फर्जी वोटरों के खिलाफ मोदी सरकार का नया चुनाव सुधार, वोटर आईडी met आधार, विपक्ष को क्यों ऐतराज?
रजिस्ट्रेशन अधिकारी आपकी पहचान स्थापित करने के लिए आपका आधार कार्ड मांग सकता है। इस बिल में प्रावधान है कि 18 साल के युवा अब साल में चार बार वोटर के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
हमारे देश के 91 करोड़ से ज्यादा वोटरों के लिए मोदी सरकार की तरफ से एक बड़ा कदम उठाया गया है। चुनाव कानून संशोधन विधेयक 2021 लोकसभा से पास हो गया। इस बिल में वोटर लिस्ट में डबल एंट्री, फर्जी मतदान रोकने के लिए वोटर आईडी और लिस्ट को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रावधान है। इस बिल को लेकर सरकार और विपक्ष के अलग-अलग तर्क हैं। सरकार इसे एक बड़ा चुनाव सुधार बता रही है। वहीं विपक्ष को ये चुनावी स्टंट और इसमें निजता का खतरा नजर आ रहा है। ऐसे में आज के इस विश्लेषण में आपको इस बिल में नया क्या है, इसके फायदे, आपत्तियों के बारे में बताते हैं।
नए बिल में क्या है?
रजिस्ट्रेशन अधिकारी आपकी पहचान स्थापित करने के लिए आपका आधार कार्ड मांग सकता है। इस बिल में प्रावधान है कि 18 साल के युवा अब साल में चार बार वोटर के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। एक जनवरी के साथ 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर को भी नौजवान खुद को वोटर के रूप में रजिस्टर करा सकेंगे। इसलिए युवाओं के वोटर आईडी कार्ड जल्द बन पाएंगे।
सैन्य मतदाताओं की बराबरी को लेकर क्या सुधार?
चुनाव संबंधी कानून में सैन्य मतदाताओं की बराबरी को लेकर है। अब इसे लिंग निरपेक्ष बनाया जा रहा है। वर्तमान कानून के तहत, किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है लेकिन महिला सैन्यकर्मी का पति इसका हकदार नहीं है। सैन्य मतदाताओं को पोस्टल बैलेट के जरिए मतदान करने की सुविधा दी जाती है और महिला सैन्यकर्मी के पति अपना वोट नहीं दे पाते हैं।
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क्या आधार से वोटर आईडी से जोड़ना अनिवार्य होगा?
मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ना स्वैच्छिक है क्योंकि संशोधन विधेयक कहता है कि अगर किसी के पास आधार कार्ड नहीं है तो उसे मतदाता सूची में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
आधार -वोटर आईडी जोड़ने से क्या आसानी होगी?
अगर कोई शख्स शहर बदलता है तो वह आसानी से अपना वोटर आईडी भी शिफ्ट करा सकेगा क्योंकि इससे आधार जुड़ा हुआ है।
विपक्ष ने जताया ऐतराज
लोकसभा में विपक्ष ने इस बिल का जबरदस्त विरोध किया। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, बीएसपी जैसे दलों ने इस पर ऐतराज जताया जबकि कांग्रेस ने तो इस बिल को संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की। ओवैसी ने केएस पुट्टुस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए इस बिल को निजता के मूल अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह ऐसा बिल है जिससे पूरा लोकतंत्र खत्म हो गया है। इस बिल पर चर्चा की जरूरत है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने इसकी जरूरत पर सवाल उठाए।
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