मशहूर पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कहा, प्रदूषण की परवाह किसे है? बताया क्यों नहीं मिल रही लोगों को राहत

प्रदूषण से लड़ने के क्रम में हमें तीन बातों का ध्यान रखना होगा पहला पिछले कई सालों से नवंबर का महीना इतना ज्यादा प्रदूषण वाला क्यों बना हुआ है? और इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है? सुनीता नारायण कहती है कि दरअसल हम इस बात से अनभिज्ञ हैं।
दिल्ली में सर्दियां शुरू हो चुकी हैं। हल्की हल्की ठंड में लोग प्रदूषण की दम घुट देने वाली लहर से भी बहुत परेशान हैं। लेकिन शायद लोगों को इसकी परवाह कम ही है कि पर्यावरण का स्तर कितना कम होना चाहिए। लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रदूषण से परेशान तो है लेकिन इस परेशानी कि वह परवाह नहीं करते। प्रख्यात पर्यावरणविद सुनीता नारायण कहती हैं, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर कितना कम होना चाहिए हवा की गति धीमी होने पर ठंडी हवाओं के जमने से प्रदुषण का स्तर बढ़ जाता है तो उसे जल्दी से जल्दी ठीक किया जा सके।
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सुनीता नारायण कहती है हर साल इसी तरह प्रदूषण का दौर आता है और चला जाता है हम भी इस दौर से गुजरने के बाद इसकी पीड़ा भूल जाते हैं। अगर हम इसी तरह से अपनी पीड़ा बोलते रहे और लापरवाह बने रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम स्वच्छ हवा पाने का अधिकार खो देंगे। प्रदूषण का आरोप प्रत्यारोप तो हम टीवी और समाचार पत्रों के जरिये एक दूसरे पर लगाते हैं। ये आरोप-प्रत्यारोप अखबारों की सुर्खियां तो बनते हैं लेकिन इससे प्रदूषण से राहत नहीं मिल सकती।
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प्रदूषण से लड़ने के क्रम में हमें तीन बातों का ध्यान रखना होगा पहला पिछले कई सालों से नवंबर का महीना इतना ज्यादा प्रदूषण वाला क्यों बना हुआ है? और इसके लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है? सुनीता नारायण कहती है कि दरअसल हम इस बात से अनभिज्ञ हैं दूसरा जैकी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब तक क्या कोशिशें की गई है और क्या की जा रही है? और हम इसमें सफल क्यों नहीं हो रहे हैं? तीसरा ऐसा प्रयास किया जाए कि हम प्रदूषण वाली हवा में सांस लेने से खुद को कैसे बचा सकें? प्रदूषण के कारणों को समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है प्रदूषण स्थानीय रूप से उत्पन्न होता है, पड़ोसी राज्यों से आता है इसके लिए यह कारक दोनों सम्मिलित रूप से जिम्मेदार हैं। और इसे आसानी से समझा जा सकता है।
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