फ्रॉम चिकेन नेक टू चाइना, सिलीगुड़ी गलियारे के महत्व के बारे में समझिए
अभिनय आकाश । Oct 28 2021 5:29PM
सिलीगुड़ी कॉरिडोर का रास्ता जिसे चिकेन नेक भी कहा जाता है। ये इलाका भारत के लिए रणनीतिक रूप से काफी संवेदनशील और मह्त्वपूर्ण है। ये गलियारा 60 किमी लंबा और 20 किमी चौड़ा है और उत्तर-पूर्व को शेष भारत से जोड़ता है। लेकिन चारो ओर ये पांच देशों से घिरा हुआ है।
चीन की एक खायिसत है कि वो अपने इलाकों को और ज्यादा संगठित करने के लिए यानी कि अपने मिलिट्री इन्स्ट्रॉलेशन को और ज्यादा मजबूत करने के लिए हर कीमत अदा करने को तैयार रहता है। ऐसे में वहां की सरकार ये जानती है कि उन्हें युद्ध गति से पूरे इलाके में सड़क भी बनानी है, गांव भी बसाने हैं और अपने मिलिट्री को ऐसे फॉर्मेशन में रखना है जिससे कभी भी भारत पर दवाब बनाया जा सके। भारत भी इसे बखूबी जानता है। पिछले कुछ दशकों में चीन ने महाशक्ति बनने के लिए एशिया में पैर फैलाने शुरू किए थे। 'String of Pearls' यानी भारत के पड़ोसी देशों में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ाकर घेरेबंदी की कोशिशे शुरू की। बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान में चीन ने बंदरगाह, सड़क और रेलमार्ग बनाने शुरू किए। जिसका सीधा सा मतलब एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करके भारत पर चौतरफा दवाब बनाना था। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत हमेशा अफने पड़ोसी देशों की भूमि पर अवैध कब्जे की फिराक में रहता है। चीन ताइवान पर जबरन कब्जे की फिराक में रहता है, नेपाल से दोस्ती की आड़ में उसके एक इलाके पर जमाया कब्जा। हांगकांग की आजादी का अतिक्रमण, दक्षिण चीन सागर में वियतनाम, ब्रुनेई, फिलीपींस, मलेशिया से टकराव। सेनकाकू द्वीप को लेकर जापान से लड़ रहा। मंगोलिया में कोयला भंडार पर चीन की नजर। ये सबूत है कि चीन कितना शातिर पड़ोसी और धोखेबाज देश है। भारत के एक खास इलाके पर भी चीन अपनी नजरें गड़ाए बैठा रहता है। ऐसे में आज के विश्लेषण में जानते हैं कि आखिर क्या है चिकेन नेक और सिलीगुड़ी कॉरिडोर क्यों रणनीतिक रूप से इतना महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही चिकेन नेक का विकल्प कालादान प्रोजेक्ट के बारे में भी बताएंगे।
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सिक्कम भारत का एक ऐसा राज्य जिसमें चार जिले हैं। लेकिन इन चार जिलों की खासियत है कि ये पूरा राज्य ही लैंड लॉक्ड है। लैंड लॉक्ड का मतलब है कि यहां आने के लिए आपको भारत से एक ही रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा। वो रास्ता है सिलीगुड़ी कॉरिडोर का रास्ता जिसे चिकेन नेक भी कहा जाता है। ये इलाका भारत के लिए रणनीतिक रूप से काफी संवेदनशील और मह्त्वपूर्ण है। ये गलियारा 60 किमी लंबा और 20 किमी चौड़ा है और उत्तर-पूर्व को शेष भारत से जोड़ता है। लेकिन चारो ओर ये पांच देशों से घिरा हुआ है। एक ओर भूटान, एक ओर नेपाल, एक ओर, चीन, एक ओर बांग्लादेश औऱ पांचवी ओर भारत। इन पांच देशों से मिली हुई सीमाओं के बीच सिक्कम में आने का केवल एक ही रास्ता है और वो है दक्षिण के जरिये। बाकी चारो ओर सिक्किम में विभिन्न देश हैं। इसके साथ ही ये भी ध्यान रखना जरूरी है कि सिक्किम में आने जाने के लिए गतिविधियों पर रोक तो हैं ही लेकिन चुनौतियां भी उतनी ही अधिक है। सिक्किम की आबादी केवल छह लाख है। यहां मात्र 100 लोग एक स्कावयर किलोमीटर इलाके में रहते हैं, जो कि भारत में सबसे कम में गिना जाता है। सेना की मुस्तैदी कई गुणा ज्यादा है। एक ओर नेपाल और भूटान जैसे मित्र देश हैं। वहीं बांग्लादेश सिलीगुड़ी कॉरिडोर की तरफ है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है चीन और वो अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आता है। यही वो उत्तर सिक्कम का इलाका है जहां पर पिछले कुछ दिन पहले गांव बनाने की खबरें सामने आई थी।
सुरक्षा के लिहाज से कॉरिडोर का रोल अहम
पूर्वोत्तर के राज्य जिसमें आठ राज्य सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघायल आते हैं। इनमें से सिक्किम को हटा दें तो सात राज्य बचते हैं। जिन्हें सेवन सिस्टर्स कहा जाता है। ऐसे में चिकेन नेक कटने से पूर्वोत्तर जाने का कोई रास्ता ही नहीं रह जाएगा। चीन की नजर इसी सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर है और जिसकी वजह से उसकी तरफ से डोकलाम पर कब्जा करने की कोशिश की गई। डोकलाम भूटान का है लेकिन इसकी ऊंचाई ही सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है क्योंकि इसकी वजह से ही सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर आराम से नजर रखा जा सकता है। डोकालाम से सिलीगुड़ी कॉरिडोर की दूरी करीब 30 किलोमीटर है। ऐसे में अगर डोकालाम पर कब्जा हो गया तो वहां से सिलीगुड़ी पर आराम से नजर रखी जा सकती है। इसलिए डोकालाम विवाद में भारत भूटान की ओर से चीन से लड़ गया था। तिब्बत से इसकी निकटता भारत के लिए एक लाभ के रूप में कार्य करती है क्योंकि यह चीन पर कड़ी नजर रख सकता है जिसने इस क्षेत्र में कई सड़कों और हवाई पट्टियों का निर्माण किया है।
