Chandrashekhar Azad Death Anniversary: अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले चंद्रशेखर अपनी आखिरी सांस तक रहे थे 'आजाद'

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की 27 फरवरी को मृत्यु हो गई थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सैन्य पर अभियोग लगाने के चलते अपनी ही गोली से अपनी जान ले ली थी। कम्र उम्र में चंद्रशेखर बेहद देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने थे।
आज ही के दिन यानी की 27 फरवरी को महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु हुई थी। उन्होंने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु एक वीरता पूर्वक योगदान के रूप में याद की जाती है। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सैन्य पर अभियोग लगाने के चलते अपनी ही गोली से अपनी जान ले ली थी। कम्र उम्र में चंद्रशेखर बेहद देश की आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर 23 जुलाई 1906 को चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। बताया जाता है कि आजाद ने बचपन में आदिवासियों से धनुष बाण चलाना सीखा था। वहीं उनका निशाना काफी पक्का था। वह आजादी के लिए इतना दीवाने थे कि महज 15 साल की उम्र में वह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे।
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बिस्मिल से मुलाकात
गांधीजी ने असहयोग आंदोलन के दौरान जब चौरीचौरा कांड के चलते अपना आंदोलन वापस ले लिया। इस दौरान आजाद का गांधी जी से मोहभंग हो गया। तभी आजाद की मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से हुई। यह मुलाकात आजाद के जीवन का एक अहम मोड़ साबित हुई। जिसके बाद वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बनकर क्रांतिकारी बन गए। वैसे तो पार्टी का नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल के हाथों में था। लेकिन अपने स्पष्ट और ओजस्वी विचारों से जल्द ही आजाद भी सभी साथियों की पसंद बन गए।
चंद्रशेखर तिवारी को मिला आजाद नाम
साल 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद चंद्रशेखर आजाद की गिरफ्तारी हुई। इस दौरान जब उनको जज के सामने पेश किया गया, तो उनके जवाब ने सबसे होश उड़ा दिए। दरअसल जब चंद्रशेखर से उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता बताया। इस बात से जज काफी नाराज हो गया और उनको 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।
काकोरी ट्रेन कांड
भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज काकोरी कांड से शायद कोई अंजान होगा। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन दल के 10 सदस्यों ने काकोरी ट्रेन लूट को अंजाम दिया। आजाद का मानना था कि लूटा हुआ धन भारतीयों का ही है। क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत ने भारतीयों पर जबरन शोषण करके लूटा है। मुख्य रूप से रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह ने काकोरी कांड को अंजाम दिया। इसके बाद इन सभी को फांसी की सजा सुनाई गई।
दिल्ली असेंबली में फेंका बम
आयरिश क्रांति से प्रभावित होकर भगत सिंह ने चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बड़ा धमाका करने का प्लान बनाया। साल 1929 में भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली के अलीपुर रोड में स्तिथ ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम फेंक दिया। इस दौरान भगत सिंह भागे नहीं बल्कि खुद को गिरफ्तार करवाया। जिसके बाद शिवराम राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव थापर पर मुकदमा चलाया गया और इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई।
अल्फ्रेड पार्क में हुई आखिरी जंग
इन घटनाओं के बाद क्रांतिकारियों को पकड़ने में ब्रिटिश हुकूमत ने पूरी ताकत झोंक दी। जिसके बाद दल के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे। लेकिन चंद्रशेखर आजाद काफी समय तक ब्रिटिश सरकार को चकमा देते रहे। वहीं 27 फरवरी 1931 इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आगामी योजना बना रहे थे। लेकिन इस बाद की जानकारी गुप्तचरों से अंग्रेजों से मिली।
इस दौरान कई अंग्रेज सैनिकों ने अचानक आजाद और उनके अन्य साथियों पर हमला कर दिया। लेकिन चंद्रशेखर आजाद अकेले ही अंग्रेजों से लोहा लेने लगे। इस लड़ाई में आजाद बुरी तरह से घायल हो गए थे। लेकिन वह सैकड़ों पुलिस वालों के सामने करीबन 20 मिनट तक लड़ते रहे। आजाद ने प्रण लिया था कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे और जब हाथ नहीं आएंगे तो ब्रिटिश सरकार उनको फांसी नहीं दे सकेगी। इसलिए उन्होंने अपने प्रण को पूरा करने के लिए 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद ने अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली।
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