Prajatantra: Rajnath Singh को क्यों आई 'India Shining' की याद, नसीहत के बहाने विपक्ष पर किया वार
दिलचस्प बात यह भी है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इंडिया नाम को ही खतरनाक बता दिया। सोमवार को राजस्थान और मध्य प्रदेश में दो अलग-अलग यात्राओं में बोलते हुए, विपक्षी गठबंधन इंडिया को नसीहत दी और बीजेपी की 2004 के लोकसभा चुनाव की हार का जिक्र किया।
देश में इंडिया बनाम भारत को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। सत्ता पक्ष जहां भारत के पक्ष में खड़ा है तो वहीं विपक्षी दल का दावा है कि आखिर जो परिपाटी चली आ रही थी उसे क्यों बदला जा रहा है? इंडिया की जगह ज्यादातर स्थानों पर भारत का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? कुल मिलाकर देखें तो देश में इस बात को लेकर बहस छिड़ी हुई है कि हमारे देश का नाम इंडिया होना चाहिए या फिर भारत। हालांकि, संविधान के अनुसार दोनों ही नामों को सामान मान्यता मिली हुई है। वर्तमान में दावा किया जा रहा है कि सरकार आने वाले समय में देश को भारत के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेगी। विपक्षी दलों का दावा है कि हमने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रख लिया है इस वजह से सरकार डर गई है और घबराहट में देश का ही नाम बदलने की कोशिश कर रही है।
राजनाथ सिंह का बयान
दिलचस्प बात यह भी है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इंडिया नाम को ही खतरनाक बता दिया। सोमवार को राजस्थान और मध्य प्रदेश में दो अलग-अलग यात्राओं में बोलते हुए, विपक्षी गठबंधन इंडिया को नसीहत दी और बीजेपी की 2004 के लोकसभा चुनाव की हार का जिक्र किया। सिंह ने अपने भाषणों में इंडिया गठबंधन पर हमला करते हुए कहा, “और इस गठबंधन की स्थिति क्या है? नाम बड़ा, दर्शन छोटा। उन्होंने नाम इंडिया रखा है, लेकिन मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि ये नाम बहुत खतरनाक है। भाइयो-बहनो, हमने भी शाइनिंग इंडिया का नारा दिया था और हार गए। और अब जब आपने इंडिया बना लिया है तो आपकी हार निश्चित है।” उन्होंने जनसभा में मौजूद लोगों से पूछा कि आपको क्या पसंद है इंडिया या भारत।
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राजनाथ ने ऐसा क्यों कहा
केंद्रीय रक्षा मंत्री का संदर्भ 2004 के लोकसभा चुनावों की ओर था, जिसे आत्मविश्वास से भरी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 'इंडिया शाइनिंग' के नारे के साथ शुरू किया था। भाजपा हार गई थी, कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उस समय बना गठबंधन, यूपीए, अगले 10 वर्षों तक शासन करता रहा। 1999 के लोकसभा चुनाव उसी वर्ष सितंबर-अक्टूबर में हुए थे। उसके पहले विधानसभा चुनावों में सकारात्मक नतीजों से उत्साहित होकर भाजपा सरकार ने 2004 की शुरुआत में संसद को भंग करने का फैसला किया। अंततः चुनाव निर्धारित समय से लगभग छह महीने पहले अप्रैल-मई 2004 में हुए। उस समय एक अग्रणी विज्ञापन कंपनी (ग्रे वर्ल्डवाइड) द्वारा क्रियान्वित विज्ञापन अभियान पर भाजपा ने लगभग 150 करोड़ रुपये खर्च करने का अनुमान लगाया था। यह यकीनन भारत का अब तक का सबसे बड़ा चुनावी अभियान था। एनडीए अंततः केवल 188 सीटें हासिल करने में सफल रही, जबकि भाजपा को 138 सीटें और 22.16% वोट मिले। कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 219 सीटें मिलीं, कांग्रेस 145 सीटों और 26.69% वोट शेयर के साथ भाजपा से आगे रही।
हार के बाद बीजेपी
