क्या है मिन्स्क समझौता, जिसकी नरजअंदाजी ने रूस और यूक्रेन को युद्ध के कगार पर ला खड़ाकर दिया

Russia Ukraine
अभिनय आकाश । Mar 7 2022 6:33PM

मिन्सक समझौता एक बार नहीं बल्कि दो बार हुआ था। इसलिए इसे मिन्सक वन और मिन्स टू कहते हैं। पहला मिन्स्क समझौता सितंबर 2014 में हुआ था इस समझौते के तहत 12 प्वाइंट युद्ध विराम के प्रस्लाव पर हस्ताक्षर हुए थे। इस वक्त था क्रीमिया को रूस हथिया चुका था और 14 हजार लोग मारे जा चुके थे। इससे कोशिश ये थी की शांति हो। इसके बाद मिन्सक टू समझौता मार्च 2015 में साइन किया गया था।

रूस और यूक्रेन में बीते 12 दिनों से जंग छिड़ी है। दोनों देशों के बीच छिड़ी जंग से ना सिर्फ वहां के नागरिकों को बल्कि संपूर्ण जगत के राजनेताओं को भी चिंता में डाल दिया है। जंग में रोज यूक्रेन के अलग-अलग शहरों पर मिसाइलों और बमों से हमले जारी हैं। इस दौरान कई लोगों की जान जा चुकी है जबकि लाखों की तादाद में लोग यूक्रेन से पलायन करने पर मजबूर हो गए हैं। रूस यक्रेन के बीच जंग की चर्चा के साथ ही एक समझौता भी खूब सुर्खियों में है। जिसके बारे में कहा जाता है कि अगर दोनों देश इस समझौते पर अमल करके आगे बढ़ने की कोशिश करें तो शायद युद्ध की संभावनाओं पर विराम लगाया जा सकता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है मिन्सक समझौता और इसे ये नाम क्यों दिया गया। 

मिन्सक समझौता एक बार नहीं बल्कि दो बार हुआ था। इसलिए इसे मिन्सक वन और मिन्स टू कहते हैं। पहला मिन्स्क समझौता सितंबर 2014 में हुआ था इस समझौते के तहत 12 प्वाइंट युद्ध विराम के प्रस्लाव पर हस्ताक्षर हुए थे। इस वक्त था क्रीमिया को रूस हथिया चुका था और 14 हजार लोग मारे जा चुके थे। इससे कोशिश ये थी की शांति हो। इसके बाद मिन्सक टू समझौता मार्च 2015 में साइन किया गया था। लुहान्सक और दोनेत्स्क में युद्ध खत्म करने के लिए किया गया था। जानकार कहते हैं कि अगर यूक्रेन ने इसको लागू करने की कोशिश की तो देश में विद्रोह हो जाएगा। पूरे देश में रूसी भाषी लोग रहते हैं। वहां घरों में रूसी भाषा बोली जाती है। दोनों ही समझौते बेलारूस  की राजधानी मिन्स्क में हुए थे इसीलिए इनका नाम ही ‘मिन्स्क समझौता’ रख दिया गया।

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मिन्स्क-I समझौता (सितंबर 2014)

युद्ध की समाप्ति की मांग करते हुए सितंबर 2014 में बेलारूस में पहले मिन्स्क समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। समझौते के हस्ताक्षरकर्ता रूस, यूक्रेन, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (ओएससीई) और डोनेट्स्क और लुहान्स्क के रूस समर्थक नेता थे। यूक्रेन और रूस समर्थित अलगाववादी साल 2014 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में एक 12 बिंदु वाले संघर्ष विराम समझौते पर सहमत हुए थे। इसके प्रावधानों में युद्धविराम, कैदियों की अदला-बदली, सशस्त्र संरचनाओं की वापसी शामिल थे। इसने डोनेट्स्क और लुहान्स्क के लिए एक आर्थिक पुनर्निर्माण कार्यक्रम के लिए भी निर्देश दिया। किन इस समझौते का दोनों ही पक्षों की ओर से जल्द ही उल्लंघन देखने को मिला था। 

मिन्स्क-द्वितीय समझौता (फरवरी 2015)

