काव्य वीणा सम्मान से सम्मानित किए गए कर्नल प्रवीण शंकर त्रिपाठी

Colonel Praveen Shankar Tripathi
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अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ ऋषिकेश राय ने कहा कि छंदों के प्रति प्रवीण जी का अनुराग अन्यथा न होकर सैन्य जीवन के अनुशासन से जुड़ा हुआ ह।उन्होंने अपने विद्वतापूर्ण वक्तव्य में सम्मानित पुस्तक मनके छन्दों के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की व्याख्या भी की।

कोलकाता। कोलकाता की साहित्यिक , सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत संस्था परिवार मिलन ने कर्नल प्रवीण शंकर त्रिपाठी को काव्य वीणा सम्मान 2024 से सम्मानित किया। विगत 11 वर्षों से यह सम्मान चर-अचर अर्पण न्यास के सौजन्य से संपन्न किया जाता है।कर्नल त्रिपाठी को यह द्वादश काव्य वीणा सम्मान उनकी प्रभावशाली छंद योजना, लयबद्धता, शब्द माधुर्य, एवं अलंकृत शैली में लिखित काव्य–कृति ‘मनके छंदों के’ के लिए दिया गया। सर्वप्रथम अंजू गुप्ता ने प्रशस्तिपत्र का वाचन किया एवं संस्था की प्रधान सचिव विनीता मनोत ने स्वस्ती मंत्रोच्चार के बीच श्री त्रिपाठी को तिलक विभूषित किया। तत्पश्चात अमित मूंधड़ा, महावीर प्रसाद मनकसिया, गौरीशंकर अग्रवाल, ईश्वरी प्रसाद टांटिया ने क्रमशः पुष्पहार, शॉल, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र भेंट किये एवं संस्थाध्यक्ष अरुण चूड़ीवाल ने काव्य वीणा का भव्य प्रतीक चिह्न एवं 51000 की राशि समर्पित की।

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डॉ ऋषिकेश राय की अध्यक्षता में आयोजित इस सम्मान समारोह में सम्मानित कर्नल त्रिपाठी ने संस्था को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह संस्था सनातनी छंदों की प्रगति के लिए अनवरत प्रयत्न कर रही है यह साहित्य के लिए गौरव  की बात है। छंदों के प्रति संस्था की प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है। समारोह के प्रधान अतिथि वरिष्ठ साहित्यकर डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि अभ्यास से कोई भी व्यक्ति छंदों को साध सकता है। प्रवीण ने अनवरत अभ्यास और परिश्रम से जो मुकाम हासिल किया है वह सचमुच गौरवपूर्ण है।

विशिष्ट अतिथि  कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रो. डॉ राजश्री शुक्ला ने इस सम्मान के चिंतकों में से एक स्वर्गीय विमल लाठ का स्मरण करते हुए अपनी बात आरम्भ की । उन्होंने कहा कि  जिस व्यक्ति के नाम में ही वीण जुड़ा हो तथा जिसने वाग्देवी की वीणा में प्रवीणता अर्जित की हो उसका काव्य वीणा सम्मान का अधिकारी होना स्वाभाविक है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ ऋषिकेश राय ने कहा कि छंदों के प्रति प्रवीण जी का अनुराग अन्यथा न होकर सैन्य जीवन के अनुशासन से जुड़ा हुआ ह।उन्होंने अपने विद्वतापूर्ण वक्तव्य में सम्मानित पुस्तक मनके छन्दों के कुछ महत्वपूर्ण अंशों की व्याख्या भी की।

समारोह का शुभारंभ आशाराज कानूनगो की सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत भाषण देते हुए संयोजक दुर्गा व्यास ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए सबका स्वागत किया। अजीत बच्छावत,रोहित व्यास एवं अमिता चतुर्वेदी ने उत्तरीय एवं आचार्य विष्णुकान्त शास्त्रीः रचना-संचयन पुस्तक प्रदान कर मंचस्थ अतिथियों का अभिनन्दन किया।सभागार में उपस्थित कर्नल त्रिपाठी की पत्नी सुप्रसिद्ध कथाकार मीनू त्रिपाठी का स्वागत सुधा चूड़ीवाल ने उत्तरीय पहनाकर कर किया। इनके पुत्र अप्रतिम त्रिपाठी भी उपस्थित रहे।

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समारोह का कुशल संचालन राजेंद्र कानूनगो ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन अरुण चूड़ीवाल ने किया।कार्यक्रम को सफल बनाने में हर्ष टांटिया, राजेश रूंगटा एवं राकेश चतुर्वेदी का पूर्ण सहयोग रह।महानगर के कई वरिष्ठ एवं विशिष्ट कवियों,साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों की गरिमामयी उपस्थिति से परिवार मिलन सेवा सदन का रजनीगंधा सभागार पूर्णतया भरा था।

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