FRI में रखे गए 704 साल पुराने पेड़ पर लिखे भारतीय इतिहास में नहीं दी गई हिंदू राजाओं को जगह, Mughal का किया महिमामंडन

Deodar tree
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इसी इंस्टीट्यूट में एक म्यूजियम भी है, जिसका नाम है टिंबर म्यूजियम (प्रकाष्ठ संग्रहालय)। ये एक ऐसा म्यूजियम है जहां जानें पर दर्शकों को ऐसी वस्तु देखने को मिलेगी जो पूरी दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं है। इस इंस्टीट्यूट के म्यूजियम में रखा है देवदार का एक पेड़, जिसकी उम्र का अंदाजा लगाना आसानी से संभव नहीं है।

देहरादून की विशेषता की कहानी वन अनुसंधान संस्थान के बिना अधूरी रहती है। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यू (एफआरआई) का अपना इतिहास है, जो बेहद रोचक रहा है। एफआरआई भारत के उन चुनिंदा इंस्टीट्यूट में शुमार है जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मान के साथ नाम लिया जाता है। स्वतंत्रता से भी पुराने इस संस्थान को देखने के लिए देश विदेश से लोग आते है।

इसी इंस्टीट्यूट में एक म्यूजियम भी है, जिसका नाम है टिंबर म्यूजियम (प्रकाष्ठ संग्रहालय)। ये एक ऐसा म्यूजियम है जहां जानें पर दर्शकों को ऐसी वस्तु देखने को मिलेगी जो पूरी दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं है। इस इंस्टीट्यूट के म्यूजियम में रखा है देवदार का एक पेड़, जिसकी उम्र का अंदाजा लगाना आसानी से संभव नहीं है। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के टिंबर म्यूजियम में एक पेड़ का ऐसा हिस्सा रखा गया है जो कि वर्षों पुराना है। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में एक ऐसा पेड़ है जो 704 साल पुराना है। ये पेड़ कुतुब मीनार के समय का है, यानी जब कुतुब मीनार का निर्माण शुरु हुआ था उस समय ये पेड़ पौधे के रूप में था।

इस पेड़ के बारे में जानकारी है कि 1215 में जब कुतुब मीनार का निर्माण हुआ था उस समय इस पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। वर्ष 1325 ईसवी में मोहम्मद तुगलक का राज्याभिषेक किया गया था। उस समय इस पेड़ की उम्र 105 वर्ष के आस पास थी। तैमूर लंग 1398 में जब भारत आया तय पेड़ 180 वर्ष पूरे कर चुका था। गुरुनानक देव का जन्म 1469 में हुआ था और तब इस पेड़ की उम्र लगभग 250 वर्ष के आसपास थी। जब पेड़ की उम्र 290 वर्ष की थी तब वास्को डिगामा कलिकट में आया था। पेड़ की उम्र 380 वर्ष के आसपास थी जब 1600 ईसवी में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई थी। पेड़ की उम्र 420 वर्ष की थी जब आगरा में ताज महल का निर्माण हुआ था, जो वर्ष 1632 की बात है। वर्ष 1674 में शिवाजी को छत्रपति की उपाधि दी गई थी तब पेड की उम्र 460 वर्ष की थी। हर बीतते समय के साथ इस पेड़ ने कई तरह के बदलाव देखे हैं।

वर्ष 1857 में जब पेड़ की उम्र 640 वर्ष थी तब देश में स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत की गई थी। वर्ष 1869 में महात्मा गांधी का जन्म हुआ तब भी पेड़ अपने शान से खड़ा था। पेड़ की उम्र 660 वर्ष के आसपास पहुंचने पर वर्ष 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की गई थी। वर्ष 1914 मे पहले विश्व युद्ध के दौरान भी पेड़ शान से खड़ा था। इसके बाद इसने अंतिम ऐतिहासिक घटना देखी जो थी जलियावालां बाग, जो 1919 में हुई थी। दरअसल जानकारी के मुताबिक इस पेड़ पर समय के साथ कीड़े लग गए थे और पेड़ की नींव काफी कमजोर पड़ गई थी। यही कारण था कि ये पेड़ गिरने की कगार पर पहुंच चुका था।

