पाकिस्तान की मदद से मुजाहिदीन को फंडिंग करने वाला अमेरिका, जिसके लिए तालिबान बन गया सामूहिक नाकामी की कहानी

रोनाल्ड रीगन, जिमी कार्टर, जार्ड बुश, जो बाइडेन, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप कुल मिलाकर कहे तो ये एक पूरी अमेरिकी सत्ताधीशों, नीति निर्माताओं और सैन्य कमांडरों की सामूहिक नाकामी की कहानी है।
महान जर्मन दार्शिक फ्रेडरिक हीगल ने एक बार कहा था- The only thing we learn from history is we learn nothing from history अर्थात इतिहास से हमने यही सीखा कि हमने कभी इतिहास से सबक नहीं लिया। इतिहास से सबक न लेने पर क्या होता है? कहा जाता है कि इतिहास खुद को दोहराता है बस किरदार बदल जाता है। ये लाइन अफगानिस्तान की नियती ब गया है। पहले सोवियत संघ और फिर अब अमेरिका के साथ भी वही हुआ। अघानों के रहनुमा, लोकतंत्र के प्रहरी ‘आतंकवाद के दुश्मन’ जैसे तमगे ओढ़ने वाले पहली फ़ुर्सत में रुख़सत हो चुके हैं। अपने इतिहास के सबसे लंबे युद्ध से पीठ दिखाकर अमेरिका वापस लौट चुका है और अपने पीछे कई तस्वीरें भी छोड़ गया है जिससे हम बीते कुछ दिनों से आए दिन दो चार हो रहे हैं। काबुल से अमेरिकी विमान ने उड़ान भऱी और अफगान नागरिकों का हुदूम हाथ ऊठाए उस पर चढ़ने को टूट पड़ा। कई लोग कंटीली तार लगी चारदीवारी पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे और वहां पर गोलियां चलने की भी रिपोर्टें मिलीं हैं। पिंक जैकेट पहनी एक लड़की को दीवार के उस पार सीढ़ी के सहारे खड़े एक सैनिक की मदद लेने की कोशिश करते हुए देखा जा सकता है। खौफजदा अफगान महिलाएं अपने बच्चों को सैनिकों को सौंप रही हैं, इस उम्मीद में कि शायद वो इस नरक से बाहर निकल सकें। रोते हुए मां-बाप ने जब अमेरिकी सैनिकों से अपने ‘जिगर के टुकड़े’ को बचाने की भीख मांगी, तो एक सैनिक कटीले तारों के ऊपर से झुका और बच्चे को उठा लिया. यह दृश्य देखकर मौके पर मौजूद हर सैनिक की आंखें नम हो गईं। अफगानिस्तान के राष्ट्रीय फुटबॉलर जाकी अनवारी की अमेरिकी विमान से काबुल एयरपोर्ट पर गिरकर मौत हो गई। देश छोड़ने के लिए कई लोग विमान के पहिए पर भी बैठ गए थे। कुछ लोगों को विमान के ऊपर भी देखा गया था। विमान के उड़ान भरने के बाद पहिए पर बैठे तीन लोगों की गिरकर मौत की खबर सामने आई थी।
पूरी दुनिया इस हालात को चितिंत है लेकिन वाशिंगटन इसको लेकर निश्चितं है। रोनाल्ड रीगन, जिमी कार्टर, जार्ड बुश, जो बाइडेन, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप कुल मिलाकर कहे तो ये एक पूरी अमेरिकी सत्ताधीशों, नीति निर्माताओं और सैन्य कमांडरों की सामूहिक नाकामी की कहानी है। जिन्होंने तालिबान को खतरनाक बनाया और 20 सालों बाद इसे नियंत्रित नही कर पाने की हालत में अफगान के लोगों को बेसहारा छोड़ कर भाग गए।
इसे भी पढ़ें: अफगानिस्तान से वतन वापसी के लिए 24 घंटे काम कर रही है ये स्पेशल टीम!
