राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की शिक्षा नीति से कितनी अलग है मोदी सरकार की New Education Policy 2020
'शिक्षा नीति' अगर सरल भाषा में कहें तो कब तक स्कूलों में पढ़ना है, ग्रेजुएशन कितने साल का होगा। बोर्ड की परिक्षाएं कौन से साल में होंगी? मोदी सरकार न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 लेकर आई है। शिक्षा पर खर्च को जीडीपी के 6 प्रतिशत तक पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य साथ मिलकर काम करेंगे।
कहते हैं कि जो आपने सीखा है उसे भूल जाने के बाद जो रह जाता है वो शिक्षा है। शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसे आप दुनिया बदलने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। ये कहा जाता है कि देश में जब बड़ा बदलाव करना हो तो सबसे पहले शिक्षा नीति को बदलना चाहिए। और इसकी शुरूआत हो चुकी है। नई शिक्षा नीति पर मुहर लगने के साथ ही करीब 34 साल बाद हिन्दुस्तान में बदल गया शिक्षा नीति का पैटर्न।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को रिकॉर्ड बहुमत मिला था। जवाहर लाल नेहरू के प्रपौत्र और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी ने देश की सत्ता संभाली। 1984 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तब वह देश की व्यवस्था में काफी बदलाव लाना चाहते थे। सत्ता संभालने के एक साल के बाद ही राजीव गांधी सरकार ने शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में तब्दील कर दिया। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस वक्त वह कई सलाहकारों से घिरे रहा करते थे। तब उन्होंने सलाहकारों के इस सुझाव को माना कि शिक्षा से जुड़े तमाम विभागों को एक छत के नीचे लाया जाना चाहिए। इस तर्क के आधार पर 26 सितंबर, 1985 को शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया था और पीवी नरसिम्हा राव को इस मंत्रालय की कमान सौंप दी गई। तब संस्कृति, युवा और खेल जैसे विभागों को शिक्षा से जुड़ा मानते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत लाया गया। इसके लिए राज्य मंत्री नियुक्त किए गए। इसके अगले वर्ष नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई थी। इसके तहत पूरे देश में उच्च शिक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण और विस्तार हुआ। मानव को संसाधन मान सकते हैं क्या, जवाब नहीं, क्योंकि ये हमारे भारतीय मूल्यों के खिलाफ है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संगठन भारतीय शिक्षण मंडल ने साल 2018 के अधिवेशन में इस बात को उठाते हुए इसे बदलने की मांग की थी। मोदी सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रलाय का नाम बदलते हुए शिक्षा मंत्रालय कर दिया। जिसके बाद एचआरडी मिनिस्टर अब हो गए हैं शिक्षा मंत्री।
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'शिक्षा नीति' अगर सरल भाषा में कहें तो कब तक स्कूलों में पढ़ना है, ग्रेजुएशन कितने साल का होगा। बोर्ड की परिक्षाएं कौन से साल में होंगी? क्या पढ़ाया जाएगा? किस मकसद के साथ पढ़ाया जाएगा? इस तरह के नियम तय करने वाली नीति और इन नियमों की एक नई नीति नरेंद्र मोदी सरकार लेकर आई है जिसे न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 नाम दिया गया है। इस नीति के तहत क्या बदलाव किए गए हैं इसके बारे में आगे विस्तार से बताएंगे। लेकिन इसको लाने की जरूरत क्यों पड़ी उसके जवाब में नरेंद्र मोदी की सरकार ने क्या कहा पहले वो सुनवा देते हैं।
