Shaurya Path: Maldives, Israel-Hamas, Russia-Ukraine, North Korea और Indian Navy से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत हमेशा मालदीव के अच्छे और बुरे समय में उसके साथ खड़ा रहा है। 1965 में अपनी स्वतंत्रता के बाद इस द्वीप राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से भारत एक था और उसने तभी से इस देश के साथ अपने राजनयिक संबंध भी स्थापित किए।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह इजराइल-हमास संघर्ष के ताजा हालात, भारत-मालदीव के बीच हुए विवाद, भारतीय नौसेना के शौर्य, रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों पक्षों को अब तक हुए नुकसान और उत्तर कोरिया की बढ़ती आक्रामकता से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. इजराइल-हमास संघर्ष थमवाने के लिए कई देश प्रयास कर रहे हैं क्या उन्हें सफलता मिल सकती है? जिस तरह इजराइल लेबनान में हिज्बुल्ला के ठिकानों पर हमला कर रहा है उससे क्या इस युद्ध का विस्तार होता हुआ नजर आ रहा है?

उत्तर- इजराइल अपना लक्ष्य हासिल किये बिना मानेगा नहीं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा एक चीज और दिख रही है कि पश्चिमी देश इजराइल को युद्धविराम के लिए कह तो रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि वह यह बात आधे अधूरे मन से कह रहे हैं।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा लाल सागर पर युद्ध का प्रभाव और अधिक बढ़ गया है क्योंकि अमेरिका और ब्रिटेन ने यमन में हूती विद्रोहियों के बढ़ते हमलों का जवाब उनके ठिकानों पर लक्षित हमला करके दिया है। उन्होंने कहा कि यदि यमनी विद्रोहियों की मदद के लिए ईरान खुल कर आया तो इस युद्ध का विस्तार होने का अंदेशा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जहां तक संघर्षविराम की संभावना की बात है तो उस पर इज़रायली प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि इज़रायल ने मध्यस्थ कतर के साथ एक समझौता किया है जो गाजा पट्टी में इज़रायली बंधकों को दवाएं मुहैया करायेगा। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि बात दवाओं से आगे बढ़े और फिर से दोनों तरफ से बंधकों की अदला बदली हो और कुछ दिन के लिए युद्ध रुके। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा गाजा में नया संकट यह है कि पूरे क्षेत्र में इंटरनेट और दूरसंचार सेवाएं बंद कर दी गई हैं। उन्होंने कहा कि वहां के मुख्य ऑपरेटर ने कहा है कि फ़िलिस्तीनी क्षेत्र पर इज़रायली बमबारी के परिणामस्वरूप गाजा में सभी इंटरनेट और दूरसंचार सेवाएं काट दी गईं। उन्होंने कहा कि गाजा को फिर से ब्लैक आउट कर दिया गया है जिससे पहले से ही प्रभावित लोगों का जीवन और मुश्किलों से घिर गया है। उन्होंने कहा कि फिलहाल राहत की बात यह है कि इजराइली बल उस तरह से हर जगह बमबारी कर निर्दोषों की जान नहीं ले रहे हैं जैसा कि कुछ समय पहले तक वह करते दिख रहे थे। उन्होंने कहा कि इस समय पुख्ता सूचना के आधार पर ही लक्षित हमले किये जा रहे हैं।

इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi Exclusive: Israel-Hamas Conflict में क्या है ताजा अपडेट, क्या संघर्षविराम के बढ़ रहे हैं आसार?

प्रश्न-2. भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ मालदीव के तीन मंत्रियों की टिप्पणियों को कैसे देखते हैं आप? इस समय मालदीव के राष्ट्रपति चीन की यात्रा पर भी गये हुए हैं इससे भारत को क्या नुकसान हो सकता है?

