Birsa Munda Birth Anniversary: जानिए कैसे आदिवासी समाज के भगवान बने बिरसा मुंडा, कम उम्र में किए थे अंग्रेजों के दांत खट्टे

Birsa Munda
ANI
Ananya Mishra । Nov 15 2024 10:31AM

आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। भारत के इतिहास में जनजातीय समाज ने अहम भूमिका निभाई है। आदिवासी समाज के लोग उनकी पूजा भगवान की तरह करते हैं।

बिरसा मुंडा का जीवन किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं हैं। उनका पूरा जीवन साहस, संघर्ष और सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध रहा। आज ही के दिन यानी की 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। भारत के इतिहास में जनजातीय समाज ने अहम भूमिका निभाई है। आदिवासी समाज के लोग उनकी पूजा भगवान की तरह करते हैं। उनका नारा था- रानी का राज खत्म करो, हमारा साम्राज्य स्थापित करो। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर बिरसा मुंडा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

झारखंड के उलीहातू गांव में एक साधारण मुंडा परिवार में 15 नवंबर 1875 को बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। उनका जीवन बहुत सारी कठिनाइयों से भरा हुआ था। उनको बचपन से ही आर्थिक संघर्षों का सामना करना पड़ा। अत्याचारों, सामाजिक असमानता और विदेशी शासकों द्वारा जनजातियों पर लगातार होने वाले शोषण ने उनके मन में विद्रोह की भावना को जन्म दिया। 


उलगुलान आंदोलन

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों द्वारा लागू जमींदारी प्रथा, जनजातियों के पारम्परिक जीवन पर हो रहे अत्याचारों और धर्मांतरण के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने उलगुलान जनजातीय विद्रोह का नेतृत्व भी किया। यह विद्रोह अंग्रेजी शासन और उनके द्वारा किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ था। उलगुलान का अर्थ है आंदोलन या विद्रोह से होता है। इस विद्रोह का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा लागू की किए गए भूमि नीतियों, जबरन धर्मांतरण और जनजातियों की पारम्परिक जीवनशैली में दखल देने वाले कानूनों के खिलाफ था।

समाज सुधारक थे बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा न सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने उस दौरान जनजातिय समाज में फैली कुरीतियों जैसे- जाति-भेद, अंधविश्वास, जातीय संघर्ष, नशाखोरी और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरुकता फैलाने का काम किया। बिरसा मुंडा ने अपने अनुयायियों को शिक्षा के महत्व को समझाया और एकता का संदेश दिया। उन्होंने 'बिरसाइत' नामक एक आंदोलन भी चलाया था। इस आंदोलन में मुंडा ने अपने अनुयायियों को सादगी, आचार-विचार की शुचिता और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

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स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

बिरसा मुंडा का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान अतुलनीय है। वह न सिर्फ अपने क्षेत्र के जनजातियों के नेता थे, बल्कि उनके संघर्षों और बलिदान ने स्वंतत्रता संग्राम को एक नई दिशा देने का काम किया।

मृत्यु

बिरसा मुंडा महज 24 साल 7 महीने की अल्पायु में 09 जून 1900 को निधन हो गया। उनकी विरासत आज भी जनजातीय समाज के दिलों में जीवित है।

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