Matrubhoomi: हरित क्रांति के जनक हैं एम.एस. स्वामीनाथन, देश को अकाल से उबारने और किसानों को सशक्त बनाने में निभाई थी अहम भूमिका
एम.एस. स्वामीनाथन जिनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन है, का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम में हुआ था। उन्होंने गेहूं की सबसे बेहतरीन उपज देने वाली किस्मों को विकसित किया, जिसकी मदद से सतत विकास को बढ़ावा दिया गया। दरअसल, अंग्रेजों से मुक्ति मिलने के बावजूद किसी ने भी किसानों को शिक्षित नहीं किया था।
एम.एस.स्वामीनाथन की गिनती भारत के महान कृषि वैज्ञानिक के रूप में की जाती है और इन्हीं के प्रयासों की वजह से 60 के दशक में भारत में हरित क्रांति सफल हो पाई थी। इसी लिए एम.एस. स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक माना जाता है। भारत की आजादी के बाद अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए और लोगों को सशक्त करने का सबसे बड़ा और कारगर तरीका था कि किसानों की उपज अच्छी और ज्यादा से ज्यादा हो। ताकि देश का किसान संपन्न हो सके और अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी निभा सके। यह तो सभी जानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है।
इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: क्या आप जानते हैं विश्व के सबसे बड़े संविधान के रोचक अज्ञात तथ्यों के बारे में ?
एम.एस. स्वामीनाथन ने मेडिकल फील्ड से पढ़ाई की शुरुआत की थी लेकिन बाद में कृषि क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी जागी थी। एम. एस. स्वामीनाथन ने एक दफा कहा था कि The word 'impossible' exists mainly in our minds and that given the requisite will and effort, great tasks can be accomplished. जिसका साधारण सा मतलब है कि 'असंभव' शब्द मुख्य रूप से हमारे दिमाग में मौजूद है लेकिन इच्छाशक्ति और प्रयासों के दम पर महान से महान कार्यों को पूरा किया जा सकता है।
देश की आजादी के लगभग 18 साल बाद 60 के दशक में अनाज का उत्पादन काफी कम हो रहा था और अकाल जैसी स्थिति पैदा होने लगी थी। ऐसे में भारत जैसे विशाल देश को अकाल से तो बचाना ही थी साथ ही साथ अर्थव्यवस्था को रफ्तार भी देनी थी, ऐसे में एम.एस. स्वामीनाथन ने विषम परिस्थितियों के बावजूद भारत को इस समस्या से निजात दिलाया था।
कौन हैं एम.एस. स्वामीनाथन ?
एम.एस. स्वामीनाथन जिनका पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवन स्वामिनाथन है, का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम में हुआ था। उन्होंने गेहूं की सबसे बेहतरीन उपज देने वाली किस्मों को विकसित किया, जिसकी मदद से सतत विकास को बढ़ावा दिया गया। दरअसल, अंग्रेजों से मुक्ति मिलने के बावजूद किसी ने भी किसानों को शिक्षित नहीं किया था, ऐसे में अकाल जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगी, वो भी कृषि प्रधान देश में। इसके पीछे का मुख्य कारण सदियों से चले आ रहे उपकरण और फसलों की उन्नति के लिए बीजों में सुधार का न होना था।
एम. एस. स्वामीनाथन ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और उससे किसानों को अवगत कराया। उन्हें किसानों का मसीहा भी कहा जाता है।
इसे भी पढ़ें: Matrubhoomi: महात्मा गांधी के खिलाफ जाने से भी नहीं कतराई थीं सुचेता कृपलानी, अपने साथ रखती थीं साइनाइड
स्वामीनाथन के बारे में रोचक तथ्य:
- 1960 के दशक में भारत बड़े पैमाने पर अकाल के कगार पर था। उस वक्त एम.एस. स्वामीनाथन ने नॉर्मन बोरलॉग और अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं के HYV बीज को विकसित किया।
- एम.एस. स्वामीनाथन की टीम द्वारा विकसित किए गए बीज के चलते भारत में हरित क्रांति हुई। इसी वजह से एम.एस. स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक माना जाता है।
- एम.एस. स्वामीनाथन ने जूलॉजी और कृषि विज्ञान दोनों में स्नातक किया। इसके अलावा उनके पास 50 से अधिक मानद डॉक्टरेट की डिग्री है। भारत सरकार ने उन्हें 1967 और 1972 में पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
- एम.एस. स्वामीनाथन ने 1943 के बंगाल के अकाल और देश में भोजन की कमी का अनुभव करने के बाद कृषि के क्षेत्र में प्रवेश करने का निर्णय लिया था। उन्हें आलू, चावल, गेहूं, जूट आदि पर अपने शोध के लिए श्रेय दिया गया है।
- स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (1972-1979 तक) और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (1982-88) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया। 1979 में वे कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव थे। एम.एस. स्वामीनाथन को 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- साल 1988 में एम.एस. स्वामीनाथन प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष बने।
- साल 1999 में टाइम पत्रिका ने एम.एस. स्वामीनाथन को 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली एशियाई लोगों की सूची में शामिल किया था।
अन्य न्यूज़