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आजादी के 21 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1968 में पहली बार राष्ट्रीय शिक्षा नीति लेकर आईं। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1968 में पहली शिक्षा नीति की घोषणा की गई। यह कोठारी कमीशन (1964-1966) की सिफारिशों पर आधारित थी। इस नीति को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने लागू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना और देश के सभी नागरिकों को शिक्षा मुहैया कराना था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के अनुसार, 14 वर्ष तक के आयु तक अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा होनी चाहिए। यह सुनिश्चित हो कि नामांकन के बाद हर बच्चा बीच में पढ़ाई न छोड़े।
- इस नीति में भारतीय भाषाओं के साथ ही विदेशी भाषाओं के विकास पर भी जोर दिया गया था। तीन भाषा का फॉर्मूला पेश किया जाना चाहिए, जिसमें माध्यमिक स्तर पर एक छात्र को हिंदी और अंग्रेजी के साथ ही अपने क्षेत्र की भाषा को जानना चाहिए।
- देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के निर्धारण के लिए शिक्षक सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए उन्हें समाज में सम्मान मिलना चाहिए। इसके लिए उनकी योग्यता और प्रशिक्षण बेहतर होना चाहिए। साथ ही उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर लिखने, पढ़ने और बोलने की आजादी होनी चाहिए।
- देश के प्रत्येक बच्चे को चाहे उसकी जाति, धर्म या क्षेत्र कुछ भी हो शिक्षा प्राप्ति का समान अवसर होना चाहिए। शिक्षा सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों के बच्चों, लड़कियों और शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
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अठारह साल बाद 1986 में राजीव गांधी सरकार नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई। नीति का मकसद महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा में समान अवसर मुहैया कराना था। नीति के तहत ओपन यूनिवर्सिटी खोलने की शुरूआत भी की गई। नतीजा इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी सामने आई। ग्रामीण शिक्षा के विकास पर जोर देने की बात भी जोर-शोर से की गई। समें कंप्यूटर और पुस्तकालय जैसे संसाधनों को जुटाने पर जोर दिया गया।
1986 की नीति
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में देश में शिक्षा के विकास के लिए व्यापक ढांचा पेश किया गया। शिक्षा के आधुनिकीकरण और बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने पर जोर रहा।
- पिछड़े वर्गों, दिव्यांग और अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
- इस शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर पर बच्चों के स्कूल छोड़ने पर रोक लगाने पर जोर दिया गया और कहा गया कि देश में गैर औपचारिक शिक्षा के नेटवर्क को पेश किया जाना चाहिए। साथ ही 14 वर्ष की आयु के बच्चों की शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- महिलाओं के मध्य अशिक्षा की दर को कम करने के लिए उनकी शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए। उन्हें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में प्राथमिकता दी जाए। साथ ही व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा में उनके लिए विशेष प्रावधान किए जाएंगे।
- संस्थानों को आधारभूत संरचना जैसे कंप्यूटर, पुस्तकालय जैसे संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। छात्रों के लिए आवास विशेष रूप से छात्राओं को आवास उपलब्ध कराए जाएंगे।
- शैक्षिक विकास की समीक्षा करने और शिक्षा सुधार के लिए आवश्यक परिवर्तनों के निर्धारण में केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ऑफ एजुकेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- गैर सरकारी संगठनों को देश में शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
