Prajatantra: लालू यादव के दांव से बिहार में धड़ाम हुई कांग्रेस की सियासत, पप्पू यादव और कन्हैया हुए किनारे
एनडीए गठबंधन जहां मजबूती से चुनाव लड़ता दिखाई दे रहा है तो वहीं इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और राजद आपस में ही लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। एनडीए में जहां सभी दलों ने मिल बैठकर सीटों और उम्मीदवारों पर फैसला किया तो वहीं इंडिया गठबंधन में लालू यादव का ही दबदबा दिखाई दे रहा है।
बिहार के सियासी समर में मुकाबला दिलचस्प होता दिखाई दे रहा है। एक ओर जहां बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन है तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन है जिसमें राजद और कांग्रेस मुख्य रूप से शामिल है। एनडीए ने जहां बिहार में चुनाव का पूरी तरीके से फार्मूला निकाल लिया है तो वहीं इंडिया गठबंधन में टेंशन अभी भी बरकरार है। एनडीए के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां चुनावी अभियान की शुरुआत भी कर दी है जिसमें नीतीश कुमार भी शामिल रहे तो वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव एक ऐसी सीट पर राजद उम्मीदवार के नामांकन पर पहुंचे थे जहां इंडिया गठबंधन के भीतर आपस में ही टकराव है। एनडीए गठबंधन जहां मजबूती से चुनाव लड़ता दिखाई दे रहा है तो वहीं इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और राजद आपस में ही लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। एनडीए में जहां सभी दलों ने मिल बैठकर सीटों और उम्मीदवारों पर फैसला किया तो वहीं इंडिया गठबंधन में लालू यादव का ही दबदबा दिखाई दे रहा है।
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सीटों का बंटवारा
काफी उठा पटक और माथापच्ची के बाद इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे पर फैसला हो सका। सीट बंटवारे में लालू का ही दबदबा दिखाई दिया। 40 सीटों में से राजत 26 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। जबकि कांग्रेस 9 सीट और वाम दलों के खाते में 5 सीटें गई हैं। राजद जिन सीटों पर चुनाव लड़ रहा है उनमें औरंगाबाद, गया, जमुई, नवादा, सारण, पाटलिपुत्र, बक्सर, उजियारपुर, जहानाबाद, दरभंगा, बांका, अररिया, मुंगेर, सीतामढ़ी, झंझारपुर, मधुबनी, सिवान, शिवहर, वैशाली, हाजीपुर, सुपौल, वाल्मीकि नगर, पूर्वी चंपारण, पूर्णिया, मधेपुरा और गोपालगंज शामिल है। जबकि दूसरी ओर किशनगंज, कटिहार, समस्तीपुर, पटना साहिब, सासाराम, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और महाराजगंज में कांग्रेस अपने उम्मीदवार उतार रही है। भाकपा माले को आरा, काराकट और नालंदा का सीट दिया गया है जबकि साीपीआई के खाते में बेगूसराय और सीपीएम के खाते में खगड़िया सीट आई है। लालू यादव के दबाव में कांग्रेस को पूर्णिया जैसी सीट छोड़नी पड़ी जहां से उसने मजबूत उम्मीदवार पप्पू यादव को अपनी पार्टी में शामिल कराया था।
लालू को पसंद नहीं पप्पू यादव और कन्हैया कुमार?
पप्पू यादव हाल में ही अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया था। वह कांग्रेस के सिंबल से पूर्णिया से चुनाव भी लड़ने वाले थे। लेकिन यह सीट लालू यादव ने अपने पास रख ली। इतना ही नहीं, पूर्णिया के आसपास वाले मधेपुरा और सुपौल सीट भी लालू की पार्टी के पास है। ऐसे में पप्पू यादव के लिए कोई विकल्प नहीं बचा और ऐसा लगा कि लालू यादव की रणनीति की वजह से उन्हें नुकसान झेलना पड़ा है। हालांकि, पप्पू यादव ने पूर्णिया सीट से नामांकन निर्दलीय तौर पर दाखिल कर दिया है और ऐसे में राजद उम्मीदवार बीमा भारती की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। दूसरी ओर कांग्रेस कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय सीट चाहती थी। लेकिन लालू यादव ने एकतरफा फैसला लेते हुए यह सीट लेफ्ट को दे दी ताकि कन्हैया कुमार के लिए कोई जगह न बच सके। भागलपुर से भी कन्हैया कुमार के लड़ने की बात कही जा रही थी। लेकिन लालू यादव ने अड़ंगा लगा दिया जिसके बाद कांग्रेस की ओर से अजीत शर्मा को चुनावी मैदान में उतरा गया। बिहार के राजनीतिक विश्लेषक यह दावा कर रहे हैं कि लालू यादव को यह लगता है कि पप्पू यादव और कन्हैया कुमार भविष्य में तेजस्वी यादव के लिए चुनौती बन सकते हैं इसलिए इन दोनों नेताओं को उनकी ओर से कमजोर करने की कोशिश होती रहती है।
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इन दो सीटों पर भी टकराव
लाल यादव कटिहार सीट अपने पास रखना चाहते थे लेकिन कांग्रेस तारीक अनवर के लिए यह सीट लेना चाहती थी। ऐसे में लालू यादव को यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ना पड़ा। हालांकि लालू यादव अपने राज्यसभा सांसद अहमद अशफाक करीम के लिए यह सीट चाहते थे। उन्होंने प्रॉमिस भी कर दिया था। लेकिन अब वह टिकट नहीं दे पा रहे हैं। कांग्रेस ने तारीक अनवर को टिकट दे दिया है। ऐसे में अशफाक करीम अब कटिहार से निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी में है। दूसरी ओर औरंगाबाद से कांग्रेस नेता निखिल कुमार टिकट चाहते थे। लेकिन लालू यादव ने एक तरफा फैसला लेते हुए जदयू छोड़कर आए पूर्व विधायक अभय कुशवाहा को मैदान में उतार दिया। कांग्रेस ने इसको लेकर लालू के समक्ष नाराजगी भी दिखाई लेकिन यहां भी लालू मजबूत दिखे। एक राजद नेता ने कहा कि जब से कांग्रेस ने 2020 के विधानसभा चुनावों में लड़ी गई 70 सीटों में से केवल 19 सीटें जीतीं, तब से उनका (लालू) कांग्रेस पर से विश्वास उठ गया है। जबकि हम कांग्रेस को गठबंधन में चाहते थे, लेकिन हम नहीं चाहते थे कि यह एक बोझ बन जाए।
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