फुले या तिलक, आखिर शिवाजी महाराज की समाधि की खोज किसने की? भागवत के बायन ने कैसे बढ़ाया महाराष्ट्र की सियासत का पारा

Shivaji
ANI
अभिनय आकाश । Sep 13 2024 1:56PM

भाषण के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस दावे ने कि स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने शिवाजी महाराज की समाधि की खोज की थी। भागवत की इस टिप्पणी पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेताओं ने समाज सुधारक ज्योतिराव से श्रेय छीनने की साजिश का आरोप लगाया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। अब इस मुद्दे पर विपक्ष से लेकर एनडीए के सहयोगी तक ने प्रतिक्रिया दी है और मोहन भागवत को दुविधा में डाल दिया है। वहीं बीजेपी नेता इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से बच रहे हैं। मिलिंद पराडकर की किताब 'तंजावुर के मराठा' का कल पुणे में मोहन भागवत ने लोकार्पण किया। लेकिन इस दौरान भागवत द्वारा शिवाजी महाराज की समाधि का श्रेय लोकमान्य तिलक को दिए जाने से नया विवाद खड़ा हो गया है। पुणे में एक भाषण के दौरान संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस दावे ने कि स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने शिवाजी महाराज की समाधि की खोज की थी। भागवत की इस टिप्पणी पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेताओं ने समाज सुधारक ज्योतिराव से श्रेय छीनने की साजिश का आरोप लगाया है। 

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शिवाजी की समाधि कहाँ स्थित है?

1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद रायगढ़ के किले में उनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में वहां उनकी एक समाधि बनाई गई। हालांकि शिवाजी की मृत्यु के तुरंत बाद समाधि की उपस्थिति का विवरण देने वाला कोई समकालीन रिकॉर्ड नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि एक दशक के अंतराल के बाद किले पर मुगलों का कब्जा हो गया और 1689 से 1733 तक उनके नियंत्रण में रहा। मराठों ने 1733 में किले पर पुनः कब्ज़ा कर लिया और यह 1818 तक उनके नियंत्रण में रहा, जब तक की ब्रिटिश सेना ने आक्रमण नहीं किया था। कहा जाता है कि किले पर कब्जे के दौरान अंग्रेजों ने लगातार गोलाबारी की, जिससे समाधि सहित अंदर की कई संरचनाओं को नुकसान पहुंचा। 

ब्रिटिश रिकॉर्ड में क्या कहा गया? 

ऐसे दावे किए जाने हैं कि पेशवा शासन के तहत समाधी पहले से ही अच्छी स्थिति में नहीं थी। बाद में ब्रिटिश शासन के तहत और अधिक खंडहर हो गई। लेखक जेम्स डगलस ने अपनी 1883 की पुस्तक ए बुक ऑफ बॉम्बे में किले की अपनी यात्रा का वर्णन करते हुए कहा कि अब किसी को भी शिवाजी की परवाह नहीं है। डगलस ने किले और समाधि की उपेक्षा के बारे में बाद के मराठा शासकों से भी सवाल किया। 

ज्योतिबा फुले समाधि पर कब गयीं?

शिवाजी की समाधि को लेकर कई अलग अलग दावे किए जाते रहे हैं। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने 2022 में एक बयान में दावा किया कि तिलक ने रायगढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि बनवाई थी। लेकिन, स्वतंत्रता सेनानी के परपोते रोहित तिलक ने दावा किया था कि फुले ने मराठा शासक की समाधि की खोज की थी, लेकिन यह लोकमान्य तिलक थे जिन्होंने इसके जीर्णोद्धार की प्रक्रिया शुरू की थी।वहीं अभिलेखों से संकेत मिलता है कि अंग्रेजों को समाधि के स्थान के बारे में पता था। हालांकि वे अक्सर वहां नहीं जाते थे। कहा जाता है कि 1869 में ज्योतिराव फुले ने इस स्मारक का दौरा किया था। फुले 19वीं सदी के भारत में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिनका सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य, विशेषकर ओबीसी और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर गहरा और स्थायी प्रभाव था। वह जाति व्यवस्था के कट्टर आलोचक थे और सामाजिक और शैक्षिक सुधार के माध्यम से ओबीसी सहित निचली जातियों के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करते थे।

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तिलक की भूमिका क्या थी?

बेसिन के गोविंदराव बाबाजी जोशी ने 3 अप्रैल, 1885 को रायगढ़ किले का दौरा करते हुए स्मारक के ऊपर छत को बनाने के लिए 45,046 रु की अनुमानित राशि का आंकलन किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा कि इस तरह की संरचनाएं जिसमें कोई वास्तुशिल्प विशेषताएं नहीं हैं, महंगी मरम्मत की वस्तु नहीं होनी चाहिए। हालाँकि, एएसआई ने महान मराठा शासक की समाधि को क्षतिग्रस्त होने से बचाने पर सहमति जताई थी। 50 रुपये की लागत से मरम्मत की गई, ब्रिटिश सरकार ने समाधि के रखरखाव के लिए सालाना 5 रुपये आवंटित किए। 1895 में तिलक ने स्मारक की मरम्मत और उस पर एक छतरी बनाने के लिए धन जुटाने के लिए एक बैठक बुलाई। पांच सदस्यों की एक समिति गठित की गई, जिसके कार्यकारी सचिव तिलक थे। 25,000 रुपये से अधिक एकत्र किए गए और इसे डेक्कन बैंक में जमा कर दिया गया। 1920 में तिलक की मृत्यु के बाद आंदोलन की गति धीमी पड़ गई। इसके बाद, 1925 में समाधि के निर्माण और मरम्मत को ब्रिटिश सरकार से मंजूरी मिल गई। महाराष्ट्र में आज जिस तरह से लोग गणेश चतुर्थी मनाते हैं उसमें लोकमान्य तिलक का एक बड़ा योगदान है। कहा जाता है कि लोकमान्य तिलक ने ही गणेशोत्सव को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। समाजशास्त्रियों के अनुसार, गणेश के इर्द-गिर्द आज के 'भव्य सार्वजनिक आयोजन' ने ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों के बीच के मतभेदों को मिटा दिया है और गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। पूजा को केवल धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा गया। गणेशोत्सव को आजादी की लड़ाई, समाज को संगठित करने व आम आदमी का ज्ञानवर्धन करने का जरिया बनाया गया। 

 भागवत के बयान को लेकर क्यों हो रही इतनी चर्चा? 

डॉ. मिलिंद पराडकर द्वारा लिखित पुस्तक तंजावरचे मराठे के विमोचन के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज की जयंती के समारोह की शुरुआत की थी। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री छगन भुजबल ने छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि की खोज को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि कहा कि समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने रायगढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि की खोज की थी। दरअसल, संघ प्रमुख के इस बयान के बाद कई नेताओं ने आरोप लगाया है कि तिलक का नाम लेना इतिहास को फिर से लिखने की एक बड़ी हिंदुत्व साजिश का हिस्सा है। इतिहासकारों ने समाधि की खोज करने वाले व्यक्ति के रूप में तिलक का नाम शामिल करने पर भी सवाल उठाया है। दावा किया जाता है कि तिलक द्वारा समाधि की खोज का कोई ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है। जबकि तिलक ने 1895 के बाद से स्मारक के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व करने में भूमिका निभाई और परियोजना के लिए धन जुटाया, लेकिन जिस बैंक में इसे जमा किया गया था, वह पूरी राशि डूब गई थी। 

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