Vanakkam Poorvottar: 500 उग्रवादियों ने डाले हथियार, Tripura को उग्रवाद से पूरी तरह मुक्ति दिला कर गृह मंत्री अमित शाह ने रचा इतिहास
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनएलएफटी और एटीटीएफ के करीब 500 उग्रवादियों ने यहां आत्मसमर्पण कर दिया और बाकी के कैडर आने वाले दिनों में आत्मसमर्पण करेंगे। इस दौरान उग्रवादियों ने अत्याधुनिक आग्नेयास्त्र सौंप दिए।
त्रिपुरा में प्रतिबंधित समूह ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (एनएलएफटी) और ‘ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स’ (एटीटीएफ) के करीब 500 उग्रवादियों ने मंगलवार को मुख्यमंत्री माणिक साहा के समक्ष अपने हथियार डाले। सिपाहीजाला जिले के जम्पुइजाला में एक कार्यक्रम में उग्रवादियों का मुख्यधारा में स्वागत करते हुए साहा ने कहा कि उग्रवाद किसी समस्या का समाधान नहीं है। उन्होंने बड़ी संख्या में उग्रवादियों के आत्मसमर्पण के बाद इस पूर्वोत्तर राज्य को ‘‘पूरी तरह से उग्रवाद से मुक्त’’ घोषित किया। साहा ने कहा, ‘‘केंद्र और राज्य सरकार विभिन्न योजनाएं शुरू कर स्वदेशी लोगों के सम्पूर्ण विकास के लिए काम करती रही है। मैं हिंसा का रास्ता छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने वाले लोगों का स्वागत करता हूं।’’
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनएलएफटी और एटीटीएफ के करीब 500 उग्रवादियों ने यहां आत्मसमर्पण कर दिया और बाकी के कैडर आने वाले दिनों में आत्मसमर्पण करेंगे। इस दौरान उग्रवादियों ने अत्याधुनिक आग्नेयास्त्र सौंप दिए। हम आपको बता दें कि उग्रवादियों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में चार सितंबर को दिल्ली में केंद्र तथा राज्य सरकार के साथ हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद आत्मसमर्पण किया है। केंद्र ने दोनों समूहों के उग्रवादियों के पुनर्वास के लिए 250 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की घोषणा की है।
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हम आपको बता दें कि हथियार डालने वालों में एनएलएफटी प्रमुख विश्वमोहन देबबर्मा, एनएलएफटी (पीडी) सुप्रीमो परिमल देबबर्मा और एनएलएफटी (मूल) नेता शामिल थे। प्रसेनजीत देबबर्मा और एटीटीएफ प्रमुख अलेंद्र देबबर्मा ने कहा कि उनके संगठन के 380 कार्यकर्ताओं में से 261 ने हथियार डाल दिए हैं, जबकि शेष बांग्लादेश में “फंसे” हुए हैं।
इस बीच, अधिकारियों ने कहा कि इन लोगों ने 168 आग्नेयास्त्रों के साथ आत्मसमर्पण किया, जिनमें चीनी ग्रेनेड, लैंड माइंस, आरपीजी-7, एम-20 पिस्तौल और कलाश्निकोव बंदूकें शामिल हैं। अधिकारियों ने कहा कि उनमें से कई हथियार अमेरिकी और जर्मन निर्मित थे।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाने के चार दिन बाद 8 सितंबर को प्रतिबंधित समूहों के 328 कार्यकर्ताओं ने हथियार डाल दिए थे।
इस बीच, मुख्यमंत्री साहा ने दावा किया कि मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में विभिन्न समूहों के साथ 12 शांति समझौतों के कारण पूर्वोत्तर में उग्रवाद लगभग शून्य हो गया है। उन्होंने कहा कि इनमें से तीन समझौते त्रिपुरा स्थित संगठनों के साथ किए गए हैं। उन्होंने कहा, "अब तक 10,000 से अधिक कार्यकर्ताओं ने हथियार डाल दिए हैं। हिंसा और उग्रवाद समस्याओं का समाधान नहीं है।"