अमेरिका ने खड़ा किया मुजाहिदीन
ये 1970 की बात है कम्युनिस्ट सरकार को बचाने के लिए सोवियत संघ रूस ने अफगानिस्तान पर हमला किया। शीत युद्ध की वजह से अमेरिका की दुश्मनी रूस के साथ अपने चरम पर थी। फिर अफ़ग़ानिस्तान का भाग्य लिखने के लिए पाकिस्तान, सऊदी अरब और अमेरिका ने नया गठजोड़ बनाया। तीनों देशों को देवबंद और उसके पाकिस्तानी राजनीतिक पार्टी जमात-ए-उलेमा-ए-इस्लाम में उम्मीद नज़र आयी। पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा के एक देवबंदी हक्कानी मदरसे और फिर देवबंद के कराची मदरसे में पढ़ने वाले मुहम्मद उमर को ज़िम्मेदारी देकर मुल्ला मुहम्मद उमर बनाया गया। किसी को खबर हीं नहीं लगी कि कब मुल्ला उम्र ने पहले पचास और 15 हज़ार छात्रों के मदरसे खोल लिए। इसके लिए पाकिस्तान, अमेरिका और सउदी अरब ने खूब पैसे खर्चने शुरू किए। अमेरिका ने 1980 में यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट बनाया जिसके जरिए देवबंद के नफ़रती विचारों वाली शिक्षण सामग्री को छपवाकर देवबंदी मदरसों में बांटा जाने लगा। सोवियत से लड़ने के लिए अफ़गानिस्तान में मुजाहिदीनों की एक फ़ौज खड़ी हो गई। 1989 में सोवियत की वापसी के साथ इस युद्ध का एक पन्ना ख़त्म हो गया। सोवियत जा चुका था। मगर उससे लड़ने के लिए खड़े हुए मुजाहिदीन लड़ाकों ने हथियार नहीं रखे थे। वो अब अफ़गानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में वर्चस्व बनाने के लिए लड़ रहे थे।
अमेरिकी सरकार ब्रिटिश सीक्रेट सर्विस एमआई-6 के साथ मिलकर इस्लामिक चरमपंथियों को फंडिंग और ट्रेनिंग दिया जिसमें न्यूयार्क के ट्विन टॉवर को धव्सत करने वाले ओसमा बिन लादेन भी शामिल था। इस तथ्य को कई कंसपिरेसी थ्योरी मानकर खारिज करेंगे लेकिन साल 2005 में ब्रिटिश फॉरेन सेक्रेटरी रॉबिन कुक ने खुद ही इस बात को कुबूल करते हुए कहा था कि ओसामा बिन लादेन पश्चिमी सुरक्षा बलों द्वारा गलत अनुमान का एक उत्पाद था। उसे सीआईए से हथियार मिले और अमेरिका के पश्चिमी सहयोगियों से पैसे जिससे वो सोवियत से अफगानिस्तान में लड़ सके। इस तरह के दावे बेनजीर भुट्टो और साऊदी अरब के प्रिंस बंदरबिन सुल्तान ने खुलकर कुबूल किया था कि ओसाबा अमेरिकी खुफिया एजेंसी का ही प्रोडक्ट था। ये जिहाद और होली वॉर के रास्ते तलाशने का दौर था।। मुजाहिद या मुजाहिदीन, इस शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर आतंकियों से जुड़ा हुआ पाया जाता है। तालिबान का जिक्र आने पर भी इस शब्द की चर्चा होती है। ऐसे में इसका मतलब समझना भी जरूरी है। मुजाहिद भी अरबी भाषा का लफ्ज़ है। ये जोहद शब्द से बना है। इसका मतलब कोशिश करने वाले से है। इस्लामिक नजरिए से देखा जाए तो इस शब्द का इस्तेमाल धर्म को फैलाने की कोशिश करने वाले या इंसाफ को आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करने वाले के रूप में किया जाता है।
इसे भी पढ़ें: इमरान की पार्टी की नेता का विवादित बयान, कहा- तालिबान कश्मीर जीतकर पाकिस्तान को देगा
ऑपरेशन साइक्लोन
अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का कब्जा एक दशक तक चला और इस अवधि के दौरान सीआईए कोड नाम - ऑपरेशन साइक्लोन के तहत अपने कार्यक्रम का विस्तार करता रहा। अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वाशिंगटन पाकिस्तान की मदद से मुजाहिदीन को फंडिंग करता रहा और 1987 के अंत तक, अमेरिका द्वारा वार्षिक फंडिंग 630 मिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी। मार्च 1985 में, राष्ट्रपति रीगन की राष्ट्रीय सुरक्षा टीम ने औपचारिक रूप से पाकिस्तान की मदद से मुजाहिदीन को हथियार उपलब्ध कराने का फैसला किया, जो इसके वितरण की देखभाल भी करता था। 