उत्तर- भारत ने एक राष्ट्र के रूप में मालदीव का उदय होने के बाद से ही उसकी हर तरह से मदद की है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा ‘पड़ोस प्रथम नीति’ को आगे रखकर चलता है लेकिन हाल में देखने को मिला है कि कुछ पड़ोसी हमारे काफी समझाने के बावजूद पैसों के लालच के चलते चीन की चाल में फंस गये। हालांकि जब उन्हें अक्ल आई तब तक उनका काफी नुकसान हो चुका था। उन्होंने कहा कि भारत ने कर्ज में डूब चुके मालदीव को लगातार आर्थिक मदद देकर उबारा, वहां बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में करोड़ों रुपए लगाये, भुखमरी और महामारी के समय वहां भोजन और वैक्सीन पहुँचाई। वहां के पर्यटन क्षेत्र को खड़ा करने में मदद की लेकिन मालदीव की नई सरकार चीन के करीब जाने के लिए भारत को आंखें दिखा रही है। उन्होंने कहा कि हालांकि चीन ने भी मालदीव के राष्ट्रपति की सारी हेकड़ी निकाल दी है क्योंकि जब वह बीजिंग पहुँचे तो उनका स्वागत करने के लिए कनिष्ठ अधिकारियों को भेज दिया और मालदीव के राष्ट्रपति को चीन यात्रा का पूरा कार्यक्रम भी उनके आगमन के दौरान नहीं बताया गया।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत हमेशा मालदीव के अच्छे और बुरे समय में उसके साथ खड़ा रहा है। 1965 में अपनी स्वतंत्रता के बाद इस द्वीप राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से भारत एक था और उसने तभी से इस देश के साथ अपने राजनयिक संबंध भी स्थापित किए। उन्होंने कहा कि 1988 में भारत अब्दुल्ला लुथुफी के तख्तापलट के प्रयास को विफल करने के लिए मालदीव की मदद के लिए आगे आया था। उस समय श्रीलंकाई आतंकवादी समूह लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) द्वारा समर्थित तख्तापलट को भारत ने मिशन कोड-नाम 'ऑपरेशन कैक्टस' के तहत बेअसर कर दिया था।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 1988 से रक्षा और सुरक्षा दोनों देशों के बीच सहयोग का प्रमुख क्षेत्र रहा है। भारत मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) के लिए सबसे बड़ी संख्या में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करता है। विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज़ में कहा भी गया है कि भारत मालदीव की रक्षा प्रशिक्षण आवश्यकताओं का लगभग 70 प्रतिशत पूरा करता है। देखा जाये तो पिछले 10 वर्षों में भारत ने बड़ी संख्या में एमएनडीएफ को प्रशिक्षित किया है। मालदीव के सुरक्षा बलों ने भारत के साथ कई संयुक्त अभ्यास कर भी अपनी ताकत बढ़ाई है। इसके अलावा भारतीय नौसेना ने एमएनडीएफ को हवाई निगरानी उपकरण और बड़ी संख्या में नौसैन्य साजो-सामान प्रदान किया है। एमएनडीएफ भारत द्वारा आयोजित मानवीय सहायता और आपदा राहत, खोज और बचाव, प्रदूषण नियंत्रण और अन्य अभ्यासों में भी सक्रिय रूप से भाग लेता है। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा भारत ने मालदीव में कई विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित किया है। इसमें इंदिरा गांधी मेमोरियल अस्पताल भी शामिल है, जिसे 1995 में भारतीय अनुदान सहायता से बनाया गया था। अस्पताल का नवीनीकरण 2017 में मोदी सरकार के तहत किया गया था। इसके अलावा, मालदीव तकनीकी शिक्षा संस्थान, जिसे अब मालदीव पॉलिटेक्निक के नाम से जाना जाता है, वह 12 करोड़ रुपये की लागत से पूरा हुआ और 1996 में भारत द्वारा मालदीव सरकार को सौंप दिया गया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, भारत-मालदीव आतिथ्य और पर्यटन अध्ययन संकाय की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल गयूम द्वारा सितंबर 2002 में मालदीव में संयुक्त रूप से रखी गई थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत 2021 में मालदीव का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार बन गया। मालदीव को भारतीय निर्यात में इंजीनियरिंग और औद्योगिक उत्पाद जैसे दवाएं और फार्मास्यूटिकल्स, रडार उपकरण, सीमेंट और चावल, मसाले, फल, सब्जियां और पोल्ट्री जैसे कृषि उत्पाद शामिल थे। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भारत की ओर से मालदीव को हमेशा त्वरित सहायता दी जाती रही। उन्होंने कहा कि भारत 2004 की सुनामी के दौरान मालदीव की सहायता करने वाला पहला देश था। साथ ही दिसंबर 2014 में माले में जब जल संकट पैदा हुआ था तब भारत ने पानी तक भेज दिया था। उन्होंने कहा कि मालदीव का निकटतम पड़ोसी होने के नाते भारत की ओर से दी जाने वाली सहायता में रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं। उन्होंने कहा कि भारत मालदीव में कई बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने में लगा हुआ है जिसमें हनीमाधू और गण द्वीप के हवाई अड्डे, ग्रेटर माले कनेक्टिविटी परियोजना और साथ ही गुलहिफाल्हू बंदरगाह का विकास शामिल है। उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में मालदीव में जो सबसे बड़ी परियोजना चला रहा है वह ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट है जिसमें 6.74 किमी लंबा पुल मालदीव की राजधानी माले को तीन निकटवर्ती द्वीपों- विलिंग्ली, गुलहिफाल्हू और थिलाफुशी से जोड़ेगा, जिससे यात्रा का समय कम हो जाएगा। इसके लिए भारत ने 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मंजूरी दी है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा भारत सड़कों, स्ट्रीट लाइटिंग और जल निकासी आदि के प्रबंधन के माध्यम से मालदीव की मदद कर रहा है। भारत की ओर से एक अन्य बड़ी परियोजना के तहत भीड़भाड़ वाले माले वाणिज्यिक बंदरगाह से बोझ कम करने के लिए गुलहिफाल्हू बंदरगाह का विकास भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मालदीव में भारत द्वारा क्रियान्वित की जा रही सबसे बड़ी अनुदान परियोजना 222.98 करोड़ रुपये की लागत से नेशनल कॉलेज फॉर पुलिस एंड लॉ एनफोर्समेंट है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भारत ने अत्याधुनिक कैंसर के इलाज की सुविधा स्थापित करने में मदद करने के अलावा इंदिरा गांधी मेमोरियल अस्पताल के विकास के लिए 52 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं, जो विभिन्न द्वीपों पर 150 से अधिक स्वास्थ्य केंद्रों को जोड़ेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत ने 1996 में तकनीकी शिक्षा संस्थान स्थापित करने में मदद की। इसके अलावा भारत ने मालदीव के शिक्षकों और युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए 5.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए एक कार्यक्रम भी शुरू किया है।  

