Live-in relationship नैतिक और सामाजिक रूप से अस्वीकार्य: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है। न्यायालय ने यह केरल की 20 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह चुन सकती है कि वह किसके साथ रहना चाहती है। उसके विवाह को अमान्य कर दिया गया था।
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तदनुसार याचिका खारिज की जाती है। याचिकाकर्ता के वकील जे एस ठाकुर के अनुसार, सिंह और कुमारी तरनतारन जिले में एक साथ रह रहे हैं। लुधियाना निवासी कुमारी के माता-पिता को उनका रिश्ता मंजूर नहीं है। ठाकुर ने कहा कि दोनों की शादी नहीं हो सकी क्योंकि कुमारी के दस्तावेज, जिसमें उसकी उम्र का विवरण है, उसके परिवार के पास हैं। इस मामले में पूर्व में उच्चतम न्यायालय ने हालांकि अलग नजरिया अख्तियार किया था। उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मई 2018 में कहा था कि वयस्क जोड़े को शादी के बगैर भी साथ रहने का अधिकार है। न्यायालय ने यह केरल की 20 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वह चुन सकती है कि वह किसके साथ रहना चाहती है। उसके विवाह को अमान्य कर दिया गया था।
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शीर्ष अदालत ने कहा था कि लिव-इन संबंधों को अब विधायिका द्वारा भी मान्यता दी गई है और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों में भी इसे स्थान दिया गया था। अभिनेत्री एस खुशबू द्वारा दायर एक अन्य ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि लिव-इन संबंध स्वीकार्य हैं और दो वयस्कों के साथ रहने को अवैध या गैरकानूनी नहीं माना जा सकता। उसने कहा, “यह सच है कि हमारे समाज में मुख्यधारा का नजरिया यह है कि यौन संबंध सिर्फ वैवाहिक भागीदारों में बनना चाहिए, हालांकि वयस्कों के स्वेच्छा से वैवाहिक दायरे से बाहर यौन संबंध बनाने से कोई वैधानिक अपराध नहीं होता है, उस अपवाद को छोड़कर जिसे भादंवि की धारा 497 के तहत ‘व्यभिचार’ के तौर पर परिभाषित किया गया है।
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