Gujarat में पहले से ज्यादा बड़ी Modi लहर, BJP को प्रचंड बहुमत की उम्मीद

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Anoop Prajapati । May 8 2024 7:07PM

गुजरात में बीजेपी कार्यकर्ताओं की प्रतिबद्धता 400 पार के नारे के प्रति दिख रही है। गुजरात की जनता का रुख 1989 के बाद से गुजरात के हर संसदीय चुनाव में बीजेपी का दबदबा रहा है। खास तौर पर 2014 और 2019 में तो बीजेपी ने सभी 26 सीटें जीती थीं।

इस समय प्रभासाक्षी टीम की चुनाव यात्रा गुजरात में है। गुजरात महात्मा गांधी और सरदार पटेल की भूमि है। इसके अलावा यह भूमि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी है। जिन्होंने अपने कर्मों की बदौलत गुजरात को सजाकर और संवारकर विकसित बनाया है। पीएम मोदी भारत को भी विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन 10 सालों में कई ऐसे काम किये हैं जो अब तक नामुमकिन समझ जाते थे। इसलिए आज मोदी है तो मुमकिन है यह कोई चुनावी नारा नहीं है बल्कि हकीकत बन चुका है। देश में तीसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार जोरों पर है। गुजरात में अब 25 सीटों पर चुनाव होना है। 26 सीटों में से एक सूरत पर बीजेपी उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं। 

राज्य में तमाम दलों के नेता प्रचार में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। प्रभासाक्षी की टीम ने तमाम संसदीय क्षेत्रों का दौरा किया और लोगों के मन की बात, भाजपा के कार्यकर्ताओं का उत्साह और जोश देखा। उनकी प्रतिबद्धता 400 पार के नारे के प्रति भी देखी। इस दौरान कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की। गुजरात की जनता का रुख 1989 के बाद से गुजरात के हर संसदीय चुनाव में बीजेपी का दबदबा रहा है। खास तौर पर 2014 और 2019 में तो बीजेपी ने सभी 26 सीटें जीती थीं। यह चुनाव भी कुछ अलग नहीं लग रहा है क्योंकि संभवतः गुजरात में अब तक की सबसे तेज और बड़ी मोदी लहर चल रही है। बीजेपी की 2022 की जीत को भारत के विधानसभा चुनाव के इतिहास में किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी जीत में से एक के रूप में दर्ज किया गया है। इस बार के लोकसभा चुनाव में गुजरात में बीजेपी ने सूरत की सीट तो निर्विरोध ही जीत ली है। जिसके बाद कांग्रेस ने दावा किया है कि विपक्षी उम्मीदवार इसलिए बाहर हो रहे हैं क्योंकि गुजरात में कोई लोकतंत्र नहीं है। 

कांग्रेस ने बीजेपी को लोकतंत्र का हत्यारा बताना शुरू कर दिया लेकिन कांग्रेस यह नहीं देख रही कि उसके नेताओं, कार्यकर्ताओं और विधायकों में पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने की जो होड़ लगी है। उसका असल कारण यह है कि लोगों को कांग्रेस में अपना भविष्य निजात नहीं आ रहा है। दशकों तक कांग्रेस की सेवा करने वाले अर्जुन मोढ़वाडिया हों या दक्षिण और उत्तर गुजरात से कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले विधायक सभी का यही कहना है कि कांग्रेस का सनातन विरोधी चेहरा हमारे आगे बढ़ाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। गुजरात के लोग बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं और उनको लगता है कि विकास के साथ धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कोई काम कर रहा है तो वह बीजेपी ही है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होने से यहां के लोगों की खुशी देखते ही बन रही है। इसके अलावा गुजरात में लगभग हर घर ऐसा मिल जाएगा जिसके परिवार के लोगों में से कोई ना कोई बीजेपी से किसी न किसी तरह जुड़ा रहा है। गुजरात में खासतौर पर गांधीनगर और अहमदाबाद की दोनों सीटों पर कुछ घंटे में ही समझ आ जाता है कि यहां सवाल बीजेपी की जीत का नहीं बल्कि उसकी जीत के अंतर का है। यहां कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो बीजेपी के अलावा किसी अन्य दल की बात करता हो। अपनी स्थिति मजबूत होने और बूथ लेवल तक संरचनात्मक ढांचा विकसित होने के बावजूद भाजपा 24 घंटे चुनाव जीतने का प्रयास कर रही है।