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 17 नवंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे। उन्होंने सोलिह के शपथ समारोह के ठीक बाद उनके साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की थी। एक महीने बाद, सोलिह ने पदभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत का दौरा किया था। उस दौरान भारत ने मालदीव के लिए 1.4 अरब डॉलर के वित्तीय सहायता पैकेज की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत का एसबीआई आज भी मालदीव का सबसे बड़ा बैंक है और वहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारतीयों की ओर से मालदीव के पर्यटन क्षेत्र को मदद दिये जाने की बात है तो आंकड़े दर्शाते हैं कि पर्यटक के रूप में मालदीव की यात्रा करने वालों में भारतीयों की संख्या सर्वाधिक है और कोविड-19 महामारी के बाद हर साल दो लाख से अधिक भारतीय इस द्वीप राष्ट्र का दौरा करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव के पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में 2.03 लाख से अधिक भारतीयों ने इस द्वीप देश की यात्रा की। साल 2022 में यह संख्या 2.4 लाख से अधिक थी और 2021 में 2.11 लाख से अधिक भारतीयों ने मालदीव की यात्रा की। मालदीव उन कुछ देशों में शामिल है जो महामारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए खुले रहे और उस दौरान करीब 63,000 भारतीयों ने मालदीव को पर्यटन के लिए चुना था। उन्होंने कहा कि मालदीव में 2018 में, 90,474 आगंतुकों के साथ भारतीयों की संख्या पांचवें स्थान पर रही। 2019 में, भारत इस मामले में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग दोगुनी संख्या (1,66,030) के साथ दूसरे स्थान पर पहुंच गया। उन्होंने कहा कि हालांकि, मालदीव की सरकार के तीन मंत्रियों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी किए जाने के बाद भारतीयों के लिए यह पसंदीदा गंतव्य देश अब आलोचना का सामना कर रहा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की चीन यात्रा की बात है तो उसके बारे में बताया जा रहा है कि इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तथा मुइज्जू दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर चर्चा करेंगे। दोनों नेता कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत की नजर मालदीव के राष्ट्रपति की चीन यात्रा पर बनी हुई है। हालांकि अभी सुनने में यह भी आया है कि वह भारत की यात्रा पर भी आएंगे। उन्होंने कहा कि अभी तो पहले मालदीव के राष्ट्रपति को अपने देश में खड़ी हुई राजनीतिक उथल पुथल को थामना है।


