बख्शते नहीं हैं Modi, East Asia Summit में PM ने China को जो खरी खरी सुनाई है उससे ड्रैगन को मिर्ची लगना पक्का है

narendra modi
ANI

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने सदैव आसियान Unity और Centrality का समर्थन किया है। भारत के Indo-Pacific विज़न और Quad सहयोग के केंद्र में भी आसियान है। भारत के "Indo-Pacific Oceans’ Initiative” और "आसियान Outlook on Indo-Pacific” के बीच गहरी समानताएं हैं।

आसियान बैठक और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत समेत विभिन्न देशों ने चीन को जमकर घेरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चीन के विस्तारवाद पर एक बार फिर निशाना साधते हुए कहा है कि यह विकासवाद का जमाना है। हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा है कि स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी, समृद्ध और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत पूरे क्षेत्र की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत "टाइफून यागी” से प्रभावित लोगों के प्रति गहरी संवेदनाएँ व्यक्त करते हुए की और बताया कि इस कठिन घड़ी में, ऑपरेशन सद्भाव के माध्यम से हमने मानवीय सहायता उपलब्ध कराई है।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने सदैव आसियान Unity और Centrality का समर्थन किया है। भारत के Indo-Pacific विज़न और Quad सहयोग के केंद्र में भी आसियान है। भारत के "Indo-Pacific Oceans’ Initiative” और "आसियान Outlook on Indo-Pacific” के बीच गहरी समानताएं हैं। एक फ्री, ओपन, समावेशी, समृद्ध और rule-based इंडो-पैसिफ़िक, पूरे क्षेत्र की शांति और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि South China Sea की शांति, सुरक्षा और स्थिरता पूरे इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र के हित में है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा मानना है कि समुद्री गतिविधियाँ अन्क्लोस (UNCLOS) के अंतर्गत संचालित होनी चाहिए। Freedom of Navigation और Air Space सुनिश्चित करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि एक ठोस और प्रभावी Code of Conduct बनाया जाना चाहिए। और इसमें क्षेत्रीय देशों की विदेश नीति पर अंकुश नहीं लगाए जाने चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी approach विकासवाद की होनी चाहिए, न कि विस्तारवाद की।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि म्यांमार की स्थिति पर हम आसियान दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं। हम Five-point कन्सेन्सस का भी समर्थन करते हैं। साथ ही, हमारा मानना है कि मानवीय सहायता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। और लोकतंत्र की बहाली के लिए उपयुक्त कदम भी उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारा मत है कि, इसके लिए, म्यांमार को isolate नहीं, engage करना होगा। उन्होंने कहा कि एक पड़ोसी देश के नाते, भारत अपना दायित्व निभाता रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में चल रहे संघर्षों का सबसे नकारात्मक प्रभाव ग्लोबल साउथ के देशों पर हो रहा है। सभी चाहते हैं कि चाहे यूरेशिया हो या पश्चिम एशिया, जल्द से जल्द शांति और स्थिरता की बहाली हो। उन्होंने कहा कि मैं बुद्ध की धरती से आता हूँ, और मैंने बार-बार कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। समस्याओं का समाधान रणभूमि से नहीं निकल सकता। प्रधानमंत्री ने कहा कि संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का आदर करना आवश्यक है। मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए, डायलॉग और diplomacy को प्रमुखता देनी होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्वबंधु के दायित्व को निभाते हुए, भारत इस दिशा में हर संभव योगदान करता रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद भी वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। इसका सामना करने के लिए, मानवता में विश्वास रखने वाली ताकतों को एकजुट होकर काम करना ही होगा और, साइबर, Maritime और स्पेस के क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बल भी देना होगा। उन्होंने कहा कि नालंदा का पुनरुद्धार, East Asia Summit में दी गयी हमारी कमिटमेंट थी। इस वर्ष जून में, नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन करके हमने इसे पूरा किया है। उन्होंने कहा कि मैं, यहाँ उपस्थित सभी देशों को नालंदा में होने वाले Heads of Higher Education Conclave के लिए आमंत्रित करता हूँ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि East Asia Summit  भारत की Act East Policy का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और, आज की इस समिट के शानदार आयोजन के लिए मैं प्रधानमंत्री सिपानदोन का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। उन्होंने कहा कि मैं आगामी Chair मलेशिया को अपनी शुभकामनाएं देता हूँ, और उनकी सफल अध्यक्षता के लिए भारत के पूर्ण समर्थन का विश्वास दिलाता हूँ।

हम आपको यह भी बता दें कि आसियन की बैठक में फिलीपीन्स के राष्ट्रपति फर्डिनेंड बोंगबोंग मार्कोस जूनियर ने भी चीन को जोरदार तरीके से घेरा था। उन्होंने आसियान के नेताओं से ''दक्षिण चीन सागर में विकास पर आंखें नहीं मूंदने'' का आग्रह किया गया था। मार्कोस का बयान चीन तट रक्षक (सीसीजी) जहाजों द्वारा बाजो डी मासिनलोक (स्कारबोरो शोल) में फिलीपींस के मत्स्य पालन और जलीय संसाधन ब्यूरो (बीएफएआर) के दो जहाजों पर फिर से पानी की बौछारें करने के बाद आया है। इसके जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर में आसियान देशों के साथ काम करना जारी रखेगा।

हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने दक्षिण पूर्व एशियाई नेताओं से कहा है कि अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन की "बढ़ती खतरनाक और गैरकानूनी" गतिविधियों के बारे में चिंतित है। अमेरिका ने वादा किया है कि वह क्षेत्र में स्वतंत्रता को बनाए रखने और इस महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग को सुरक्षित बनाए रखने में मदद करता रहेगा।

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