Sheikh Hasina को बचाने के लिए बांग्लादेश में घुसने वाली थी इंडियन आर्मी, लेकिन तभी...भारत के प्लान ढाका की कहानी
बांग्लादेश में सरकार सेना के हवाले हो गई। सेना के ही नियंत्रण में अंतरिम सरकार का गठन होने वाला है। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुना गया है।
प्रणब मुखर्जी उन दिनों वित्त मंत्री हुआ करते थे। एक रोज आधी रात प्रणब मुखर्जी के घर के फोन की घंटी बजी। फोन उठाने पर उधर से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कंपकपाती आवाज में मदद मांगती नजर आई। संकट के दौर में शेख हसीना का पहले कॉल वैसे तो पीएमओ जाना चाहिए था। लेकिन प्रणब दा बंगाल से आते थे और उनकी हसीना से पुरानी जान पहचान थी। इसलिए उन्होंने सीधा उन्हें ही फोन मिलाया। प्रणब मुखर्जी को ये अंदाजा लग गया कि कुछ बहुत बुरा हुआ है या होने वाला है। ये साल 2009 की बात है। लेकिन अभी तो 2024 का साल चल रहा है। सेना का देश के प्रधानमंत्री को पौन घंटे का अल्टीमेटम सामने आता है। लाखों की भीड़ प्रधानमंत्री आवास की तरफ कूच कर रही है। आपके पास 45 मिनट है चाहे तो आप देश छोड़कर भाग सकती हैं। कुछ ही देर में प्रधानमंत्री का इस्तीफा होता है। 5 जुलाई को भारत अनुच्छेद 370 हटाए जाने के पांच साल पूरे होने के अवसर पर जम्मू कश्मीर के हालात और जश्न की खबरों में डूबा ही था कि दिन भर की गहमा गहमी के बीच एक कोड AJAX 1431 सामने आया। ये बांग्लादेश की राजधानी धाका से उड़े सी-130 हर्कुलेस एयरक्रॉफ्ट का कॉल साइन था। दरअसल, प्रधानमंत्री आवास की ओर बढ़ती भीड़ और सेना के अल्टीमेटम के बीच ढाका से सेना का ही एक विमान उड़ता है और शेख हसीना को लेकर भारत के हिंडन एयरबेस पर लैंड होता है। बांग्लादेश में सरकार सेना के हवाले हो गई। सेना के ही नियंत्रण में अंतरिम सरकार का गठन होने वाला है। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए चुना गया है।
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सेना ने बांग्लादेश में घुसने की कर ली थी तैयारी
शेख हसीना जब ढाका से टेकऑफ कर रही थी तो भारत के वायु सेना चीफ लगातार अपनी नजर बनाए हुए थे। इतना ही नहीं 2 राफेल विमान बिहार और झारखंड की सीमा से टेक ऑफ कर चुके थे। फिर जैसे ही भारतीय सीमा के अंदर एक सेफ लोकेशन पर पहुंचने पर वो स्कॉट चला गया। भारत में लैंड करते ही उनकी मुलाकात भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से हो हुई । दोनों के बीच डेढ़ घंटे लंबी चर्चा भी हुई है। इसके अलावा भारत सरकार का विदेश मंत्रालय हरेक गतिविधियों को लगातार मॉनिटर कर रहा है। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं था जब शेख हसीना के मुश्किल वक्त में भारत बड़ा सहारा बनकर सामने आया हो। आज से डेढ़ दशक पहले तो भारतीय सेना शेख हसीना को बचाने के लिए बांग्लादेश में घुसने की तैयारी कर चुका था। 26 फरवरी 2009 को शाम के वक्त कंवलदीप सिंह संधू अपना काम में लगे थे तभी एक कोड एक्टिवेट हुआ। ऑर्डर हुआ कि पैराट्रूप की एक पूरी बटालियन को तैयार किया जाए। पश्चिम बंगाल के कलईकुंडा एयरफोर्स स्टेशन पर एक 1000 से ज्यादा भारतीय पैराट्रपर ला दिए गए थे। सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी। जोरहाट और अगरतला में भी कुछ ऐसा ही माहौल था। यानी बांग्लादेश को पूरी तरह से घेरने की तैयारी हो चुकी थी। ये सारी तैयारी बांग्लादेश को लेकर हो रही थी। बांग्लादेश के पैरामिलिट्री फोर्स बीडीआर ने विद्रोह कर दिया था। भारत की योजना थी कि भारतीय सैनिक बांग्लादेश में तीनों तरफ से प्रवेश करेंगे और ढाका के जिया इंटरनेशनल एयरपोर्ट और तेजगांव एयरपोर्ट पर कब्जा कर लेंगे। इसके बाद वे प्रधानमंत्री के आवास गणभवन पर कब्जा करेंगे और हसीना को सुरक्षित स्थान पर ले जाएंगे। सेना की तैयारी के साथ ही भारत डिप्लोमैटिक स्तर पर भी स्थिति मजबूत करने में लगा था। भारत के तत्कालीन विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और चीन के राजनयिकों से संपर्क किया और उनसे हसीना को समर्थन देने की अपील की। लेकिन, फिर अचानक भारत ने बांग्लादेश में हस्तक्षेप नहीं किया। अब सवाल ये कि आखिर भारत ने ऐसा क्यों नहीं किया। अविनाश पालीवाल ने अपनी किताब इंडियाज नीयर ईस्ट ए न्यू हिस्ट्री में बताते हैं कि भारत ने बांग्लादेश में सैन्य हस्तक्षेप करने का फैसला इसलिए नहीं किया क्योंकि इससे बांग्लादेश की संप्रभुता को ठेस पहुंचती। इसके साथ ही भारत की छवि को भी नुकसान पहुंच सकता था। इसके अलावा मौके की ताक में बैठे पाकिस्तान को भारत विरोधी एजेंडे को चलाने का अवसर मिल जाता। वैसे भारत के हस्तक्षेप से बांग्लादेश का इतिहाल पूरी तरह बदल जाता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं फिर भी भारत ने हसीना को बचाने के लिए बल प्रयोग करने की धमकी देकर वहां की सेना को इतना कमजोर कर दिया कि हसीना अपने विरोधियों का सामना करने के लिए स्वतंत्र हो गई।