1992 में पी.वी. नरसिम्हा राव और फिर 2005 में मनमोहन सिंह सरकार ने भी अपने-अपने तरीके से शिक्षा नीति में बदलाव किए। देशभर के लिए कॉमन एन्ट्रेन्स टेस्ट लेने की शुरूआत हुई।
भारत में जैसा शिक्षा का पैटर्न है और जैसी जटिलताएं इसमें रही हैं, लंबे समय से मांग की जा रही थी कि इसमें कुछ अहम परिवर्तन किए जाएं और इसको मॉडिफाई किया जाए। तो वो तमाम लोग जो भारतीय शिक्षा पद्धति और उसके नियमों से अब तक संतुष्ट नहीं थे उनको सरकार ने बड़ी राहत दी है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नई शिक्षा नीति भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र का हिस्सा थी और सरकार में आने के बाद भी बीजेपी ने ये एजेंडा छोड़ा नहीं। नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए 31 अक्टूबर 2015 को सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मणयम की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाई। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 27 मई 2016 को दी। 24 जून 2017 को इसरो के प्रमुख वैज्ञानिक के कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में 9 सदस्यों की कमेटी को नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई। 31 मई 2019 को इस नीति का ड्राफ्ट एचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया। ड्राफ्ट पर एचआरडी मंत्री ने लोगों के सुझाव मांगे और दो लाख सुझाव आए। इसके बाद 29 जुलाई को केंद्रीय कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी। नई शिक्षा नीति में स्कूल के बस्ते, प्री प्राइमरी क्लासेस से लेकर बोर्ड परीक्षाओं, रिपोर्ट कार्ड, यूजी एडमिशन के तरीके, एमफिल तक एक साथ कई चीजों में कुछ अहम परिवर्तन किए गए हैं जिनका अब सीधा फायदा इन कोर्सेज से जुड़े छात्रों को मिलेगा।
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नई शिक्षा नीति 2020 लागू होने के बाद क्या बदलाव आयेगा
नई शिक्षा नीति पर जिस बात को लेकर सबसे ज्यादा बहस हो रही है वो ये कि अब इसके दायरे में स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ एग्रीकल्चर, चिकित्सा शिक्षा और टेक्निकल एजुकेशन को भी जोड़ दिया गया है। आजकल चूंकि पढ़ाई के बाद छात्रों को नौकरी हासिल करने में खासी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है इसलिए माना यही जा रहा है कि इस नई शिक्षा नीति से ये संकट दूर होगा और छात्रों को रोजगार मिलने में आसानी होगी। बता दें कि नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य छात्रों को पढ़ाई के साथ साथ किसी लाइफ स्किल से सीधे जोड़ना है।
कुछ सवाल जो नई शिक्षा नीति को लेकर आपके मन में उठ रहे होंगे पहले उनको दूर कर देते हैं। फिर विस्तार से इसका एमआरआई स्कैन करेंगे।
नई शिक्षा नीति
सवाल- क्या छात्रों के लिए सिर्फ Final Exams की तैयारी जरूरी?
जवाब- छात्रों को साल भर पढ़ने की जरूरत
9वीं से 12वीं तक की परीक्षाएं Semester आधारित
वर्ष में दो सेमेस्टर, हर 6 महीने पर एक परीक्षा
दोनों सेमेस्टर्स के अंकों को जोड़कर Marksheet बनेगी
सवाल- छात्र को पसंद की भाषा चुनने की छूट मिलेगी?
जवाब- छात्र पसंद की भाषा में परीक्षा देंगे।
सवाल- छात्रों का रिपोर्ट कार्ड पहले की तरह बनेगा?
जवाब- व्यवहार, प्रदर्शन और मानसिक क्षमता का ध्यान
Report Card यानी 360 डिग्री Assesment
छात्र खुद को भी अंक देंगे, शिक्षक भी छात्र को अंक देंगे।
छात्रों के सहपाठी भी उनका आंकलन करेंगे।
सवाल- कॉलेज के छात्रों के लिए क्या बदलाव?
जवाब- कॉलेज में एडमिशन के लिए Common Aptitude Test
12वीं कक्षा के बोर्ड Exams में नंबर कम हों, CAT और 12वीं कक्षा के नतीजों को जोड़ दिया जाएगा।
सवाल- छात्र अगर Graduation की पढ़ाई पूरी ना कर पाएं तो?