प्रश्न-3. हाल ही हमारी नौसेना ने उत्तरी अरब सागर में अपहर्ताओं के चंगुल से भारतीयों समेत चालक दल को सुरक्षित बचाया। इसे कैसे देखते हैं आप? इसके साथ ही नौसेना के मार्कोस कमांडोज की खासियत क्या होती है?

उत्तर- भारतीय नौसेना का प्रदर्शन दिखाता है कि हमारा नौसैन्य बल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना मजबूत हो चुका है। उन्होंने कहा कि नौसेना के विशिष्ट समुद्री कमांडो ‘मार्कोस’ ने अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए उत्तरी अरब सागर में अपहृत वाणिज्यिक जहाज में सवार चालक दल के सभी 21 सदस्यों को बचा लिया। बचाये गये लोगों ने भारतीय नौसेना की भरपूर प्रशंसा करते हुए कहा है कि हमें पूरी उम्मीद थी कि भारत सरकार हमें बचाने के लिए आयेगी। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि लाइबेरिया के ध्वज वाले वाणिज्यिक जहाज के अपहरण के प्रयास पर कार्रवाई करते हुए हुए 15 भारतीयों सहित चालक दल के सभी 21 सदस्यों को बचा लिया। इस जहाज का पांच-छह हथियारबंद लोगों ने अपहरण करने की कोशिश की थी। नौसेना ने एमवी लीला नॉरफोक को अपहृत करने की कोशिश के बाद मदद के लिए एक युद्धपोत, समुद्री गश्ती विमान, हेलीकॉप्टर और पी-8आई और लंबी दूरी के विमान और प्रीडेटर एमक्यू9बी ड्रोन तैनात किए थे। उन्होंने कहा कि एमवी लीला नॉरफोक ने यूनाइटेड किंगडम मैरीटाइम ट्रेड ऑपरेशंस (यूकेएमटीओ) पोर्टल पर एक संदेश भेजा था जिसमें बताया गया था कि पांच से छह अज्ञात सशस्त्र कर्मी जहाज पर सवार हो गए हैं। 

प्रश्न-4. रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक दोनों देशों को कितना नुकसान हो चुका है?

