Truth of PoK-VII | पीओके को हासिल करने में क्या कोई कानूनी बाध्यता है? | Teh Tak
लोकसभा में जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 पर चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने ये टिप्पणी की थी। शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार नौ सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई है। पहले जम्मू में 37 सीट थी जो अब 43 हो गई है। कश्मीर में पहले 46 सीट थी जो अब 47 हो गई है और पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीट आरक्षित रखी गई है।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर चर्चा में रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटों को आरक्षित रखा गया है। हम अभी भी ये मानते हैं जिसको जो बोलना है वो बोले। इस सदन में बोला हुआ शब्द इतिहास बनता है। आज फिर से कहना चाहता हूं। पाक अधिकृत कश्मीर भारत का है। हमारा है और हमसे कोई नहीं छीन सकता।
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पीओके के लिए सीटें आरक्षित
लोकसभा में जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2023 पर चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने ये टिप्पणी की थी। शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार नौ सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई है। पहले जम्मू में 37 सीट थी जो अब 43 हो गई है। कश्मीर में पहले 46 सीट थी जो अब 47 हो गई है और पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीट आरक्षित रखी गई है।
सैन्यबल से ही किया जा सकता है हासिल
पीओके आम इंसान को या राजनेता हर किसी की जुबान पर है। लेकिन क्या वाकई इसे पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ाया जा सकता है। शिमला समझौते के अनुसार दोनों देशों को इस मसले को हल करना होगा। फिर किसी प्रस्ताव के वापस लेने भर से सेना मुजफ्फराबाद तक नहीं पहुंच जाएगी। पीओके हासिल करने का एक ही रास्ता है जंग और वो भी भयंकर जंग। भारत के हिस्से पर पाकिस्तान और चीन ने सैन्य बल से कब्जा किया था। उसे सिर्फ सैन्यबल से ही हम वापस हासिल कर सकते हैं। इसमें किसी भी तरह से कानूनी बाध्यता नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक ये दिखाती है कि यदि हम पर हमला होता है तो न केवल उसका माकूल जवाब देने में सक्षम हैं बल्कि उसे जड़ खत्म कर सकते है।
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क्या कोई कानूनी बाध्यता
पीओके भारत का अभिन्न अंग है इसमें कोई दो राय नहीं। ये पाकिस्तान का हिस्सा ही नहीं है। पीओके हासिल करने में कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और न संयुक्त राष्ट्र का कोई दबाव है। यूएन इस मामले में कुछ नहीं कर सकता। अब बात आती है कि ये कैसे संभव है तो बातचीत से इसका हल तो निकल नहीं सकता। भारत के लिए कश्मीर की संपूर्ण संप्रभुता सुनिश्चित करना ही अगला मिशन है और वो बिना पीओके हासिल किए पूरा नहीं हो पाएगा। देश के गृह मंत्री खुद संसद से कह चुके हैं कि कश्मीर को लेकर उनका नजरिया छोड़ा तंग है। जब तक भारत की एक-एक इंच जमीन वापस नहीं मिलेगी तब तक वो बैठने वाले नहीं हैं।
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