Prabhasakshi NewsRoom: महाभारत काल के लाक्षागृह को दरगाह बता रहे मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, कोर्ट में हिंदुओं की हुई बड़ी जीत

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मुस्लिम पक्ष की ओर से लाक्षागृह को अपना बताने के संबंध में करीब 54 वर्ष पूर्व एक याचिका दायर की गयी थी जिस पर बरसों तक हुई सुनवाई के बाद पांच फरवरी को अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए हिंदुओं के पक्ष को सही ठहराया।

ज्ञानवापी और मथुरा मंदिरों से अतिक्रमण हटाये जाने की बढ़ती मांग के बीच उत्तर प्रदेश के बागपत की एक स्थानीय अदालत ने बड़ा फैसला देते हुए बरसों पुराना विवाद समाप्त कर दिया है। हम आपको बता दें कि मुस्लिम पक्ष की ओर से दावा किया जा रहा था कि बागपत जिले का ऐतिहासिक टीला जिसे ‘महाभारत का लाक्षागृह’ कहा जाता है, वह दरअसल शेख बदरुद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान है। मुस्लिम पक्ष की ओर से इस संबंध में करीब 54 वर्ष पूर्व एक याचिका दायर की गयी थी जिस पर बरसों तक हुई सुनवाई के बाद पांच फरवरी को अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए हिंदुओं के पक्ष को सही ठहराया।

अदालत के फैसले के बाद हिंदू पक्ष के अधिवक्ता रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि बागपत के जिला एवं सत्र न्यायालय के सिविल जज जूनियर डिवीजन (प्रथम) शिवम द्विवेदी ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी। रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बरनावा के प्राचीन टीले पर न तो कोई कब्रिस्तान है और न ही कोई दरगाह, बल्कि वहां सिर्फ लाक्षागृह ही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि मुस्लिम पक्ष लाक्षागृह की 100 बीघे जमीन को कब्रिस्तान और दरगाह बताकर उस पर कब्जा करना चाहता है। रणवीर सिंह तोमर ने कहा, ‘‘हमने लाक्षागृह के सभी सबूत अदालत में पेश किए, जिसके आधार पर अदालत ने मुस्लिम पक्ष की उस याचिका को खारिज कर दिया कि लाक्षागृह शेख बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान था।’’

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रणवीर सिंह तोमर ने यह भी बताया कि बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से मेरठ की सरधना की अदालत में दायर किए वाद में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए दावा किया था कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और एक बड़ा कब्रिस्तान मौजूद है और वक्फ बोर्ड का इस पर अधिकार है। हम आपको बता दें कि वादी की ओर से अधिवक्ता शाहिद खान मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। वहीं, प्रतिवादी की ओर से अदालत में दावा किया गया कि प्राचीन टीले पर दरगाह या कब्रिस्तान का सवाल ही नहीं उठता, यह महाभारत काल का लाक्षागृह है, सुरंग, प्राचीन दीवारों आदि से जिसकी गवाही आज भी दी जाती है। हम आपको बता दें कि इस मामले से संबंधित मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है। इस बीच, जब शाहिद खान से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि वे ऊपरी अदालत में जाएंगे और अपना मामला पेश करेंगे। उल्लेखनीय है कि यह मामला मेरठ के बाद बागपत की अदालत में चल रहा था। 

बहरहाल, इतिहास गवाह है कि विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत आकर हिंदुओं के धर्म स्थलों को निशाना बनाया और वहां मस्जिदें खड़ी कर दीं। अयोध्या, काशी और मथुरा में आप जाएंगे तो पाएंगे कि वहां जिस भूमि को लेकर विवाद है उसके अलावा भी पूरे नगर, हर गली और हर कण में सिर्फ राम, शिव और कृष्ण हैं, ऐसे में सवाल उठता है कि वहां दूसरे धर्म के स्थल कैसे आ गये? महाभारत के लाक्षागृह को जिस तरह दरगाह ठहराने का प्रयास किया गया वह यह भी दर्शाता है कि एक साजिश के तहत हिंदुओं के तमाम धर्म स्थलों को लेकर विवाद खड़ा किया गया है।

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