हार के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि उन्होंने परिणामों को पूरी विनम्रता के साथ स्वीकार किया है और ये सभी उम्मीदों के विपरीत रहे हैं। लेकिन, उन्होंने कहा कि मैं चाहूंगा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार लोगों के खंडित फैसले को किसी भी गठबंधन के लिए निर्णायक जनादेश के रूप में न समझे, किसी एक पार्टी के लिए तो बिल्कुल भी नहीं और निश्चित रूप से किसी व्यक्ति के लिए भी नहीं। कांग्रेस ने किसी भी राष्ट्रव्यापी चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ चुनाव नहीं लड़ा। लोकसभा में उसकी अपनी सीटें बीजेपी से सिर्फ सात ज्यादा हैं। 2004 के चुनावों के विभाजित फैसले की एकमात्र स्पष्ट व्याख्या यह है कि भारत के लोगों को उम्मीद है कि नई सरकार न केवल सत्तारूढ़ गठबंधन के भीतर बल्कि विपक्ष के साथ भी अधिकतम आम सहमति के रास्ते पर चलेगी। आडवाणी ने हार के लिए कई कारकों की पहचान की, जिनमें उचित गठबंधन बनाने में विफलता, शहरी सीटों पर कम वोटिंग, संगठनात्मक कमज़ोरियाँ और स्थानीय सत्ता-विरोधी लहर आम धारणा के विपरीत एनडीए ने ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया और कांग्रेस ने शहरी क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि जबकि भाजपा ने विकास और सुशासन को अपनी मुख्य प्रतिबद्धता बनाया है।
'भारत' या 'इंडिया' पर तर्क
अब तक हम देश को भारत और इंडिया दोनों ही नमों से बुलाते थे। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है, इंडिया दैट इज भारत। इसका मतलब हुआ कि देश के दो नाम हैं। हम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया भी कहते हैं और भारत सरकार भी। भारत के संविधान का अनुच्छेद 1 क्या बनेगा, इस पर संविधान सभा में जोरदार बहस हुई। किसने क्या कहा और अनुच्छेद कैसे अपनाया गया? अनुच्छेद 1 पर पहली बहस 17 नवंबर, 1948 को शुरू होनी थी। हालांकि, गोविंद बल्लभ पंत के सुझाव पर नाम पर चर्चा को बाद की तारीख के लिए स्थगित कर दिया गया। 17 सितंबर, 1949 को डॉ. बीआर अंबेडकर ने प्रावधान का अंतिम संस्करण सदन में प्रस्तुत किया, जिसमें 'भारत' और 'इंडिया' दोनों शामिल थे। कई सदस्यों ने 'इंडिया' के इस्तेमाल के खिलाफ खुद को व्यक्त किया, जिसे उन्होंने औपनिवेशिक अतीत की याद के रूप में देखा। कुछ ने कहा कि विष्णु पुराण और ब्रह्म पुराण में 'भारत' का उल्लेख है। अन्य लोगों ने कहा कि सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने देश को भारत कहा था।
अब के बयान
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मंगलवार को कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसके मन में न तो देश के लिए और न ही संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति कोई सम्मान है। नड्डा ने सोशल नेटवर्किंग साइट ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘कांग्रेस को देश के सम्मान एवं गौरव से जुड़े हर विषय से इतनी आपत्ति क्यों है? भारत जोड़ो के नाम पर राजनीतिक यात्रा करने वालों को ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष से नफरत क्यों है? स्पष्ट है कि कांग्रेस के मन में न देश के प्रति सम्मान है, न देश के संविधान के प्रति और न ही संवैधानिक संस्थाओं के प्रति। उसे तो बस एक विशेष परिवार के गुणगान से मतलब है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस की देश विरोधी एवं संविधान विरोधी मंशा को पूरा देश भलीभांति जानता है।
- केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि यह भारत था, भारत है और भारत रहेगा। हम भारतीय हैं...जिसे सनातन से चिढ़ है वही इस तरह की बात करता है। संविधान में सनातन को पूरा महत्व दिया गया है।
- कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि हमने समान विचार वाले लोगों को एक साथ लाकर एक संगठन बनाया जिसका नाम INDIA रखा गया। वह INDIA को देखकर घबरा रहे हैं और वे अब इंडिया का नाम भारत रखने जा रहे हैं। संविधान में 'इंडिया दैट इज भारत' है। हम पहले ही 'भारत जोड़ो' बोल रहे हैं लेकिन आप रोज़ कुछ नया ला रहे हैं।
- नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष ने कहा कि उमर अब्दुल्ला हमारे संविधान में दोनों नाम दर्ज़ हैं... हम कहां-कहां से 'इंडिया' शब्द हटाएंगे? अगर आपको इस बात से दिक्कत है कि विपक्ष की पार्टियों ने अपना नाम INDIA रखा है और आप इसलिए देश का नाम बदल रहे हैं, तो हम अपना (पार्टी) का नाम बदल लेंगे। हम मुल्क को मुसीबत, तकलीफ में नहीं डालना चाहते।
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत तो भारत है। पहले भी था, अब भी है और आगे भी भारत ही रहेगा।
- जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि आपको इनकी INDIA शब्द से घबराहट नहीं नज़र आ रही है। ये हताश हैं इसलिए नाम बदल रहे हैं। नाम बदलने से क्या होगा इस देश की जनता में इनके खिलाफ अविश्वास है उसे कैसे मिटाएंगे?
- बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि देश के नाम को लेकर अपने संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का मौका भाजपा के NDA को खुद विपक्ष ने एक सोची समझी रणनीती के तहत अपने गठबंधन का नाम INDIA रखकर दिया है। यह भी कहा जा सकता है कि यह सब सत्ता और विपक्ष अंदरूनी रूप से मिलकर कर रहे हैं। इसकी भी आशंका है।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, "सवाल यह है कि संविधान क्या कहता है। संविधान का पहला अनुच्छेद कहता है कि 'इंडिया देट इज भारत शैल बी अ यूनियन ऑफ स्टेट्स'...अब तक रिपब्लिक ऑफ इंडिया कहा जाता था अब उसे बदला गया लेकिन इसके उद्देश्य पर सोचने की ज़रूरत है। विपक्षी पार्टियां INDIA के नाम से एकत्रित हो रहे हैं इसलिए उन्हें चिढ़ है और वे भारत कहने लगे है।"
- भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरूण चुघ ने कहा कि भारत बोलने व लिखने में दिक्कत क्या है? क्यों जलन हो रही है? कांग्रेस व घमंडिया गठबंधन के सभी नेता मुंबई बैठक के माध्यम से भारत, सनातन, भारतीयता, राष्ट्रवाद को योजनाबद्ध षड्यंत्र के तहत बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं।
- शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) सांसद संजय राउत ने कहा कि यह डर है, जबसे इस देश के प्रमुख दलों ने INDIA गठबंधन बनाया, जब से हमने अपने गठबंधन का नाम INDIA रखा है तब से इन लोगों को अपने देश से ही डर लगने लगा है...आप क्या-क्या बदलेंगे...यह(इंडिया) संविधान द्वारा दिया हुआ नाम है, आपको इसे बदलने का अधिकार किसने दिया?
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इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत का अपना इतिहास है। सरकार अगर इस दिशा में बढ़ रही है तो भी अच्छी बात है। लेकिन टाइमिंग को लेकर सवाल उठ सकते हैं। आखिर पिछले 9 सालों में यह बात याद क्यों नहीं आई? यह बात उस समय भी याद क्यों नहीं आई जब डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए? लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जब विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा तो आखिर इस तरह की कवायद कैसे शुरू हो गई। खैर, जनता समझदार है। अपने विवेक से चीजों को समझ सकती है। यही तो प्रजातंत्र है।
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