जवाब- 1 साल के बाद कॉलेज छोड़ देते हैं तो Certificate
2 साल की पढ़ाई के बाद छोड़ दिया तो डिप्लोमा
3 साल की पढ़ाई के बाद छोड़ दिया तो Bachelor's Degree
4 साल के कोर्स के साथ Research Certificate के साथ डिग्री
व्यवहारिक ज्ञान
कक्षा 6 के छात्र भी कर सकेंगे Internship
विशेष रूचि होने पर Practical Training मिलेगी
Co Curricular Activities अब Main Syllabus का हिस्सा
इस बात में कोई शक नहीं कि गणित, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, अंग्रेजी हिंदी जैसे विषय एक समय के बाद बोझिल हो जाते हैं। शायद यही वो कारण था जिसके चलते पूर्व की शिक्षा नीति में आर्ट, म्यूजिक, स्पोर्ट्स, योग को सहायक पाठ्यक्रम यानी Co Curricular में डाला गया था। नई शिक्षा नीति में सारा जोर छात्रों में लाइफ स्किल के लिए डाला गया है तो अब ये सभी विषय मेन सिलेबस का हिस्सा होंगे और इन्हें extra curricular नहीं कहा जाएगा।
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स्कूली शिक्षा का 5+3+3+4 फाॅर्मूला
फाउंडेशन स्टेज
पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे कवर होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा।
प्रीप्रेटरी स्टेज
इस चरण में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। आठ से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को इसमें कवर किया जाएगा।
मिडिल स्टेज
इसमें कक्षा 6-8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11-14 साल की उम्र के बच्चों को कवर किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास कोर्स भी शुरू हो जाएंगे।
सेकेंडरी स्टेज
कक्षा नौ से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। विषयों को चुनने की आजादी भी होगी। विज्ञान गणित के साथ फैशन डिजाइनिंग पढ़ सकेंगे।
पहले यह थी व्यवस्था
पहले सरकारी स्कूलों में प्री-स्कूलिंग नहीं थी। कक्षा एक से 10 तक सामान्य पढ़ाई होती थी। कक्षा 11 से विषय चुन सकते थे।
छह अहम पहल
- बोर्ड परीक्षाएं वार्षिक सेमेस्टर और मॉड्यूलर आधारित होंगे। यह दो भागों या दो तरह जैसे वस्तुनिष्ठ और व्याख्यात्मक भी हो सकती हैं।
- उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा।
- विधि, चिकित्सा कॉलेजों को छोड़ सभी उच्च शिक्षण संस्थान एक ही नियामक द्वारा संचालित होंगे।
- एमफिल को खत्म किया जाएगा पोस्टग्रेजुएट कोर्स में 1 साल के बाद पढ़ाई छोड़ने का विकल्प होगा।
- निजी और सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए साझा नियम होंगे।
- राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जाम का ऑफर दिया जाएगा।
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बीच में पढ़ाई छोड़ने पर भी मिलेगा सर्टिफिकेट
Graduation की पढ़ाई को 3 और 4 वर्षों के Course Duration में बांटा जाएगा। पहले अगर आप कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे तो आपको ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं मिलती थी। लेकिन नई शिक्षा नीति लागू होने के बाद अगर आप एक साल के बाद कॉलेज छोड़ देते हैं तो आपको Certificate दिया जाएगा। इसी तरह अगर आप दो साल की पढ़ाई करके कॉलेज छोड़ देते हैं तो आपको डिप्लोमा दिया जाएगा और अगर आप तीन साल की पढ़ाई पूरी करते हैं तो आपको Bachelor's degree दी जाएगी। अगर आप 4 साल का कोर्स करके.. Bachelor’s degree लेना चाहते हैं तो आपको Research के Certificate के साथ ये डिग्री मिलेगी।
बोर्ड परीक्षा को लेकर नियम
