Jaago Nagrik Jagoo | धर्म को लेकर क्या कहता है भारत का संविधान, धर्मांतरण के खिलाफ कोई कानून है?
भारत का संविधान साफ शब्दों में कहता है कि हम धर्मनिरपेक्ष देश है। हर भारतीय नागरिक को यह पूरी तरह से छूट है कि वह अपनी रूचि के अनुसार अपने धर्म का पालन कर सकता है। धर्म को लेकर किसी नागरिक के खिलाफ कोई भी भेदभाव नहीं हो सकता है।
धर्मांतरण देश में एक बड़ी चुनौती है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि धर्मांतरण फिलहाल गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए। हमने इसी मुद्दे पर बातचीत की जानी मानी कानून विशेषज्ञ Akanksha Singh से। हमने आकांक्षा सिंह से यह भी समझने की कोशिश की कि धर्म को लेकर भारत का संविधान क्या कहता है और एक नागरिक के नाते धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार क्या मिले हुए हैं? वर्तमान में जो लव जिहाद का मुद्दा चल रहा है, इससे संबंधित भी हमने अपने कार्यक्रम में सवाल पूछे हैं।
सवाल- पहला सवाल यही है कि धर्म को लेकर भारत का संविधान क्या कहता है और एक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता के तहत क्या अधिकार मिले हुए हैं?
उत्तर- भारत का संविधान साफ शब्दों में कहता है कि हम धर्मनिरपेक्ष देश है। हर भारतीय नागरिक को यह पूरी तरह से छूट है कि वह अपनी रूचि के अनुसार अपने धर्म का पालन कर सकता है। धर्म को लेकर किसी नागरिक के खिलाफ कोई भी भेदभाव नहीं हो सकता है। साथ ही साथ सरकार या सरकारी तंत्र किसी व्यक्ति को कोई धर्म मानने पर मजबूर नहीं कर सकता है। रिलीजियस प्रैक्टिस पर रोक नहीं लगा सकते।
सवाल- कानूनी नजरिए से धर्मांतरण जिसे आजकल लव जिहाद नाम दिया जा रहा है, वह क्या है?
उत्तर- लव जिहाद आजकल काफी कॉम्प्लेक्स मुद्दा है। इसको लेकर चर्चा भी खूब होती है। इसका उद्देश्य यही है कि अगर कोई व्यक्ति किसी को शादी का झांसा देकर धर्म परिवर्तित करने को बात करता है तो उसे रोकना है। यह उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की बात करता है जो अपना धर्म गलत अब बता कर शादी करते हैं। हालांकि इसमें एक राजनीतिक कोण भी आ जाता है।
सवाल- क्या भारतीय कानून में किसी का जबरन धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ कोई दंड का प्रावधान है?
उत्तर- अगर देखा जाए तो इसको लेकर कोई केंद्रीय कानून नहीं है। हालांकि, कई संसद सदस्य इसको लेकर प्राइवेट बिल ला चुके हैं। भारत में हमारे पास धार्मिक स्वतंत्रता है। ऐसे में इस तरह के एक्ट को लाना एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने इसको लेकर कानून लाए हैं।
सवाल- 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके धर्म निरपेक्ष शब्द शामिल किया गया था। इससे कोई बदलाव आया?
उत्तर- यह जो संविधान संशोधन था, वह काफी विवादित था। इस संशोधन के तहत सभी सरकारी तंत्र ने इस बात को स्वीकार किया कि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। यहां सभी को धार्मिक आजादी मिलेगी। इस शब्द के होने की वजह से हम देश में किसी एक धर्म को प्रोत्साहित नहीं कर सकते हैं। यह एक बड़ा फर्क पड़ा है। धर्मनिरपेक्षता भारत की पहचान बन गई है और इससे खत्म नहीं किया जा सकता।
सवाल- एक सवाल यह भी है कि अनुच्छेद 25 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता में दी गई धार्मिक परंपरा को किस हद तक कोर्ट परख सकता है या उसमें दखल दे सकता है?
उत्तर- सुप्रीम कोर्ट का काम कानून की व्याख्या करना है। वह इसके तहत जितना दखल दे सकता है, वह बहुत ही सीमित है। कानून बनाना और लागू करना सरकार का काम है। लेकिन कोर्ट का काम इसे समझाना है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट जरूर परख सकता है कि जो आप कर रहे हैं वह परंपरा है या उसका उद्देश्य कुछ और है।
सवाल- क्या सरकार धार्मिक कार्यों में अपनी रुचि दिखा सकती है या उसके लिए कोई दान कर सकती है? (मंदिर बनाना, यात्रा में छूट देना आदि)
उत्तर- संविधान के हिसाब से देखें तो सरकार भेदभाव बिल्कुल भी नहीं कर सकती है, ना ही वह किसी एक धर्म को प्रोत्साहित कर सकती है। हालांकि, समाज और सामाजिक कल्याण के नाम पर सांस्कृतिक उत्थान का काम सरकार कर सकती है। इसके अलावा सरकार ट्रस्ट को कंट्रोल कर सकती हैं।
सवाल- कोई लड़का या लड़की दूसरे धर्म के किसी व्यक्ति से शादी करता है (अपनी मर्जी से) और उसकी परिवार या विरादरी को इस पर ऐतराज है और उनकी हत्या कर दी जाती है। तो यह मामला किस कानून के तहत आएगा?
उत्तर- यह पूरा मामला आईपीसी के अंदर आएगा। इसमें आप जो भी इल्जाम लगाएंगे, वह क्राइम ही रहता है।
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