राज्य में चाय की दुकानों पर लोग राजनीतिक गपशप के दौरान चर्चा करते हैं कि कांग्रेस के उम्मीदवार इससे बाहर हो रहे हैं क्योंकि वे राजनीतिक बलि का बकरा बनने के लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेस के उम्मीदवारों को जो अपमानजनक अंतर से हार का सामना करना पड़ता है उसको देखते हुए पार्टी को उम्मीदवार ढूंढने में भी होती है। गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तमाम प्रयासों के बावजूद मुस्लिम समाज के लोग स्पष्ट रूप से बीजेपी के खिलाफ हैं। उनको लगता है कि पार्टी की जीत में मोदी की लोकप्रियता या बीजेपी के विकास का नहीं बल्कि ईवीएम की सेटिंग का सबसे बड़ा हाथ है। इसके अलावा गुजरात में इस चुनाव के दौरान जातिगत तनाव पैदा करने का प्रयास भी हुआ है। जिससे भाजपा को लगातार दो बार से शत-प्रतिशत सीटों पर जीतने से रोका जा सके। टुनावी रैलियों को संबोधित करते समय राजनेता भी जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हैं। 

केंद्रीय मत्स्य पालन पशुपालन और डेयरी मंत्री तथा राज्यसभा सदस्य पुरुषोत्तम रुपाला की क्षत्रियों पर टिप्पणी इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा रही है। गोधरा के बाद गुजरात एक नई वास्तविकता के साथ तालमेल बिठा चुका था जिसमें सभी जातियां धर्म की बड़ी छतरी के नीचे आ गई थीं। मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जातिगत मुद्दे शायद ही कभी सामने आए होंगे लेकिन उनके दिल्ली जाने के बाद से हालत में परिवर्तन आया है। मोदी के दिल्ली जाने के बाद ही विभिन्न समुदायों ने सत्ता से अधिकतम लाभ उठाने के लिए पुनर्गठित होना शुरू कर दिया। पटेल आरक्षण आंदोलन, दलित आंदोलन और 2016-17 में ठाकुरों का शक्ति प्रदर्शन इस बात उदाहरण हैं। हालांकि जाति के आंदोलन के पीछे के तीन प्रमुख लोगों में से दो हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकुर के बीजेपी में शामिल होने के बाद यह आंदोलन नियंत्रण में आ गए हैं। पटेल शक्तिशाली पाटीदार समुदाय से हैं जो 1980 के बाद से बीजेपी की सफलता का प्रमुख आधार रहे हैं। बताया जाता है कि गुजरात में बीजेपी का उदय काफी हद तक पटेलों के कारण ही हुआ है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी का कहना था कि पटेलों ने सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूले के विरोध में भगवा पार्टी का पूरे दिल से समर्थन किया था। क्षत्रियों और राजपूत पर रूपाला के बयान के बाद बीजेपी के लिए राजनीतिक स्थिति थोड़ी कठिन जरूर हो गई है। 