बांग्लादेश चुनाव में धांधली के आरोप
साल 2018 में मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी की नेता खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की जेल की सजा सुनाई गई। इसके थोड़े ही समय बाद हुए आम चुनाव में कुल 300 सीटों में आवामी लीग को 257 सीटें मिली, जबकि विपत्र 26 सीटों पर सिमट गया। 7 जनवरी 2024 को हुए आम चुनाव में शेख हसीना को पता था कि इसका स्वरूप पिछले तीन चुनावों जैसा नहीं होगा। विपक्ष के 20-25 हजार नेता-कार्यकर्ता 2023 में हुए आंदोलन के दौरान जेल में थे। उनकी ओर से चुनाव बॉयकाट का नारा था। लेकिन लोग वोट देने आए इसके लिए आवामी लीग की ओर से ये बात फैलाई गई कि जो भी वोट नहीं डालेगा उसे कार्ड पर मिलने वाली कोई भी सरकारी सहायता आगे नहीं मिलेगी। इसके बाद भी वोटिंग बंद होने तक 28 फीसदी लोगों ने ही मतदान किया। बाद में चुनाव आयोग की खींचतान के बाद इसे 40 प्रतिशत बताया गया।
कोटा को लेकर शुरू हुआ बवाल
अभी वाले बवाल की शुरुआत जून में हुई, जब एक हाईकोर्ट ने 2018 में रद्द किए गए विवादास्पद कोटा सिटम को बहाल कर दिया। यह कोर्ट का फैला था, जिससे सरकार हाथ खींच सकती थी लेकिन शेख हसीना ने आंदोलन करने वा छात्रों को रजाकार और आतंकवादी घोषित कर दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए आरक्षण को 79 पर ला दिया, लेकिन तब तक बात इतनी बिड़ चुकी थी कि मामला सरकार से माफी की मांग पर आ गया।
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15 साल का शासन कैसे एक झटके में फिसल गया
शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी और फिर 2008 में वापस लौटी और सोमवार तक इस पद पर रही। 15 अगस्त, 1975 को उनके पिता और बांग्लादेश के पहले नेता शेख मुजीब रहमान की एक सैन्य तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी। उस रात 28 साल की हसीना अपनी छोटी बहन के साथ जर्मनी में थीं। हसीना वर्षों तक भारत में निर्वासन में रहीं, फिर बांग्लादेश वापस चली गईं और अवामी लीग अपने हाथ में ली। सैन्य शासकों ने उन्हें 1980 के दशक तक नजरबंद रखा। 1996 के आम चुनावों के बाद वह पहली बार प्रधानमंत्री बनीं। हसीना और BNP प्रमुख खालिदा जिया के बीच सत्ता संघर्ष चला। 2001 में हसीना हारी और विपक्ष की नेता बन गईं। 2008 में फिर चुनी गई और देश की इकॉनमी, इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाया। 2024 के चुनावों में हेरफेर के आरोप भी लगे, छात्रों के प्रदर्शन के चलते सत्ता गंवाई।
फिर एक बार भारत का सहारा
एक बार फिर से शेख हसीना ने इस संकट का समाधान भारत से अपने गहरे रिशतों में खोजने का प्रयास किया है। वैसे शेख हसीना को लेकर विदेश मंत्री ने ज्यादा कुछ नहीं कहा है। लेकिन ये जरूर साफ कर दिया है कि आगे की रणनीति तय करने के लिए भारत सरकार उन्हें समय देगी। भारत के सामने उन्हें लेकर दोहरी चुनौती है। बांग्लादेश की नई राजनीतिक हकीकत के मद्देनजर वह हसीना की अलोकप्रिय छवि से खुद को बचा कर रखना चाहेगा, साथ ही हसीना के साथ अच्छे संबंध के मद्देनजर उनके मदद मांगे जाने पर मददगार पड़ोसी का रोल भी उसे निभाना है। ऐसे में भारत इन दोनों मसलों को लेकर संतुलन बरतना चाहता है। यही वजह है कि' भारत बेहद संवेदनशीलता के साथ साथ फूंक-फूंक कर कदम रखने की कोशिश कर रहा है। बांग्लादेशी सेना के प्रमुख ने अंतरिम सरकार के गठन की बात कही है। इस बीच, पूर्व पीएम खालिदा जिया की रिहाई के आदेश दिए गए हैं। खालिदा को चीन और पाकिस्तान समर्थक माना जाता है। हालांकि बांग्लादेश में जो भी सरकार आती है, भारत को उसके साथ रिश्ते आगे बढ़ा सकता है।
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