1989 में, सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर अपना पूरा नियंत्रण खो दिया था, अमेरिकी ने हथियारों और गोला-बारूद में अफगानिस्तान में 20 अरब डॉलर का निवेश किया था जिसके बाद सोवियत संघ विघटित हो गया और आतंकवादी समूह को वित्त पोषण के लिए अमेरिका की भूख भी समाप्त हो गई। फंडिंग खत्म होते ही मुजाहिदीन आपस में लड़ने लगे। आतंकवादी समूह कई गुटों से बना था जो अमेरिका के नेतृत्व में एक साथ काम करते थे, लेकिन जब से यह चला गया, गृहयुद्ध ने देश में विनाश और अराजकता पैदा की, लगभग काबुल शहर को बर्बाद कर दिया। गृहयुद्ध के बीच, मुजाहिदीन का एक और समूह उभरा जिसने खुद को रॉबिन हुड की सेना कहा और कहा कि उनका उद्देश्य शांति और न्याय बहाल करना था। उन्हें 'तालिबान' कहा जाता था जिसका अर्थ 'छात्र' भी होता है। तालिबान का आंतरिक विवाद से मोहभंग हो गया था और बाद में वे मदरसों में पढ़ने के लिए पाकिस्तान चले गए। तालिबान को बनाने में अमेरिका ने भले ही सीधे तौर पर मदद न की हो लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाने वाले लोग जरूर इससे आते हैं। आखिरकार, अफगान मुजाहिदीन की लड़ाई से थक गए और तालिबान को गले लगा लिया और शांति बहाल करने और भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए उन पर भरोसा किया जिसने तालिबान को शरिया कानून को लागू करने की शक्ति हासिल करने की अनुमति दी, जो कि लोगों की ओर से एक बड़ी गलती थी। तालिबान अफगानिस्तान को पाषाण युग में ले गया जैसा कि दुनिया देख रही थी। यह सब अमेरिका कर रहा था लेकिन उसे इसका एहसास तब हुआ जब उसके खुद के घर में नुकसान हुआ। 2001 में ओसामा बिन लादेन ने 9/11 हमले को अंजाम दिया था, जो सबसे भयानक आतंकवादी हमलों में से एक था, जिसमें 2900 लोग मारे गए थे। वाशिंगटन ने तालिबान का पीछा करने का फैसला किया जिससे केवल और अधिक अराजकता हुई। यह ओसामा बिन लादेन को मारने में कामयाब रहा।
करोड़ो डॉलर और हजारों जाने गंवाने के बाद अमेरिका कह रहा राष्ट्र निर्माण करने नहीं गए थे
अमेरिका ने पिछले 20 वर्षों में करीब दो ट्रिलियन डालर अफगानिस्तान में खर्च किए। इनमें से करीब 80 प्रतिशत धन अमेरिकी सैनिकों और कंपनियों पर खर्च हुआ। शेष 20 प्रतिशत वहां के आधारभूत ढांचे के निर्माण में। आखिर इतना धन खर्च करने के बाद भी अमेरिका अफगान सेना को सक्षम क्यों नहीं बना सका? युद्ध के दौरान 2300अमेरिकी सैनिक मारे गए, 75 हजार अफगान सैनिक मारे गए। लेकिन अमेरिका अभी भी तालिबान को खत्म नहीं कर सका। अब वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति का कहना है कि वो वहां राष्ट्र निर्माण करने नहीं गए थे।
इसे भी पढ़ें: काबुल में यूक्रेन का विमान हुआ हाईजैक, 83 यात्री थे सवार, तालिबान पर लगा आरोप !
गलत ट्रैक पर चलने की वजह से नाकाम साबित हुआ अमेरिका का ऑपरेशन
अमेरिका तालिबान को नहीं हरा सका क्योंकि वह गलत दुश्मन का पीछा कर रहा था। अमेरिका से बड़ी भूल यह हुई कि उसने तालिबान की जड़ पर प्रहार नहीं किया। उनके काबुल में काबिज हो जाने के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने यह कहा कि अब अफगानिस्तान गुलामी से मुक्त हो गया। अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान से भाग कर पाकिस्तान में ही छिपा था। अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान की असलियत को भांपते हुए भी आंखें बंद किए रहा। तालिबान की जड़ें पाकिस्तान में हैं। अफ़ग़ानिस्तान से पीछे हटते समय भी अमेरिका ने गड़बड़ी की, पहले तो उसने अपने सैनिकों को वापस बुलाया, तालिबान को गति प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया, अपने हथियारों को लावारिस छोड़ अफ़गानों को खतरे में डाल दिया। आज, अफगानिस्तान दुनिया में सबसे बड़े मानवीय संकट का सामना कर रहा है, जो अमेरिका और उसके अति आत्मविश्वास और अज्ञानता के कारण हुआ है जिसे आसानी से टाला जा सकता था।- अभिनय आकाश
अन्य न्यूज़