बीजेपी के जिस नेता की एक आवाज पर थम जाती थी दिल्ली, रिफ्यूजी से सीएम बनने वाले दिल्ली के 'लाल' Madanlal की कहानी

Madan Lal
प्रतिरूप फोटो
ANI
Anoop Prajapati । Dec 15 2024 5:42PM

मदन लाल खुराना दिल्ली की भारतीय जनता पार्टी के एक जाने माने चेहरा थे। उन्होंने 1993 से 1996 तक दिल्ली के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। राजधानी की राजनीति में मदन लाल खुराना के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है प्रदेश बीजेपी में उनकी मर्जी के बगैर एक पत्ता नहीं हिलता था।

मदन लाल खुराना दिल्ली की भारतीय जनता पार्टी के एक जाने माने चेहरा थे। उन्होंने 1993 से 1996 तक दिल्ली के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। राजधानी की राजनीति में मदन लाल खुराना के दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है प्रदेश बीजेपी में उनकी मर्जी के बगैर एक पत्ता नहीं हिलता था। डीटीसी किराये में वृद्धि हो या फिर दूध की कीमतों में बढ़ोतरी। खुराना तुरंत दिल्ली बंद का आह्वान कर देते थे। उनकी एक आवाज पर दिल्ली बंद हो जाती थी। वे 2004 में राजस्थान के राज्यपाल भी रहे। ब्रिटिश भारत में जन्मे खुराना अपनी पार्टी में 'दिल्ली का शेर' के रूप में जाने जाते थे।

प्रारम्भिक जीवन

खुराना का जन्म 15 अक्टूबर 1936 को गुलाम भारत के ल्याल्लपुर (वर्तमान फैसलाबाद) में हुआ। उनके पिता का नाम एसडी खुराना और माँ का नाम लक्ष्मी देवी था। भारत के विभाजन के समय उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा और नई दिल्ली के कीर्ति नगर के शरणार्थी शिविर में रहे। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ी मल कॉलेज से प्राप्त की। इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भी शिक्षा ग्रहण की। इलाहाबाद में ही उनकी छात्र राजनीति की शुरुआत हुई और इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के महामंत्री भी चुने गए। 1960 में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सचिव बने। सक्रिय राजनीति में आने से पहले उन्होंने पीजीडीएवी कॉलेज में अध्यापन किया। वह 1965 से 67 तक जनसंघ के महमंत्री रहे।

साल 1984 में जब भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार हुई तब राजधानी दिल्ली में फिर से पार्टी को खड़ा करने में खुराना का बड़ा योगदान था। केन्द्र में जब पहली बार भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी तो मदन लाल खुराना केंद्रीय मंत्री बने। उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की भी जिम्मेदारी निभाई। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय संसदीय मामलों और पर्यटन मंत्री थे। खुराना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे। वे 1965 से 1967 तक जनसंघ के महासचिव रहे और दिल्ली में जनसंघ के चर्चित चेहरों में रहे।

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री खुराना को वर्ष 2005 में लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के कारण उन्हें भाजपा से निकाल दिया गया, लेकिन 12 सितंबर 2005 में ही उन्हें फिर से पार्टी में वापस ले लिया गया। मदनलाल खुराना 1977 से 1980 तक दिल्ली के कार्यकारी पार्षद रहे। उसके बाद दो बार महानगर पार्षद बने। दिल्ली को जब राज्य का दर्जा मिला तो वह 1993 में पहले मुख्यमंत्री चुने गए। इस पद पर वह 1996 तक रहे। 2013 में उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ जिस कारण वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए। पिछले लगभग दो वर्षों (सन 2016 से) से वह गंभीर रूप से बीमार थे। 27 अक्टूबर 2018 को उनका निधन हो गया था।

कब छोड़ा मदनलाल खुराना ने पहाड़गंज

मदन लाल खुराना ने 1967 के बाद फिर कभी दिल्ली नगर निगम के लिए चुनाव नहीं लड़ा। फिर वे महानगर परिषद के मोती नगर सीट से निर्वाचित हुए थे। वे पहाड़गंज से मोतीनगर शिफ्ट कर गए थे। खुराना की संगठन की क्षमताओं का पहली बार पता चला 1977 में। देश से 19 महीनों के बाद इमरजेंसी हटा ली गई थी। जेलों में बंद विपक्ष के नेता छूट गए थे और लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। खुराना भी जेल से रिहा होकर आए थे। खुराना सदर बाजार सीट से जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। वे ही उन दिनों जनता पार्टी के नेताओं की रामलीला मैदान से लेकर बोट क्लब में होने वाली बड़ी सभाओं की व्यवस्था करते। हर सभा में गजब की जन भागीदारी रहती।

वे घर-घर जाकर लोगों को बड़ी सभाओं में शामिल होने का आहवान करते। दिल्ली की पंजाबी और वैश्य बिरादरी में उनकी कमाल की पकड़ थी। ये ही दोनों वर्ग जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े समर्थक थे। मदन लाल खुराना को दर्जनों बार दिल्ली बंद करवाने का भी श्रेय जाता है। पंजाब में आतंकवाद के दौर में जब भी कोई बड़ी घटना होती तो वे दिल्ली बंद का आह्वान कर देते। मजाल है कि उनका बंद कभी असफल रहा हो। वो उनके संगठन पर पकड़ का ही कमाल था। उनके बंद के आह्वान के चलते दिल्ली में जिंदगी थम जाती थी, बाजार बंद हो जाते।

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