एफआरआई में है संरक्षित

इस पेड़ को संरक्षित करने के लिए एफआईआर के म्यूजिम में इसे रखा गया था। ये पेड़ काफी बड़े आकार का था, ऐसे में इसे पूरा यहां रखना संभव नहीं था। ऐसे में एफआरआई में महज चार हिस्सों में इसे जोड़कर एफआरआई के म्यूजियम में रखा था। आज भी ये पेड़ एफआरआई के म्यूजियम में रखा हुआ है। इस पेड़ को टिहरी गढ़वाल के बालचा टौंस के वन में पाया गया था। देश दुनिया के लोग आज भी इस पेड़ को देखने के लिए यहां पहुंचते है।

हिंदू राजाओं का नहीं है जिक्र

हालांकि इस पेड़ के अवशेष पर खास टाइमलाइन उकेरी गई है जिस पर 704 वर्षों के दौरान हुआ खास ऐताहासिक घटनाओं को भी उकेरा गया है। हालांकि इस पेड़ पर उकेरी गई घटनाओं में अधिकतर घटनाएं मुगल काल से संबंधित हैं। भारतीय इतिहास को मुगल काल से जोड़कर रखा गया है। गौरतलब है कि मुगल काल के दौरान भी देश में कई हिंदू राजा हुआ करते थे। इसमें मेवाड़ के राणा सांगा, विजयनगर में कृष्णदेव राय का नाम भी शामिल हैं। इसके अलावा वर्ष 1540 में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था, जिनकी मृत्यु 1597 मे हुई थी, मगर इनके जीवन के बारे में भी इस देवदार के पेड़ के तने पर जानकारी नहीं उकेरी गई है। इसी दौरान भारत में रानी पद्मावती ने 1303 में जौहर कर अपनी स्वाभीमान की रक्षा की थी, जिसका जिक्र टाइमलाइन पर नहीं है।

इस जानकारी से साफ है कि इस दौरान अधिकतर मुगलों के संबंध में ही सब जानकारी दी गई है जबकि भारत में उस दौरान मुगल के अलावा हिंदू सभ्यता भी थी। ऊपर दिए गए सभी उदाहरण हैं कि भारत देश सिर्फ मुगलों के अधीन ही नहीं रहा है बल्कि यहां हिंदू राजाओं ने भी राज किया है और मुगलों से लड़ते हुए अपनी जान न्यौछावर की है। भारत में ऐसे कई राजा और रानियां हुए हैं जिनकी बहादुरी ने मुगलों के भी दांत खट्टे कर दिए थे। एक तरफ अगर मुगल सम्राटों ने अपना आधिपत्य स्थापित किया था तो दूसरी तरफ हिंदू राजाओं ने भी वीरता के साथ युद्ध करना स्वीकार किया।

ऐसे में सवाल उठता है कि स्वतंत्रता आंदलोन के दौरान जब इस पेड़ को एफआरआई में स्थापित किया गया था तब तत्कालीन कांग्रेस पार्टी ने सिर्फ मुगलों की चर्चा ही यहां क्यों की और अन्य हिंदू राजाओं का जिक्र क्यो नहीं किया जबकि हिंदू राजाओं का भी इतिहास में अहम और महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 

बता दें कि ये आरोप कई बार लगता रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने समय के साथ भारतीय इतिहास को खत्म करने का काम किया है। गौरतलब है कि कुतुब मीनार के निर्माण के दौरान ही जैन मंदिर को तोड़ा गया था, जिसका जिक्र आज के समय में किसी किताब में देखने को नहीं मिलता है। ऐसे में हिंदूओं के साथ जो कृत्य और दुर्व्यवहार किए गए उनकी कोई जानकारी इतिहास के पन्नों पर उपलब्ध नहीं है। हर समय हिंदुओं को मिटाने के लिए कदम उठाए गए। खासतौर से कांग्रेस पार्टी ने इस दिशा में काम किया था। वर्षों से ही पार्टी हिंदुओं को दबाने और कुचलने का काम करती आई है, जिसका उदाहरण वर्षों से एफआरआई में रखा देवदार का पेड़ बना हुआ है। कांग्रेस के नेता बड़े स्तर पर हिंदू राजाओं के साथ मिलकर उनके इतिहास को दुनिया तक ला सकते थे मगर ऐसा ना करते हुए सिर्फ मुगलों के बारे में जानकारी आगे करते हुए उन्हें इतिहास में महान दिखाया गया है। तत्कालीन सरकार और नेताओं ने हिंदुओं के इतिहास को दफनाते हुए मुगलों के इतिहास को महान दिखाया गया है।

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