घूमकर वहां के जीव जन्तुओं, इंसान और पेड़-पौधों के जीवन और समय व वातावरण के साथ उनके बदलाव पर कई तरह के तथ्य इकट्ठे किए। 

एचएमएस बीगल पर यात्रा के बाद लगभग 20 साल तक चार्ल्स डार्विन ने पौधों और जीवों की प्रजातियों पर सूक्ष्मता से अध्ययन किया और उसके बाद जीव-जन्तुओं में क्रमविकास के सिद्धांत को प्रतिपादित किया। क्रम विकास के सिद्धांत को जानने से पहले हालांकि खुद चार्ल्स डार्विन भी इंसान की उत्पत्ति को लेकर बाइबल में लिखी बात को अस्वीकार नहीं करते थे जैसे-जैसे वे प्रकृति के विकासवाद को जान पाए उनकी सोच बदलती गई। 

- अमृता गोस्वामी

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