बीजेपी ने रूपाला को सौराष्ट्र के राजकोट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव में उतारा है। जहां जातिगत मुद्दे हावी रहते हैं। इसलिए रूपाला का विवादित बयान सामने आने के बाद राजपूतों ने उनकी उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग को लेकर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। हालांकि प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी के प्रति अपनी वफादारी व्यक्त करते हुए कहा था कि उन्हें मोदी से कोई समस्या नहीं है। इस हालात से चिंतित रूपाला दिल्ली गए और वहां कुछ बैठक में उन्हें जीत का मंत्र दिया गया। जिसके बाद वह पूरे आत्मविश्वास से लौटे और खुद को प्रचार में पूरी तरह झोंक दिया। जैसे ही उन्होंने अपना नामांकन दाखिल किया तो यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया था कि बीजेपी क्षत्रिय प्रदर्शनकारियों की मांगों के आगे झुकने वाली नहीं है। एक समुदाय को नाराज करने की कीमत पर भाजपा ने रूपाला का समर्थन इसलिए किया था क्योंकि गुजरात की किसी भी लोकसभा सीट पर क्षत्रिय वोट जीत का आधार ही नहीं है। हालांकि क्षत्रिय बीजेपी का वोट शेयर कम कर सकते हैं। लेकिन वे उसकी हार का कारण नहीं बन सकते हैं। बड़े क्षत्रिय समूह के भीतर खुद को राजपूत के रूप में पहचानने वाले प्रदर्शनकारियों कार्यों ठाकुर या कोहली जैसी अन्य महत्वाकांक्षी क्षत्रिय जातियों का समर्थन लगभग नहीं मिला। ठाकुर और कोहली मिलकर गुजरात में सबसे बड़ा चुनावी समूह बनते हैं। देखा जाए तो गुजरात क्षत्रिय सभा जैसे संगठनों द्वारा सभी उपजातियां को एक छत के नीचे एकजुट करने के प्रयास कभी सफल नहीं हुए हैं। 

जब जीकेएस ने आरक्षण लाभ के लिए एकीकरण की मांग की थी तब उन्हें पूर्ववर्ती राजघराने के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। जिन्होंने अपनी उच्च स्थिति पर जोर देते हुए आरक्षण का कड़ा विरोध किया था। बाद में ठाकुर और कोहली को ओबीसी के रूप में शामिल किया गया था। बीजेपी को विरोध प्रदर्शनों से किसी भी संभावित चुनावी नतीजे के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही थी। दरअसल यह विरोध प्रदर्शन पार्टी की योजनाओं को उसे तरह बाधित नहीं कर सकते थे जिस तरह से कोटा आंदोलन के बाद नाराज पाटीदारों ने किया था। जिसने 2017 के चुनाव में गुजरात की 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी की संख्या 100 से नीचे पहुंचा दी थी। इस बार पटेल रूपाला को भाजपा के समर्थन के परिणामस्वरूप कस्बों और गांवों में पाटीदार वोट एकजुट होते दिखे। गांव में क्षत्रियों और पटेलों के बीच प्रतिस्पर्धा दिखी। बीजेपी को इस चुनाव में तथाकथित निचली जातियों का भरपूर समर्थन इसलिए मिला क्योंकि पार्टी क्षत्रियों की मांगों के आगे नहीं झुकी। इसके अलावा एक बात और देखने को मिली है कि राजपूत प्रदर्शनकारी उस तरह से संसाधन नहीं जुटा सके जैसे पाटीदारों ने 2015 के आरक्षण आंदोलन के दौरान किया था। दूसरा क्षत्रियों को समझने का अपने स्तर से प्रयास करने के अलावा भाजपा ने प्रदर्शनकारियों से अपील करने के लिए पूर्व राजघराने के लोगों की भी मदद ली। गुजरात में महिलाएं चाहे किसी भी उम्र या वर्ग की हों, उनकी पहली पसंद मोदी ही हैं। व्यापारियों और युवाओं की भी पहली पसंद मोदी ही नजर आए। क्योंकि उनको लगता है कि वही उनका भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं। युवाओं का कहना था कि मोदी की योजनाएं उन्हें नौकरी के पीछे भागने की बजाय इस लायक बना रही हैं वे नौकरी दे सकें। गुजरात के चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा मोदी ही हैं उनके नाम के आगे तमाम मुद्दे छोटे नजर आते हैं। गुजरात के लोगों को लगता है कि उनका बेटा मोदी सही से देश चला रहा है इसलिए वह हर परिस्थिति में उनके साथ ही खड़े रहेंगे।

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