Operation Blue Star के 40 साल: जानें क्यों और कैसे हुई थी सेना की आतंकियों से मुठभेड़, इसने भारत की राजनीति को कैसे बदल दिया?

Operation Blue Star
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अभिनय आकाश । Jun 3 2024 1:16PM

1982 में भिंडरावाले अकाली दल द्वारा आयोजित सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गये। इसके बाद वह पुलिस की पकड़ से बचने के लिए स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर चला गया। 1983 में पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) एएस अटवाल की स्वर्ण मंदिर में प्रार्थना करने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भिंडरावाले ने खुद को सिखों की प्रामाणिक आवाज़ बताया। मई 1984 में इंदिरा सरकार ने भारतीय सेना को उग्रवादियों को खदेड़ने की इजाजत दे दी।

ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत की 40वीं वर्षगांठ है। भारतीय सेना ने जून 1984 में स्वर्ण मंदिर से सिख आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए ऑपरेशन चलाया था। ऑपरेशन में सैकड़ों नागरिकों के साथ-साथ 87 सैनिक भी मारे गए। सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर के कुछ हिस्सों को भी काफी नुकसान पहुँचाया गया। लेकिन इसके कारण क्या हुआ और इसने भारत की राजनीति को कैसे बदलकर रख दिया आइए आपको बताते हैं। 

उग्रवाद संकट से जूझता पंजाब

विभाजन के बाद खालिस्तान की अवधारणा उभरी। नई खींची गई पंजाब सीमा के परिणामस्वरूप सिख विरासत के महत्वपूर्ण हिस्से कई शहर और मंदिर पाकिस्तान में आ गए। नदी जल के बंटवारे जैसे अन्य मुद्दों के परिणामस्वरूप स्वायत्तता और यहां तक ​​कि अलग सिख राज्य की मांग उठने लगी। माना जाता है कि पाकिस्तान ने अलगाववादियों को हथियार और गोला-बारूद मुहैया कराया है। 1966 में पंजाब को हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में विभाजित कर दिया गया। 1970 के दशक में खालिस्तान आंदोलन ने भारत और विदेशों दोनों में जोर पकड़ लिया। 1980 के दशक की शुरुआत तक, पंजाब पूर्ण उग्रवाद संकट से जूझ रहा था। उग्रवादी अपने लिए एक अलग खालिस्तान राज्य बनाने पर आमादा थे। आंदोलन के भीतर, जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम प्रमुखता से उभरा। भिंडरावाले पहले सिख मदरसा दमदमी टकसाल का नेता था। कांग्रेस ने शुरू में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए भिंडरावाले को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया था। हालाँकि, उनकी उग्र बयानबाजी और युवाओं के बीच अपील ने उन्हें अधिकारियों के लिए एक बड़ी समस्या बना दिया था। 1982 में भिंडरावाले अकाली दल द्वारा आयोजित सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गये। इसके बाद वह पुलिस की पकड़ से बचने के लिए स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर चला गया। 1983 में पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) एएस अटवाल की स्वर्ण मंदिर में प्रार्थना करने के बाद गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। भिंडरावाले ने खुद को सिखों की प्रामाणिक आवाज़ बताया। मई 1984 में इंदिरा सरकार ने भारतीय सेना को उग्रवादियों को खदेड़ने की इजाजत दे दी।

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स्वर्ण मंदिर में सेना की एंट्री

कैबिनेट मंत्री प्रणब मुखर्जी सहित विभिन्न हलकों की आपत्तियों के बावजूद, इंदिरा गांधी ने मई, 1984 के मध्य में  स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई को अधिकृत किया। 29 मई तक, पैरा कमांडो द्वारा समर्थित, मेरठ में 9वीं इन्फैंट्री डिवीजन के सैनिक  अमृतसर पहुंच गए थे। उनका मिशन आतंकवादी विचारक जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके अनुयायियों को बाहर निकालना था जिन्होंने मंदिर में आधार स्थापित किया था। 1 जून को मंदिर के पास निजी इमारतों पर कब्जा कर चुके आतंकवादियों और सीआरपीएफ कर्मियों के बीच गोलीबारी में 11 नागरिकों की मौत हो गई। इंदिरा गांधी ने  स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने का फैसला किया। कोड वर्ड रखा गया ऑपरेशन ब्लू स्टार। एक तरफ बातचीत का न्यौता दिया गया दूसरी तरफ पंजाब की सारी फोन लाइन काट दी गई। मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार की अगुवाई में सेना  स्वर्ण मंदिर की ओर बढ़ी। तीन जून को पाकिस्तान से लगती सीमा को सील कर दिया गया। 5 जून को सेना की कार्रवाई होती रही। कमांडरों ने टैंक सहायता बुलाने का निर्णय लिया। मंदिर के पुजारी ज्ञानी पूरन सिंह के मुताबिक, रात करीब 10 बजे टैंकों का प्रवेश शुरू हुआ। अगले 12 घंटों तक सेना के विजयंत टैंकों ने स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर गोलाबारी की। सिखों का मानना ​​है कि अकाल तख्त सत्ता की पांच सीटों में से एक है। यहीं पर भिंडरावाले छिपा बैठा था। इस अंतिम हमले में शुबेग सिंह, अमरीक सिंह और भिंडरावाले मारे गए। ऑपरेशन ब्लू स्टार 10 जून तक चला और इसने जीवन, संपत्ति और भावनाओं पर भारी असर डाला। ऑपरेशन में सिखों की अस्थायी सीट  अकाल तख्त को नष्ट कर दिया गया। 83 सैनिक मारे गए और 248 घायल हुए और मरने वाले आंतकियों की संख्या 492 रही। बहरहाल, 6 जून की देर रात भिंडरावाले की लाश सेना को मिली और सात जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म हो गया।

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 इस घटना ने भारत की राजनीति को कैसे बदल दिया?

ऑपरेशन का सबसे बड़ा नतीजा 31 अक्टूबर, 1984 को आया। ऑपरेशन का बदला लेने के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी। इसके परिणामस्वरूप, दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में सिख विरोधी दंगे हुए। राजीव ने सबसे भयानक दंगों के ख़त्म होने के बाद दिए एक भाषण में कहा कि हमें इंदिराजी को याद रखना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि उनकी हत्या क्यों हुई। हमें याद रखना चाहिए कि इसके पीछे कौन लोग हो सकते हैं। हम जानते हैं कि भारतीय जनता के हृदय क्रोध से भरे हुए थे और कुछ दिनों तक लोगों को यह अनुभव होता रहा कि भारत हिल रहा है। जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है। 

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