उत्तर- हाल में अमेरिका की एक खुफिया रिपोर्ट सामने आई थी कि युद्ध में रूस को सैन्य स्तर पर इतना ज्यादा नुकसान हुआ है कि उसके पास मौजूदा कर्मियों में से 90 प्रतिशत या तो मारे गये या घायल हो गये। उन्होंने कहा कि समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि नुकसान ने रूस के सैन्य आधुनिकीकरण को 18 साल पीछे धकेल दिया है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “नुकसान ने रूस को अपनी लड़ने की क्षमता को बनाए रखने के लिए असाधारण उपाय करने के लिए मजबूर किया है।'' उन्होंने कहा कि रूस ने दोषियों और वृद्ध नागरिकों की सेना में भर्ती की अनुमति देने के लिए मानकों में ढील दी है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि रूसी सेना ने 3,100 टैंकों के साथ युद्ध शुरू किया था जिसमें से उसने 2,200 खो दिए और उसे 1970 के दशक में निर्मित T62 टैंकों को हटाना पड़ गया। उन्होंने कहा कि वहीं दूसरी ओर न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से यूक्रेन में मरने वालों की संख्या 70,000 के करीब बताई गई थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन की एक तिहाई से ज्यादा आबादी बेघर हो चुकी है जिसमें से अधिकांश देश छोड़ कर दूसरे देशों में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक चीज साफ है कि यूक्रेन को भले जानमाल का ज्यादा नुकसान हुआ हो लेकिन प्रतिष्ठा रूस की भी घटी है। उन्होंने कहा कि आज रूस और यू्क्रेन दोनों ही दूसरे देशों से हथियार मांग कर युद्ध लड़ रहे हैं। फर्क यह है कि यूक्रेन मदद के तौर पर हथियार ले रहा है तो रूस पैसे देकर दूसरे देशों से हथियार ले रहा है।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक ताजा हालात की बात है तो मेयर इहोर तेरेखोव ने बताया है कि दो रूसी एस-300 मिसाइलों ने पूर्वोत्तर खार्किव के केंद्र में एक होटल पर हमला किया, जिसमें पत्रकारों सहित 11 लोग घायल हो गए। इसके अलावा दो अपार्टमेंट ब्लॉक सहित कई अन्य इमारतें भी क्षतिग्रस्त हो गईं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा खार्किव क्षेत्र के कुपियांस्क जिले के ओल्खोवत्का गांव पर रूसी निर्देशित बम हमले में एक व्यक्ति की मौत हो गई। उन्होंने बताया कि कम से कम 10 निजी घर, एक दुकान और एक स्कूल क्षतिग्रस्त हो गए। 

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा रूस और यूक्रेन ने दक्षिण और पूर्व में अवदीवका, मरिंस्की, कुपियांस्क और खेरसॉन के आसपास अग्रिम पंक्ति में तीव्र लड़ाई की सूचना दी है। उन्होंने कहा कि रूस ने दावा किया कि यूक्रेन ने टकराव में कम से कम 450 सैनिकों को खो दिया है, जबकि यूक्रेन ने दावा किया कि उसने 800 रूसी सैनिकों को मार डाला है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा इस युद्ध में एक नया अपडेट यह है कि यूक्रेन ने एक नई ऑनलाइन सेवा की घोषणा की है जो रूसियों को यह पता लगाने की अनुमति देगी कि उनके जो परिजन सैनिक के रूप में यूक्रेन में लड़ रहे थे वह मारे जा चुके हैं या युद्धबंदी के रूप में यूक्रेन में मौजूद हैं।

प्रश्न-5. उत्तर कोरिया की बढ़ती आक्रामकता और किम जोंग उन की बहन की ओर से रक्षा मामलों पर बयानबाजी को कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- उत्तर कोरिया का जो भी शासक रहा है, या अभी है या आगे भी होगा उसको आक्रामकता दिखानी ही पड़ेगी क्योंकि वहां जिस प्रकार की तानाशाही है उसके चलते शासक को लोगों का ध्यान मूल मुद्दों से भटका कर रखना पड़ता है। उन्होंने कहा कि किम आजकल अपनी बहन को बड़ी भूमिका में लाने का प्रयास करते दिख रहे हैं लेकिन जैसे ही उन्हें लगेगा कि वह उनके लिए खतरा हो सकती हैं वैसे ही वह उनको पीछे धकेल देंगे।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़