क्या Nepal Earthquake की वजह से हुआ Sikkim Disaster? वैज्ञानिकों की चिंता बहुत गंभीर संकेत दे रही है

Sikkim Flood
ANI

नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी उपग्रह चित्रों से पता चला है कि 17 सितंबर को इसकी सीमा की तुलना में दक्षिणी ल्होनक झील का क्षेत्रफल 100 हेक्टेयर से अधिक कम हो गया है। यह दर्शाता है कि झील पर बादल के फटने से उत्तरी सिक्किम में तीस्ता नदी बेसिन में अचानक बाढ़ आ गई।

वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे हैं कि क्या मंगलवार को नेपाल और उसके आस-पास के क्षेत्र में आया जोरदार भूकंप ही सिक्किम में ल्होनक झील पर बादल फटने और तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ की असली वजह है? हम आपको बता दें कि झील पर बादल के फटने से चुंगथांग बांध भी टूट गया, जो राज्य की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है। यह 1,200 मेगावाट तीस्ता तीसरे चरण जलविद्युत परियोजना का हिस्सा है जिसमें राज्य सरकार प्रमुख रूप से हितधारक है। 

हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी उपग्रह चित्रों से पता चला है कि 17 सितंबर को इसकी सीमा की तुलना में दक्षिणी ल्होनक झील का क्षेत्रफल 100 हेक्टेयर से अधिक कम हो गया है। यह दर्शाता है कि झील पर बादल के फटने से उत्तरी सिक्किम में तीस्ता नदी बेसिन में अचानक बाढ़ आ गई। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''नेपाल में आया भूकंप सिक्किम में अचानक आई बाढ़ का कारण हो सकता है। झील पहले से ही असुरक्षित थी और 168 हेक्टेयर में फैली हुई थी। इसका क्षेत्रफल अब 60 हेक्टेयर कम हो गया है, इसलिए लगभग 100 हेक्टेयर पानी की मात्रा स्तर को तोड़ चुकी है।’’ घटनास्थल पर गए कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप के कारण वहां बाढ़ आई होगी। उन्होंने कहा कि बाढ़ की चेतावनी बांग्लादेश के साथ भी साझा की गई है। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) उपग्रह इमेजरी से पता चला कि झील लगभग 162.7 हेक्टेयर में फैली हुई थी। 28 सितंबर को इसका क्षेत्रफल बढ़कर 167.4 हेक्टेयर हो गया और भारी गिरावट के साथ 60.3 हेक्टेयर रह गया।

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जहां तक सिक्किम के हालात की बात है तो आपको बता दें कि उत्तरी सिक्किम में ल्होनक झील पर बादल फटने से तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आने के बाद अब तक 14 लोगों की मौत की खबर है जबकि 100 से ज्यादा लोग लापता बताये जा रहे हैं। इस बीच, सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसएसडीएमए) ने बुलेटिन में बताया कि आपदा के बाद से अब तक 2,011 लोगों को बचाया गया है जबकि 22,034 लोग इससे प्रभावित हुए हैं। बुलेटिन में बताया गया कि राज्य सरकार ने आपदा से प्रभावित चार जिलों में 26 राहत शिविर स्थापित किए हैं। गंगटोक जिले के आठ राहत शिविरों में कुल 1,025 लोगों ने शरण ली है जबकि 18 अन्य राहत शिविरों में रह रहे लोगों के आंकड़ें अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं। हम आपको बता दें कि उत्तरी सिक्किम में ल्होनक झील में बादल फटने से तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ के कारण भारी मात्रा में जल जमा हो गया जो चुंगथांग बांध की ओर बह निकला। जल के तेज बहाव ने बिजली संयंत्र के बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया और निचले इलाकों में बसे शहरों और गांवों में बाढ़ आ गई। बाढ़ से राज्य में 11 पुल बह गए जिसमें अकेले मंगन जिले के आठ पुल भी शामिल हैं। वहीं, नामचि में दो और गंगटोक में एक पुल बह गया। राज्य के चार प्रभावित जिलों में पानी की पाइपलाइन, सीवर लाइनें और कच्चे एवं पक्के 277 घर क्षतिग्रस्त हो गए।

चुंगथांग शहर में बाढ़ से सबसे अधिक नुकसान हुआ है जिसमें इसका 80 प्रतिशत हिस्सा बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। राज्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण राजमार्ग संख्या-10 के कई हिस्सों को भी क्षति पहुंची है। रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने बताया कि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) चुंगथांग और मंगन में बचाव कार्यों में राज्य की मदद कर रहा है जहां चार महत्वपूर्ण पुल बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। उन्होंने कहा, 'बीआरओ ने भारी बारिश और बेहद खराब मौसम के बीच 200 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है।' प्रवक्ता ने कहा, 'लापता सैन्यकर्मियों के लिए राहत एवं बचाव अभियान जारी हैं।'

मंगन जिले में इस आपदा से लगभग 10,000 लोग प्रभावित हुए हैं जबकि पाकयोंग में 6,895, नामचि में 2,579 और गंगटोक में 2,570 लोग प्रभावित हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घटना के तुरंत बाद सिक्किम के मुख्यमंत्री पीएस तमांग से बात कर राज्य में बादल फटने से तीस्ता नदी में अचानक आयी बाढ़ से उपजे हालात की समीक्षा की थी। प्रधानमंत्री ने राज्य सरकार को हरसंभव मदद का आश्वासन भी दिया था।

हम आपको यह भी बता दें कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे पर्वतीय राज्यों में पांच मेगावाट से कम क्षमता वाली लघु जलविद्युत परियोजनाओं के प्रस्तावों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई है क्योंकि इनसे नालों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो सकता है और जलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की भी आशंका है। मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने 11 सितंबर को एक बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा की थी। समिति का कहना था कि मंत्रालय ने 2011 में सभी राज्यों को संचयी प्रभाव आकलन अध्ययन करने का निर्देश दिया था। समिति ने कहा कि अब तक पांच राज्यों में 13 नदी बेसिन के लिए इस तरह के अध्ययन सफलतापूर्वक पूरे किए जा चुके हैं। हम आपको बता दें कि नदी बेसिन उस भौगोलिक क्षेत्र को कहते हैं जिसका निर्माण वर्षा के जल या पिघली हुई बर्फ के जल के इकट्ठे होकर नदी में मिलने के कारण होता है। ऐसे अध्ययनों का उद्देश्य नदी बेसिन के भीतर जलविद्युत परियोजनाओं के संचयी प्रभाव का आकलन करना है। समिति ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे पर्वतीय राज्यों में छोटी जलविद्युत परियोजनाओं, विशेषकर पांच मेगावाट से कम क्षमता वाली परियोजनाओं के प्रस्तावों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की।

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