संघ परिवार भाजपा को चुनाव जीतने में कैसे मदद करता है?
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बिना किसी मुख्यमंत्री चेहरे के उतरी भाजपा को अगर घोषित चेहरे वाले दलों को पटखनी देने में कामयाबी मिली तो इसे मोदी- शाह का धोबी पछाड़ दांव माना जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन बीजेपी की इस प्रचंड जीत में एक बड़ा रोल जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी निभाया था।
ये वाजपेयी और आडवाणी के दौर की बात है। तब चाणक्य की भूमिका में प्रमोद महाजन हुआ करते थे। एक बार प्रमोद महाजन से वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने पूछा था कि आप वाजपेयी और आडवाणी में से बड़ा नेता किसे मानते हैं। प्रमोद महाजन ने जवाब दिया था कि बड़ा नेता वो जिसे संघ बड़ा नेता माने। इस वाक्या का जिक्र विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब संघम शरणम गच्छामि में भी किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) 2025 में जिसकी उम्र 100 बरस हो जाएगी। किसी भी संगठन के लिए करीब सौ साल का सफर अहम होता । लेकिन आरएसएस एक ऐसा नाम है जिसका जिक्र होते ही राजनीति के गलियारों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। समाज के भीतर देश के सबसे बड़े परिवार के तौर पर आरएसएस अपनी पहचान कराता है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिभाषा गढ़ने वाले इस संगठन ने राजनीति से तो अपनी दूरी परस्पर बनाई रखी, लेकिन सत्ता की राजनीति में अपनी मौजूदगी की धमक को कुछ इस प्रकार बरकरार रखा कि जिसके इशारों को नजरअंदाज करना तख्त पर बैठे हुक्मरानों के लिए कभी आसान नहीं रहा।
इसे भी पढ़ें: कैसे मिलती है UNSC की अध्यक्षता, भारत को स्थायी सदस्यता मिलने में रूकावट कहां है?
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बिना किसी मुख्यमंत्री चेहरे के उतरी भाजपा को अगर घोषित चेहरे वाले दलों को पटखनी देने में कामयाबी मिली तो इसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह का धोबी पछाड़ दांव माना जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन बीजेपी की इस प्रचंड जीत में एक बड़ा रोल जमीनी स्तर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी निभाया था। जन जागरण अभियान के जरिये संघ परिवार के स्वयं सेवकों ने लोगों को पोलिंग बूथ तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया।
उत्तर प्रदेश ने यूं ही नहीं जाति कि राजनीति की मौत की मुनादी कर दी। दरअसल इसके पीछे संघ परिवार की ठोस रणनीति थी। आरएसएस ने जीत के लिए 50 फीसदी आबादी तक पहुंचने का लक्ष्य साधा, जिसके लिए सवर्ण जातियों+गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित का समीकरण बनाने की कवायद की। हर जिले में कम से कम एक ब्राह्मण+ठाकुर +बैकवर्ड को टिकट देकर एकजुट करने की कोशिश की। इसके अलावा बीजेपी की मेंबरशिप बढ़ाने पर जोर दिया। प्रशांत झा कि किताब के अनुसार बीजेपी ने अपनी मेंबरशिप बढ़ाने के लिए कई ओबीसी और दलित समाज के नामी लोगों का इस्तेमाल किया। जिससे बीजेपी को 15 लाख नए मेंबर बैकवर्ड कम्युनिटी से मिल गए। आरएसएस के बारे में कहा जाता है कि वो वर्तमान का नहीं बल्कि 20 साल आगे का सोचता है। एक बार एक पांचजन्य के एडिटर ने बसपा को बीजेपी के समर्थन दिए जाने के बारे में कहा था कि अगर कोई दमदार दलित चेहरा मिलता है तो उसे आगे करेंगे। आज एक दरवाजा खुलेगा और हमारा नुकसान होगा लेकिन 20 साल बाद दोनों तरफ के दरवाजे खुलेंगे तो हमारा फायदा भी होगा।। 2007 में हाथी नहीं गणेश है ब्रह्मा विष्णु महेश है के नारे के साथ जीत दर्ज करने वाली मायावती ने ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाई। लेकिन 2014 और 2019 की जीतने की इबारत में सबसे बड़ा योगदान दलित मतदाताओं का बीजेपी की ओर आना रहा।
इसे भी पढ़ें: पाकिस्तान की नापाक हरकत! स्वतंत्रता दिवस पर पंजाब को उड़ाने की रच रहा था साजिश
चुनाव में आरएसएस की भूमिका
संघ ने अपनी कार्यात्मक सुगमता के लिए यूपी को क्षेत्र, प्रांत आदि में विभाजित किया है। छह प्रांत या क्षेत्र हैं - अवध, काशी, पश्चिम (पश्चिमी), गोरखपुर, बृज और गोरक्षा। प्रत्येक प्रांत को आगे संभागों, जिलों और महानगरों में वर्गीकृत किया गया है। एक क्षेत्र प्रमुख दो प्रांतों का प्रभारी होता है। आरएसएस के तत्कालीन सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने एक कोर टीम की स्थापना करके चुनावी रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो रणनीति के कार्यान्वयन की दिशा में प्रांत स्तर पर टीमों के साथ समन्वय करती थी। बूथों का प्रबंधन, मतदाताओं को जुटाने के लिए इलाकों में बैठकें आयोजित करना, ग्राउंड लेवल पर पर वास्तविक स्थिति आदि का जायजा लेने के लिए सर्वे। आरएसएस के स्वयंसेवकों के अलावा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच आदि जैसे संबद्ध निकायों के सदस्य और स्वयंसेवक इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए स्वैच्छिक सेवा प्रदान करते रहे।
यूपी चुनाव 2022 के लिए संघ ने कसी कमर
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राम मंदिर निर्माण के लिए जिन 12.70 करोड़ परिवारों ने चंदा दिया है, संघ ने अपने कार्यकर्ताओं को कहाकि, वे इन सभी के घर जाएं और धन्यवाद दें। चित्रकूट में हुई बैठक में संघ ने यह फैसला किया। माना जा रहा है आगामी यूपी विधानसभा चुनाव 2022 तक यूपी की जनता को राम मंदिर मुद्दे से लुभाया जा सके।
संस्कृति के मूल मुसलमानों को जोड़ने का प्रयास
संघ प्रमुख मोहन भागवत बार-बार मुस्लिम समुदाय को हिंदुत्व से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके पीछे मंतव्य यही है कि वे (मुस्लिम) अपने आपको इस संस्कृति के मूल के साथ जोड़ सकें, जिससे देश की अखंडता सुरक्षित रखी जा सके। इसमें मुस्लिमों के साथ-साथ समाज के अन्य वर्ग भी शामिल हैं।- अभिनय आकाश
अन्य न्यूज़