किसी को भी कानून की महिमा को कमतर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती: दिल्ली उच्च न्यायालय

Delhi High Court
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साल 2019 में महिला ने उच्च न्यायालय का रुख करके उसके पक्ष में आए श्रम विभाग के कर्मचारी मुआवजा आयुक्त के 2017 के आदेश पर अमल करने का अनुरोध किया था। पिछले साल इस मामले में उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना याचिका दर्ज की थी।न्यायमूर्ति कौरव ने पिछले सप्ताह पारित आदेश में कहा कि अवमाननाकर्ता ने भुगतान के संबंध में अपने स्वयं के हलफनामों का पालन करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अदालत की अवमानना के लिए एक व्यक्ति को छह महीने की जेल की सजा सुनाते हुए कहा कि किसी को भी बुरे आचरण के जरिए कानून की महिमा को कम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति पुरुषैंद्र कुमार कौरव ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही की पवित्रता बनाए रखने के लिए कानून के शासन को पूरी ताकत से संरक्षित करने की जरूरत है और जानबूझकर की गई उपेक्षा की पड़ताल की जानी चाहिए, ऐसा न हो कि यह आम आदमी की नजर में न्यायपालिका की गरिमा को कमतर कर दे।

न्यायाधीश ने कहा कि वर्तमान मामले में अवमानना करने वाले ने उच्च न्यायालय के सामने मृतक वाहन चालक की पत्नी को मुआवजे के तौर पर 13 लाख रुपये देने का वादा किया था, लेकिन उसने “जानबूझकर हलफनामे का उल्लंघन करके” अदालत की अवमानना की।इस मामले में एक महिला ने दावा किया था कि उसके पति का मासिक वेतन 15 हजार रुपये था और उसने अवमानना करने वाले व्यक्ति से बकाया पैसा देने का अनुरोध किया था क्योंकि उसे मई 2013 के बाद से कोई भुगतान नहीं किया गया था। दावा किया गया कि अवमाननाकर्ता इस अनुरोध से “नाराज” हो गया और उसने संबंधित व्यक्ति पर हमला कर दिया था, जिसके बाद वह ‘‘लापता’’ हो गया और जनवरी 2015 में उसका शव एक पेड़ से लटका हुआ मिला था।

साल 2019 में महिला ने उच्च न्यायालय का रुख करके उसके पक्ष में आए श्रम विभाग के कर्मचारी मुआवजा आयुक्त के 2017 के आदेश पर अमल करने का अनुरोध किया था। पिछले साल इस मामले में उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना याचिका दर्ज की थी।न्यायमूर्ति कौरव ने पिछले सप्ताह पारित आदेश में कहा कि अवमाननाकर्ता ने भुगतान के संबंध में अपने स्वयं के हलफनामों का पालन करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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