प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर के बावजूद दोनों पक्षों के बीच लड़ाई जारी रही। फ्रांस, जर्मनी, यूक्रेन और रूस के नेता, जिन्हें सामूहिक रूप से नॉरमैंडी फोर कहा जाता है, फरवरी 2015 में एक नए युद्धविराम समझौते पर सहमत हुए। यह समझौता प्रारंभिक मिन्स्क समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए उपायों का एक 13-सूत्रीय पैकेज था।

सैन्य डी-एस्केलेशन: दूसरे समझौते ने डोनेट्स्क और लुगांस्क क्षेत्रों में "तत्काल और व्यापक" युद्धविराम का आह्वान किया। इसके अलावा, दोनों देशों को भारी हथियारों को इस तरह से वापस लेना था कि कम से कम 50 किलोमीटर चौड़ा सुरक्षा बनाना। पूरी प्रक्रिया की निगरानी ओएससीई द्वारा उपग्रहों, ड्रोन, रडार उपकरण आदि के रूप में आवश्यक सभी तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके की जानी थी।

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डोनेत्स्क और लुहांस्क में स्थानीय चुनाव: यूक्रेनियन सरकार को यूक्रेनियन कानून के अनुसार, दो क्षेत्रों में स्थानीय चुनावों के तौर-तरीकों पर बातचीत शुरू करने के लिए कहा गया था। यह एक अंतरिम स्थानीय स्वशासन के साथ-साथ विद्रोही क्षेत्रों के भविष्य के शासन के संबंध में था। इसके अतिरिक्त समझौते पर हस्ताक्षर करने के तीस दिनों के भीतर यूक्रेनी संसद को विशेष शासन वाले क्षेत्रों को निर्दिष्ट करने के लिए एक प्रस्ताव को अपनाने के लिए कहा गया था। 2015 के अंत तक, इसे दो क्षेत्रों की विशेष स्थिति पर एक स्थायी कानून अपनाने के लिए कहा गया था।

सीमा: समझौते ने पूरे संघर्ष क्षेत्र में यूक्रेनी सरकार द्वारा राज्य की सीमा पर पूर्ण नियंत्रण बहाल करने का निर्देश दिया। यह स्थानीय चुनावों और दोनों क्षेत्रों के साथ राजनीतिक समझौते के समापन के बाद शुरू किया जाना था।

क्षमा और एमनेस्टी: डोनेत्स्क और लुहांस्क की घटनाओं में शामिल सभी व्यक्तियों को क्षमा और माफी दी जाएगी, समझौते में कहा गया है। इसने पार्टियों से वापसी के पांच दिनों के भीतर सभी बंधकों की रिहाई और विनिमय सुनिश्चित करने के लिए कहा। दोनों पक्षों को जरूरतमंद लोगों तक मानवीय सहायता की सुरक्षित पहुंच, वितरण, भंडारण और वितरण सुनिश्चित करना था।

दोनों देशों के अपने अपने तर्क

यूक्रेन अपने मुताबिक अपने संविधान में सुधार या बदलाव कर सकेगा। इस सबके बाद  भी अगर इन दोनों समझौते को दोनों ही देशों ने गंभीरता से स्वीकार या लागू नहीं किया तो इसका नतीजा आज दुनिया के सामने है। एक बार फिर दोनों देशओं की सेना जंग के मैदान में आमने-सामने है। मिन्स्क समझौते को नजरअंदाज करने वाले दोनों देश अपने अपने तर्कों को सही मानकर जिस राह पर आगे कदम बढ़ा चुके हैं उससे केवल और केवल तबाही और बर्बादी ही नजर आ रही है। 

अब क्यों हो रही इसकी चर्चा?

मिन्स्क II रूस और यूक्रेन को बातचीत की मेज पर लाने का एक माध्यम है। इसके अलावा ये समझौता रूस को इस बात की गारंटी देता है कि यूक्रेन कभी नाटो में शामिल नहीं होगा। ये समझौता यूक्रेन को अपनी सीमा पर कंट्रोल का अधिकार देता है जिससे अभी के लिए रूस का हमला टल सकता है। डोनेत्स्क और लुहंस्क में रूसी समर्थकों की सत्ता है. यूक्रेन में बहुत से लोग मानते हैं कि मिन्स्क II समझौता उन्हें रूसी हमले से बचा सकता है।

-अभिनय आकाश 

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