क्या है 1962 का केदारनाथ बनाम बिहार का ऐतिहासिक फैसला जो राजद्रोह के मामलों में बनता है पत्रकारों की ढाल

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अभिनय आकाश । Jun 4 2021 8:16PM

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विनोद दुआ पर दर्ज एफाईआर को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने 1962 के केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस का हवाला देकर दुआ को दोषमुक्त किया। लेकिन इसके साथ ही कमेटी बनाने वाली उनकी दूसरी याचिका को खारिज कर दिया।

एक शख्स था थोमस बैबिंगटन मैकाले ये भारत तो आया था अंग्रेजी की पढ़ाई करने लेकिन उसके बाद इसी भारत में अगर किसी ने देशद्रोह का कानून ड्राफ्ट किया तो वो लार्ड मैकाले ही थे। सोचिए जरा सन 1837 में जो देशद्रोह कानून बना था आज 2021 में उस पर सियासत हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले को खारिज कर दिया है। विनोद दुआ पर हिमाचल के शिमला में राजद्रोह के मामले में एफआईआर दर्ज हुई थी। स्थानीय बीजेपी नेता श्याम ने आरोप लगाया था कि विनोद दुआ ने यूट्यूब पर अपने शो में प्रधानमंत्री मोदी पर वोट पाने के लिए मौतों और आतंकी हमलों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। जिसके बाद शिमला के कुमारसैन थाने में विनोद दुआ के खिलाफ आईपीसी की धारों के तहत फर्जी खबरें फैलाने, लोगों को भड़काने और मानहानी कारक साम्रगी प्रकाशित करने का मामला दर्ज किया गया था। एफआईआर दर्ज होने के बाद विनोद दुआ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। विनोद दुआ ने अपने ऊपर दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग भी की थी। साथ ही पत्रकारों के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले के खिलाफ जांच के लिए एक कमेटी बनाने की भी अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में विनोद दुआ पर दर्ज एफाईआर को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने 1962 के केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस का हवाला देकर दुआ को दोषमुक्त किया। लेकिन इसके साथ ही कमेटी बनाने वाली उनकी दूसरी याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा ये विधायिका क्षेत्र पर अतिक्रमण की तरह होगा। 

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क्या था पूरा मामला

दरअसल, 30 मार्च, 2020 को एक यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो अपलोड किया गया था। शीर्षक था- “The Vinod Dua Show Ep 255: Unpreparedness has been the hallmark of Modi govt- P Chidambaram”। इसमें कथित तौर पर बताया गया कि पीएम ने पठानकोट और पुलवामा में आतंकी हमलों व मौतों का इस्तेमाल वोट पाने के लिए किया। दुआ ने इस एपिसोड में कड़े लफ्ज इस्तेमाल करते हुए ‘सरकारी निक्कमेपन’ का जिक्र किया था। कहा था, “आखिरकार सरकार सोती क्यों रही? हम चाटूकार, दरबारी, सरकारी नहीं हैं। हमारा काम सरकारी काम का क्रिटिकल अप्रेजल करना है। हर चीज को इवेंट बनाकर वोट मांगना इस सरकार की पहचान रही है।” साथ ही दावा किया था कि देश में टेस्टिंग सुविधाएं नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के एक स्थानीय बीजेपी नेता ने इसके बाद राजद्रोह के आरोप में शिमला के कुमारसैन में दुआ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। भाजपा के महासू इकाई अध्यक्ष अजय श्याम की शिकायत पर उनके खिलाफ धारा 124 ए (देशद्रोह), 268 (सार्वजनिक गड़बड़ी), 501 (ऐसी सामग्री प्रकाशित करना जिससे मानहानि हो) और 505 (सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाने वाले बयान देना) के तहत मामला दर्ज किया गया। जिसके बाद अपने ऊपर लगे आरोपों के खिलाफ दुआ ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया और कोर्ट ने दुआ पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि केदारनाथ मामले का जिक्र कहते हुए कहा कि इस तरह की धाराएं तब लगनी चाहिए जब किसी की कोशिश शांति व्यवस्था को बिगाड़ने और अराजकता पैदा करने की हो। 

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केदारनाथ बनाम बिहार सरकार

 1962 में केदारनाथ बनाम स्टेट ऑफ बिहार केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था। इस मामले में फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया से सहमति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ केस में व्यवस्था दी कि सरकार की आलोचना या फिर एडमिनिस्ट्रेशन पर कमेंट भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। बता दें कि बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण को लेकर राजद्रोह का मामला दर्ज कर लिया था। लेकिन इस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। केदारनाथ सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने भी अपने आदेश में कहा था कि देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा या असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े। केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर टिप्पणी करने भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। देशद्रोह कानून का इस्तेमाल तब ही हो जब सीधे तौर पर हिंसा भड़काने का मामला हो। सुप्रीम कोर्ट की संवैज्ञानिक बेंच ने तब कहा था कि केवल नारेबाजी देशद्रोह के दायरे में नहीं आती।

देशद्रोह या राजद्रोह क्या है?

अब थोड़ा अंग्रेजी के शब्द सिडिशन और हिंदी में कहे तो राजद्रोह के बारे में जान लेते हैं। सिडिशन शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है राजद्रोह। हमारे देश में राजद्रोह को भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में शामिल किया गया है। 

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देशद्रोह की धारा 124ए क्या कहती है?

देश के खिलाफ बोलना, लिखना या ऐसी कोई भी हरकत जो देश के प्रति नफरत का भाव रखती हो वो देशद्रोह कहलाएगी। अगर कोई संगठन देश विरोधी है और उससे अंजाने में भी कोई संबंध रखता है या  ऐसे लोगों का सहयोग करता है तो उस व्यक्ति पर भी देशद्रोह का मामला बन सकता है। अगर कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर मौलिक या लिखित शब्दों, किसी तरह के संकेतों या अन्य किसी भी माध्यम से ऐसा कुछ करता है। जो भारत सरकार के खिलाफ हो, जिससे देश के सामने एकता, अखंडता और सुरक्षा का संकट पैदा हो तो उसे तो उसे उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है। ये बात सही है कि ये कानून अंग्रेजों का बनाया कानून है। देश द्रोह का ये वो कानून है जो 149 साल पहले भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया। 149 साल यानी 1870 में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया ताकि वो भारत के देशभक्तों को देशद्रोही करार देकर सजा दे सके। 

अगर धारा को सटीक शब्दों में लिखा जाए, तो वह कहती है-

भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A के अनुसार, लिखित या फिर मौखिक शब्‍दों, या फिर चिह्नों या फिर प्रत्‍यक्ष या परोक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करने पर दोषी को 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।”-अभिनय आकाश


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