पंजाब देख रहा हिंसा का 'तूफान', कहां हैं मुख्यमंत्री भगवंत मान, क्या राज्य में फिर से हो रहा खालिस्तान का उदय
पंजाब की शांति को भंग करने के लिए लगातार शरारतों पर आमदा देश विरोधी ताकतों द्वारा पिछले कुछ महीनों के दौरान लगातार सक्रिय हैं।
1980-90 के दशक में भारत के सबसे हिंसक विद्रोहों में से एक खालिस्तान आंदोलन, जिसने 21 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली। लेकिन इसके तीन दशक बाद फिर से पिछले एक साल से खालिस्तान आंदोलन के जीवत होने की खबरें विभिन्न तरह से सामने आती रहीं। फिर बीते दिनों सिख फॉर जस्टिस के कन्वीनर गुरपतवंत पन्नू ने 29 अप्रैल को खालिस्तान का स्थापना दिवस मनाने की घोषणा और पटियाला में हिंसक झड़प। पंजाब की शांति को भंग करने के लिए लगातार शरारतों पर आमदा देश विरोधी ताकतों द्वारा पिछले कुछ महीनों के दौरान लगातार सक्रिय हैं। ताजा मामला खालिस्तान के एक अलगाववादी नेता द्वारा पंजाब पुलिस और प्रशासन को घुटने पर ला देने के बाद सामने आया है। उग्रवाद और आतंकवाद विरोधी अभियानों के इतिहास से त्रस्त राज्य वर्तमान में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। लेकिन अहम सवाल यह है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान कहां हैं जब उनके राज्य को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है?
तलवारों के साथ प्रदर्शन, थाने पर किया कब्जा
खालिस्तान नेता अमृतपाल सिंह के सैकड़ों समर्थकों ने अपहरण के एक मामले में गिरफ्तार किए गए अपने सहयोगी को छुड़ाने के लिए अजनाला में एक पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया। अमृतपाल सिंह अभिनेता-कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा गठित संगठन वारिस पंजाब डे का प्रमुख हैं। अमृतसर में अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर लगे पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ते हुए तलवारों और बंदूकों से लैस सैकड़ों लोगों के बीच पुलिस बैठी हुई बतख की तरह लग रही थी। पथराव में छह पुलिसकर्मी घायल हो गए। एक पखवाड़े में पुलिस पर यह दूसरा हमला है। 8 फरवरी को, सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे सशस्त्र प्रदर्शनकारियों के उग्र होने के बाद 33 पुलिसकर्मी घायल हो गए और दर्जनों पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। खालिस्तानी तत्वों ने कुछ हथियार और गोला-बारूद भी छीन लिए और पुलिसकर्मियों को मारने की कोशिश की। हमलावरों में कट्टरपंथी नाबालिग लड़के भी शामिल थे। हवा में खालिस्तान समर्थक नारे गूंज रहे हैं। दोनों में से किसी भी घटना में पुलिस ने वॉटर कैनन के अलावा बल प्रयोग करने की हिम्मत नहीं दिखा सकी। पुलिस को खालिस्तानी समर्थक भीड़ के खिलाफ बल प्रयोग करने के लिए राजनीतिक नेतृत्व से कोई आदेश नहीं मिला। खालिस्तानियों द्वारा खुली चुनौती दिए जाने के बावजूद प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार करने का साहस नहीं किया।
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खालिस्तान की भावना को कोई दबा नहीं सकता
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह खुद को जरनैल सिंह भिंडरावाले 2.0 के रूप में फिर से ब्रांड करने की कोशिश कर रहा है। अमृतपाल सिंह ने दोहराया है कि खालिस्तान की भावना बनी रहेगी और कोई इसे दबा नहीं सकता है। एक वीडियो में अमृतसर के एसएसपी को धमकी देता नजर आया कि आपके बच्चे ड्रग्स में हैं … हम आपका काम कर रहे हैं, और आप लोग हमें धमकी दे रहे हैं। मैं यहां थाने आया हूं, मुझे गिरफ्तार करो। जिस व्यक्ति ने मेरे खिलाफ शिकायत की है वह मानसिक रूप से बीमार है और उसका पीजीआई में इलाज चल रहा है। अमृतपाल सिंह ने कहा कि वह आप के साथ बैठकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं। क्या इससे यह नहीं पता चलता कि इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा है? पुलिस अमृतपाल सिंह द्वारा प्रस्तुत सबूतों के आधार पर तूफान सिंह को रिहा करने के लिए तैयार हो गई।
पंजाब में चरमपंथ का इतिहास
पंजाब के माझा क्षेत्र में दमदमी टकसाल से उग्रवाद का सबसे बड़ा चेहरा भिंडरावाले जिसने 15 दिसंबर 1983 को अपने साथियों के साथ स्वर्ण मंदिर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया। अकाल तख्त का मतलब एक ऐसा सिंहासन था जो अनंतकाल के लिए बना हो। अकाल तख्त से ही भिंडरावाले ने इंदिरा गांधी को चेतावनी दी और कहा कि हम तो माचिश की तीली की तरह हैं ये लकड़ी से बनी है और ठंडी है लेकिन उसे जलाएंगे तो लपटें निकलेंगी। 1 जून 1984 को पंजाब को सेना के हवाले कर दिया गया। फौज के ‘विजेता टैंकों’ ने मंदिर की बाहरी दीवार तोड़कर ताबड़तोड़ बमबारी की जिससे आतंकियों को काफी नुकसान हुआ। इस अंतिम हमले में शुबेग सिंह, अमरीक सिंह और भिंडरावाले मारे गए। भिंडरावाले की हत्या के महीनों बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या ऑपरेशन ब्लूस्टार से जुड़े एक प्रतिशोधी हमले में कर दी गई थी। पंजाब उग्रवादी आंदोलन में अपनी कई पीढियों को गंवा चुका है। ऐसे में अशांत राज्य में अलगाववाद की चिंगारियों को हवा देना चिंता का विषय है। इसमें मुख्यमंत्री की सक्रिय भागीदारी और प्रतिबद्धता की जरूरत है। लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान कार्रवाई में गायब हैं।
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खालिस्तान आंदोलन फिर से उठा रहा है सिर?
गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2019-2020 में गैर-कानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) को "गैरकानूनी संघ" के रूप में घोषित करने के अलावा खालिस्तान आंदोलन का कोई उल्लेख नहीं है। 1 जुलाई 2020 को नौ खालिस्तानियों को औपचारिक रूप से अगस्त 2019 में संशोधित यूएपीए अधिनियम के तहत आतंकवादी के रूप में नामित किया गया था। ऐसे में लागातर खालिस्तानी संगठन की सक्रियता से राज्य में खालिस्तान आंदोलन क्या एक बार फिर से सिर उठाने लगा है? 2021 में प्रकाशित हुई द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार बीएसएफ ने एके सीरीज राइफल, पिस्तौल, 3,322 राउंड गोला बारूद और 485 किलोग्राम हेरोइन सहित सभी प्रकार के 34 हथियार बरामद किए थे। हालांकि गिराए गए / बरामद किए गए हथियारों की कुल संख्या के संबंध में कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी निश्चित रूप से एक संकेतक है कि आतंकी संगठन आईएसआई और पाकिस्तान में खालिस्तानी आतंकवादी संगठन विद्रोह को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं।
स्थिति को बदतर होते देर नहीं लगेगी
खालिस्तान एक्सट्रीमिज्म मॉनिटर द्वारा संकलित आधिकारिक स्रोतों के आधार पर आंकड़ों के अनुसार खालिस्तानी आतंकवादी हिंसा के कारण 38 मौतें हुई हैं। इनमें 35 आम नागरिक और 3 आतंकवादी शामिल थे। खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित करने के लिए आईएसआई, पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी संगठनों और अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी में स्थित खालिस्तान समर्थक संगठनों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, पंजाब में इसके लिए खड़ा होने वाले की संख्या नगण्य हैं। हालाँकि, कई कमजोरियाँ सर्वव्यापी हैं और स्थिति को बदतर होने में देर नहीं लगती। उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिए पंजाब पुलिस को पुनर्जीवित करने और अत्याधुनिक तकनीक के साथ सीमा सुरक्षा कड़ी करने की आवश्यकता है।
चुनाव प्रचार में लगे मान
इन तमाम चिंताजनक संकेतों और परेशान करने वाले तथ्यों के बीच जाहिर तौर पर बड़ा सवाल यह है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान कहां हैं? भगवंत मान आज मुंबई में बीएमसी चुनाव से जुड़े एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले हैं। वह दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ मुंबई निकाय चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए तैयार हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने भारत के सबसे धनी नागरिक निकाय, बीएमसी के चुनाव के लिए अपनी ताकत झोंक दी है। यह 15 साल बाद आप द्वारा दिल्ली नगर निगम का नियंत्रण भाजपा से छीनने के बाद आया है। भगवंत मान आप के राजनीतिक अभियानों का शोपीस रहे हैं। भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल अप्रैल में मंडी में एक विशाल रोड शो के साथ आप के हिमाचल प्रदेश चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। भगवंत मान आज मुंबई में बीएमसी चुनाव से जुड़े एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले हैं। वह दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ मुंबई निकाय चुनाव के लिए प्रचार करने के लिए तैयार हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने भारत के सबसे धनी नागरिक निकाय, बीएमसी के चुनाव के लिए अपनी टोपी झोंक दी है। यह 15 साल बाद आप द्वारा दिल्ली नगर निगम का नियंत्रण भाजपा से छीनने के बाद आया है। गुजरात में अहमदाबाद से कच्छ तक रैलियों के साथ अपने प्रचार अभियान के बाद, भगवंत मान को पंजाब में विपक्ष द्वारा "अनुपस्थित मुख्यमंत्री" करार दिया गया था।
क्या पंजाब की अनदेखी कर रहे मान?
पंजाब में विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता प्रताप बाजवा ने पिछले साल नवंबर में शिकायत की थी कि भगवंत मान के चुनाव प्रचार के दौरान पंजाब में कानून-व्यवस्था चरमरा गई। इससे पहले इस साल जनवरी में, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता के चंद्रशेखर राव द्वारा आयोजित विपक्षी रैली में भाग लेने वाले तीन मुख्यमंत्रियों में से भगवंत मान ही एकमात्र अतिथि थे। अन्य दो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके केरल समकक्ष पिनाराई विजयन थे। दरअसल, इस सप्ताह की शुरुआत में खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह द्वारा दी जा रही धमकियों के बारे में पूछे जाने पर भगवंत मान ने मोहल्ला क्लीनिक सहित आप के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार की उपलब्धियों के बारे में बात करके मुद्दे को भटकाने की कोशिश की।
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