हथियार डालने वालों ने गृह मंत्री अमित शाह और सुरक्षा एजेंसियों को धन्यवाद दिया और कहा कि वह सामान्य जीवन में वापस आकर खुश हैं। उन्होंने कहा, "हम पूर्वोत्तर में शांति की ओर बढ़ रहे हैं। कई अन्य लोग भी हमारी तरह सोचते हैं। केंद्र और एनएससीएन (नागालैंड) के बीच बातचीत जारी है।" उन्होंने अन्य समूहों से भी उनके मार्ग का अनुसरण करने की अपील की, लेकिन कहा कि सरकार को राजनीतिक मुद्दों को हल करने में "ईमानदार" होना चाहिए। एनएलएफटी प्रमुख ने कहा, "यह हमारा देश है। मेरा परिवार और मैं राज्य से हैं। हमने हथियार क्यों उठाए, इसका एक कारण है। हम वंचित और दबे-कुचले वर्गों की खातिर (सामान्य जीवन में) वापस आए हैं।" 1940 के दशक में जन शिक्षा आंदोलन के पूर्व विद्रोही नेता दशरथ देव (देबबर्मा) की तरह संभावित राजनीतिक छलांग के बारे में सवालों को टालते हुए, विश्वमोहन ने कहा कि कुछ भी निश्चित नहीं है और वह शांति समझौते के लागू होने के बाद "देखेंगे कि क्या होता है"।
हम आपको बता दें कि NLFT की स्थापना 12 मार्च, 1989 को हुई थी, जिसके नेता त्रिपुरा नेशनल वॉलंटियर्स (TNV) के पूर्व विद्रोही नेता धनंजय रियांग थे। NLFT का नेतृत्व विश्वमोहन के हाथों में चला गया, जब नयनबासी, जिन्हें समूह से बाहर कर दिया गया था, ने त्रिपुरा पुनरुत्थान सेना (TRA) के रूप में एक नया संगठन बनाया, लेकिन अंततः कुछ साल बाद अपने सभी सदस्यों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया।
केंद्र ने 1997 में इसे प्रतिबंधित कर दिया था और उन्हें गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और आतंकवाद निरोधक अधिनियम (POTA) जैसे कड़े कानूनों का सामना करना पड़ा।
उधर, 212 कार्यकर्ताओं के साथ आत्मसमर्पण करने वाले प्रसेनजीत को उम्मीद थी कि समझौते में केंद्र द्वारा किए गए वादे - 250 करोड़ रुपये का फंड, बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा और आदिवासियों के लिए लाभ, पूरे किए जाएंगे, जबकि एक अन्य ने दावा किया कि उन्होंने आदिवासियों के लिए सरकार के काम से प्रभावित होकर हथियार डाले।
लंबा सशस्त्र संघर्ष
त्रिपुरा में सशस्त्र संघर्ष 1967 से शुरू हुआ, जब सेंगक्राक नामक एक छोटे संगठन ने हथियार उठाए, उग्रवाद का बोलबाला 80 के दशक के अंत में आया, जब एनएलएफटी और एटीटीएफ सहित कई विद्रोही समूह उभरे।
टीएनवी की एक शाखा, एटीटीएफ जुलाई 1990 में ऑल त्रिपुरा ट्राइबल फोर्स के रूप में अस्तित्व में आई और 1992 में इसका नाम बदलकर एटीटीएफ कर दिया गया। इसके पहले नेता रंजीत देबबर्मा अब भाजपा की सहयोगी टीआईपीआरए मोथा के विधायक हैं।
एटीटीएफ मुख्यतः उत्तरी त्रिपुरा और दक्षिणी त्रिपुरा जिलों तक ही सीमित था और 1991 में हथियारों का बड़ा जखीरा जुटाकर, युवाओं की भर्ती करके एक प्रमुख हितधारक के रूप में उभरा था। बहरहाल, अब जब सब मुख्यधारा के जीवन में लौट कर त्रिपुरा को आगे बढ़ाना चाह रहे हैं तो इसका स्वागत किया ही जाना चाहिए।
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