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में बोर्ड परीक्षा का पैटर्न ऐसे सेट किया गया है ताकि छात्रों को किसी भी प्रकार का तनाव न हो। इस नीति में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाने की घोषणा की गई है। बोर्ड परीक्षाएं दो भागों में या दो लेवल की परीक्षा के तौर पर बांटा जाएगा। जिसमें ऑब्जेक्टिव और डिस्क्रिप्टिव टाइप के सवाल होंगे। 9वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक की परिक्षाएं अब सेमेस्टर के आधार पर होगी। वर्ष में दो सेमेस्टर होंगे और हर 6 महीने पर एक परीक्षा होगी। इसी से साथ इस साल बोर्ड सिलेबस को 30% कम कर दिया है। इसके अलावा अब बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा जाएगा। जैसे कि आपने अगर स्कूल में कुछ रोजगारपरक शिक्षा सीखी है तो इसे आपके रिपोर्ट कार्ड में जगह मिलेगी।
शिक्षा पर जीडीपी के 6% खर्च को सुनिश्चित किया जाएगा
शिक्षा पर खर्च को जीडीपी के 6 प्रतिशत तक जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य साथ मिलकर काम करेंगे। शिक्षा मंत्री पोखरियाल निशंक ने कहा, ‘खास तौर से शिक्षा से जुड़ी कई अहम चीज़ों के लिए आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाएगी।
रिपोर्ट कार्ड में शिक्षणेत्तर गतिविधियों के भी अंक जुड़ेंगे
छात्रों के रिपोर्ट कार्ड को भी अब पहले की तरह तैयार नहीं किया जाएगा। किसी छात्र को फाइनल नंबर देते समय उसके व्यवहार, Extra Curricular Activities में उसके प्रदर्शन और उसकी मानसिक क्षमताओं का भी ध्यान रखा जाएगा। इसके अलावा Report Card को 360 डिग्री Assesment के आधार पर तैयार किया जाएगा। इसमें छात्र खुद को भी अंक देंगे, विषय पढ़ाने वाले शिक्षक भी छात्र को अंक देंगे और छात्रों के सहपाठी भी उनका आंकलन करेंगे।
कॉमन अप्टीट्यूड टेस्ट से भी मिल सकेगा कॉलेजों में दाखिला
कॉलेज में पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए भी इस नई शिक्षा नीति में बहुत सारे बदलाव किए गए हैं। अब छात्र कॉलेज में एडमिशन के लिए Common Aptitude Test दे पाएंगे। इसका अर्थ ये है कि अगर 12वीं कक्षा के बोर्ड Exams में आपके नंबर्स इतने नहीं आए हैं कि आपको Cut Off के आधार पर सीधे किसी कॉलेज में एडमिशन मिल पाए तो आप Common Aptitude Test भी दे सकते हैं। इस टेस्ट में आपके प्रदर्शन को आपके 12वीं कक्षा के नतीजों के साथ जोड़ दिया जाएगा। उसके आधार पर आपको एडमिशन मिल पाएगा।
मातृभाषा में बच्चों की पढ़ाई
NEP 2020 के प्रावधान के मुताबिक, पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई स्थानीय भाषा या मातृाभाषा में होगी। इस नीति में महत्वपूर्ण प्रावधान यह किया गया है कि पूरे देश में 5वीं क्लास तक निश्चित रूप से, 8वीं तक वरीयता के आधार पर और उसके बाद ऐच्छिक आधार पर मातृभाषा और स्थानीय भाषा से छात्रों का संबंध गांव-घर और परिवार में ही नहीं, स्कूलों में भी बना रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संबोधन में मातृभाषा में सिलेबस पढ़ाने के फायदे बताए। उन्होंने कहा कि जब बच्चे अपनी बोली में अपनी पढ़ाई करेंगे तो उन्हें ये अच्छे से समझ आएगी। इसे लेकर उनकी रुचि बढ़ेगी और आगे चलकर उनका हायर एजुकेशन में इसका बेस मजबूत होगा।
नई शिक्षा नीति के पीछे काम कर रहे विजन की तारीफ करते हुए कुछ शिक्षाविद कहते हैं कि इस पर अमल आसान नहीं होगा। सच यही है कि कोई भी नया परिवर्तन लागू करना आसान नहीं होता। उसमें तरह-तरह की बाधाएं आती हैं। पर उम्मीद की जानी चाहिए कि इस शिक्षा नीति को आकार देने वाली सरकार इसे व्यावहारिक जामा प्रदान करने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी। अब जबकि नई शिक्षा नीति आ गयी है और पुरानी चीजों में कई अहम बदलाव कर दिए गए हैं। तो सरकार द्वारा जनता को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से लागू की गई इस व्यवस्था का कितना फायदा होता है फैसला वक़्त करेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपनी सामाजिक संपदा, देशज ज्ञान और लोक भावनात्मकता को आधुनिकता से जोड़कर यह शिक्षा नीति भारत में ‘पूर्ण नागरिक’ के निर्माण का पथ प्रशस्त कर पाएगी। आत्मनिर्भर भारत अगर बनना है तो ऐसे ही शिक्षित मानुष उसकी आधारशिला बनेंगे। - अभिनय आकाश
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