Pandit Bhimsen Joshi Birth Anniversary: सुरों को साधने के लिए भीमसेन जोशी ने किया था कड़ा संघर्ष, जानिए क्यों 11 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर

Bhimsen Joshi
Prabhasakshi

जब भी भारतीय संगीत की बात होती है, तो आपके जहन में तमाम बड़े नाम आते होंगे। भीमसेन जोशी किसी परिचय़ के मोहताज नहीं है। आज ही के दिन यानी की 4 फरवरी को पंडित भीमसेन जोशी की बर्थ एनिवर्सरी है। वह एक शास्त्रीय गायक थे।

जब भी भारतीय संगीत की बात होती है, तो आपके जहन में तमाम बड़े नाम आते होंगे। इन्हीं में से एक नाम पंडित भीमसेन जोशी का है। आपको बता दें कि भीमसेन जोशी किसी परिचय़ के मोहताज नहीं है। आज ही के दिन यानी की 4 फरवरी को पंडित भीमसेन जोशी की बर्थ एनिवर्सरी है। वह एक शास्त्रीय गायक थे। 'जो भजे हरि को सदा', 'पिया मिलन की आस' और 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' जैसे गानों के लिए याद किया जाता है। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर पंडित भीमसेन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

19 साल की उम्र में दी पहली प्रस्तुति

कर्नाटक के गडग में 4 फरवरी 1922 को पंडित भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम गुरुराज जोशी था, जोकि हाईस्कूल के हेडमास्टर थे और कन्नड़, अंग्रेजी व संस्कृत के विद्वान भी थे। वहीं भीमसेन अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बेहद कम उम्र में भीमसेन के सिर से मां का साया उठ गया था। वहीं सौतेली मां ने उनका पालन-पोषण किया था। बचपन से ही उनको संगीत से काफी लगाव था। 

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आपको बता दें कि साल 1941 में महज 19 साल की उम्र में पंडित भीमसेन जोशी जी ने मंच पर पहली प्रस्तुति दी थी। वहीं 29 साल की उम्र में उनका पहला एल्बम निकला। उनके इस एल्बम में हिंदी और कन्नड़ के कुछ धार्मिक गीत थे।

कम उम्र में छोड़ दिया था घर

किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से भीमसेन जोशी बचपन से ही प्रभावित थे। स्कूल जाने के रास्ते पर एक ग्रोमोफोन की दुकान थी। जहां पर ग्राहकों को गाने सुनाए जाते थे। उसी भीड़ में भीमसेन भी खड़े हो जाते थे। एक दिन इसी ग्रोमोफोन शॉप में 'राग वसंत' में 'बृज देखन को', 'फगवा' और 'पिया बिना नहि आवत चैन' ठुमरी सुना। यहीं से उनके मन में संगीत के प्रति रुचि आ गई। 

एक दिन वह गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े, इस दौरान वह करीब दो सालों कर बीजापुर, ग्वालियर और पुणे में रहे। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस दौरान उनकी उम्र सिर्फ 11 साल की थी। वहीं ग्वालियर में उस्ताद हाफिज अली खान से भीमसेन जोशी ने संगीत की शिक्षा प्राप्त की। इसके साथ ही उन्होंने भजन और ठुमरी आदि में भी महारत हासिल की थी।

जब भीमसेन जोशी ने 11 साल की उम्र में अपना घर छोड़ा था, तब उनके पास किराए तक के लिए पैसे नहीं थे। वहीं अपनी गायिकी के दम पर उन्होंने फ्री यात्रा की। जब वह गुरु की तलाश में घर से निकले तो उनको मंजिल का पता नहीं था। ऐसे में वह बिना टिकट के ट्रेन पर चढ़ गए और बीजापुर पहुंच गए। जब टीटी ने उनसे टिकट मांगा तो उन्होंने राग भैरव में 'जागो मोहन प्यारे' और 'कौन-कौन गुन गावे' सुनाकर टीटी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

सम्मान

संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए पंडित भीमसेन जोशी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उनको पद्म भूषण, पद्म विभूषण समेत अन्य कई अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया। 

निधन

वहीं लंबी बीमारी के बाद 24 जनवरी 2011 को पंडित भीमसेन जोशी का निधन हो गया था।

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