कहानी Father of Loksabha की, विपक्षी उम्मीदवार ने भी जिनके पक्ष में किया वोट, संसद में नेहरू को भाषण देने से दिया था रोक

Father of Loksabha
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jun 26 2024 2:16PM

लोकसभा के अध्यक्ष के तौर पर बीजेपी ने कोटा से सांसद और पिछली लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला को एक बार फिर से प्रत्याशी बनाया तो विपक्ष ने के सुरेश को उम्मीदवार के तौर पर उतारा। पहले माना जा रहा था कि विपक्ष इस पर वोटिंग कराने की मांग करेगा। लेकिन विपक्ष ने ऐसी कोई मांग नहीं की और ध्वनिमत से प्रस्ताव को पास कर दिया गया।

जीवन में नाटकीयता अक्सर अप्रत्याशित होती है। अभी एक-दो दिन पहले की ही बात है। चर्चा चल रही थी कि क्या सबसे कद्दावर नेताओं में से एक भाजपा के लखनऊ से सांसद राजनाथ सिंह लोकसभा के नए अध्यक्ष होंगे। लेकिन 9 जून के शपथ ग्रहण के बाद इन कयासों पर विराम लग गया। फिर बात चली कि जो भी नया होगा वो आंध्र प्रदेश से होगा क्योंकि टीडीपी का समर्थन भी जरूरी है, कई नाम भी सामने आने लगे। लेकिन अटकलों पर भी विराम चिन्ह लग गया। अब लोकसभा के अध्यक्ष के तौर पर बीजेपी ने कोटा से सांसद और पिछली लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला को एक बार फिर से प्रत्याशी बनाया तो विपक्ष ने के सुरेश को उम्मीदवार के तौर पर उतारा। पहले माना जा रहा था कि विपक्ष इस पर वोटिंग कराने की मांग करेगा। लेकिन विपक्ष ने ऐसी कोई मांग नहीं की और ध्वनिमत से प्रस्ताव को पास कर दिया गया। ओम बिरला के आसन तक पहुंचने पर प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने कहा कि आपकी चेयर है, आप संभालें। 

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ये तो हो गई नए लोकसभा के स्पीकर की बात। मगर आज हम आज बात उस लोकसभा स्पीकर की करेंगे जिन्हें फॉदर ऑफ लोकसभा भी कहा जाता है। ये तो आप सभी जानते हैं कि लोकसभी की कुर्सी पर अभी तक 18 स्पीकर विराजमान हो चुके हैं। अब लोकसभा को 19वां स्पीकर ओम बिरला के रूप में मिल चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोकसभा के स्पीकर की कुर्सी पर सबसे पहले बैठने वाले अध्यक्ष कौन थे। उनका नाम गणेश वासुदेव मावलंकर है और उन्हें फॉदर ऑफ लोकसभा व दादा साहेब जैसे उपनामों से भी जाना जाता है। प्यार से लोग उन्हें दादा साहेब ही  बुलाया करते थे। लेकिन फॉदर ऑफ लोकसभा का खिताब मिलने के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है। 

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क्यों कहा गया फॉदर ऑफ लोकसभा 

दरअसल, लोकसभा का अध्यक्ष बनने के बाद गणेश मावलंकर ने कुछ ऐसा कहा जो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के दिल को छू गया। जब उन्हें लोकसभा ने चुना तो संसद के 394 सदस्यों का समर्थन मिलने की संतुष्टि से वो चमक उठे। उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का भी एहसास था लेकिन वो इतने भावुक हो गए कि स्पीकर की कुर्सी पर खड़े हो गए। उन्होंने जोरदार भाषण दिया और अंत में कहा कि एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारी से कार्य करने का भाव ही हमें नतीजे देगा। नेहरू ने मावलंकर का ये भाषण सुनकर उन्हें फॉदर ऑफ लोकसभा की उपाधि दी। जीवी मावलंकर आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं। लेकिन उनके विचार आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं। 

पहली बार हुआ लोकसभा का चुनाव

देश के इतिहास में स्पीकर के पद को लेकर पहली बार साल 1952 में चुनाव हुआ था। उस समय कांग्रेस की ओर से जवाहर लाल नेहरू ने जीवी मावलंकर का नाम स्पीकर के उम्मीदवार के तौर पर आगे रखा। वहीं एसके गोपालन ने शंकर शांताराम मोरे का नाम स्पीकर के पद के उम्मीदावरा के तौर पर प्रस्तावित किया। बाद में वोटिंग की नौबत आई। मावलंकर के समर्थन में 394 वोट पड़े जबकि विरोध में 55 वोट गए। लेकिन इसमें सबसे दिलचस्प बात ये रही कि शांता राम मोरे ने भी मावलंकर के पक्ष में वोट किया। उन्होंने कहा कि ये संसद की परंपरा के अनुरूप होगा कि दो उम्मीदवार जो एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं वो एक दूसरे को ही वोट कर रहे हैं। 

लोकसभा के संचालन का काम जिम्मेदारियों से भरा 

मावलंकर अपनी निष्पक्षता के लिए बड़े मशहूर थे। कांग्रेस के सदस्य होने के बाद भी उन्हें किसी भी पार्टी के सदस्य के तौर पर नहीं देखा जाता था। जीवी मावलंकर एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। भारत को आजादी मिलने के बाद संविधान 1950 में लागू हुआ। पहले लोकसभा चुनाव के बाद 1952 में पहली लोकसभा का गठन हुआ। उसके बाद सबसे बड़ी चुनौती स्पीकर के चुनाव की थी। लोकसभा के संचालन में अध्यक्ष का काम बहुत ही जिम्मेदारियों से भरा और संवेदनशील होता है। इस पद को संभालने के लिए जीवी मावलंकर से बेहतर कोई और नहीं हो सकता था। इसलिए उन्हें ये जिम्मेदारी सौंपी गई। 

नेहरू को भाषण देने से रोक दिया

जीवी मावलंकर के खिलाफ साल 954 में अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गया। लेकिन लोकसभा ने उसे अस्वीकार कर दिया था। मावलंकर अक्सर ही प्रधानमंत्री के साथ असहमत होते थे। उदाहपण के तौर पर अध्यादेश के मुद्दे पर नेहरू और मावलंकर के विचार बिल्कुल अलग अलग थे। मावलंकर ने कहा था कि ये काम करने का लोकतांत्रकि तरीका नहीं है। केवल असाधारण परिस्थितियों में ही सरकार अध्यादेश ला सकती है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसएल शकधर ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा था कि मावलंकर ने नेहरू को दूसरा बयान देने से रोक दिया था। क्योंकि ये लोकसभा के नियमों का उल्लंघन था। नेहरू ने उनके फैसले के सामने शालीनता से सिर झुकाया। 

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