युद्ध की स्थिति में निभा सकता है अहम भूमिका
युद्ध की स्थिति में सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से आसानी से हथियार और सैनिकों को लामबंद किया जा सकता है। बीजिंग अपनी बेल्ट एंड रोड योजना के लिए अपनी वैश्विक व्यापार पहुंच में सुधार के बहाने भारत के पड़ोसी देशों में भारी निवेश कर रहा है लेकिन ये देश चीनी कर्ज के जाल में फंस गए हैं। ज्यादातर पश्चिमी देश चीन की आलोचना इस बात को लेकर करते हैं कि है यह गरीब, विकासशील देशों पर ऋण थोपता है। जिनके वापस भुगतान करने की कोई उम्मीद नहीं है और इसका राजनीतिक प्रभाव का लाभ उठाने के लिए उपयोग करने की कोशिश कर रहा है।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी को बढ़ावा देने में कर रहा मदद
चिकन नेक कॉरिडोर से तिब्बत की चुंबी घाटी महज 130 किमी दूर है। भारत, नेपाल और भूटान का ट्राइजंक्शन इस घाटी के सिरे पर पाया जाता है और इसे डोकलाम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जो एक गतिरोध बिंदु बन गया है। हिमालय पर्वत जैसे कंचनजंगा पर्वत दो प्रमुख नदियों का स्रोत हैं जिन्हें तीस्ता और जलदाखा के नाम से जाना जाता है जो बांग्लादेश में प्रवेश करते समय ब्रह्मपुत्र नदी में विलीन हो जाती हैं। भारत के पूर्वोतर क्षेत्र में 50 मिलियन लोगों की आबादी है और ज्यादातर नेपाली और बंगाली अप्रवासी पाए जाते हैं। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से यह कॉरिडोर उत्तर-पूर्वी राज्यों और शेष भारत के व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से, यह गलियारा उत्तर-पूर्वी राज्यों और शेष भारत के व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह उनके बीच एकमात्र रेलवे फ्रेट लाइन भी होस्ट करता है। दार्जिलिंग की चाय और इमारती लकड़ी इस क्षेत्र के महत्व को और बढ़ा देती है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सड़क मार्ग और रेलवे सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़े हुए हैं। उन्हें सभी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति इसी कॉरिडोर के माध्यम से ही की जाती है। यह भारत और इसके पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान देशों के बीच संपर्क को सुगम बनाकर भारत को अपनी 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है। यह गलियारा पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध अप्रवास, सीमा पार आतंकवाद और इस्लामी कट्टरपंथ का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
क्या है कालादान प्रोजक्ट
भारत ने 90 के दशक में लुक ईस्ट पॉलिसी अपनाई। यानी पूर्वी एशिया के देशों के साथ संबंध मजबूत बनाने शुरू किए। जिसे 2014 में मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी का नाम दिया और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों पर ज्यादा जोड़ देना शुरू किया। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों तक पहुंच बनाने के लिए और इंफ्रांस्ट्रक्चर तैयार करने के लिए 2008 में कालादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट की रूप रेखा तैयार की गई। इसके तहत भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ-साथ दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों तक पहुंचने के लिए सबसे छोटा रास्ता बनाना था। इस प्रोजक्ट के चार चरण थे।
पहला- इसमें कोलकाता को 539 किलोमीटर दूर म्यांमार के सेटवे बंदरगाह को समुद्र के रास्ते जोड़ा जाना था।
दूसरा- सेटवे बंदरगाह से कालादान नदी के रास्ते 158 किलोमीटर दूर म्यांमार के पलेटवा तक पहुंचना था।
तीसरा- पलेटवा से 109 किलोमीटर दूर सड़क के रास्ते भारत के मिजोरम के जोरिनपुई तक पहुंचना था।
चौथा- जोरिनपुई से ये सड़क 100 किलोमीटर दूर मिजोरम के लांगचलाई तक पहुंचेगी। जहां से आईजोल होते हुए असम चली जाएगी।
2008 में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली थी और उस वक्त इसकी लागत 535.91 करोड़ रुपये आने का अनुमान था। 2015 में लागत बढ़कर 2904 करोड़ रुपये हो गई। इसका पूरा खर्चा भारत उठा रहा है।
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चिकेन नेक का विकल्प कालादान प्रोजेक्ट
ये वो मार्ग है जो म्यानमांर को कोलकाता को जोड़ेगा और फिर ये रास्ता मिजोरम होते हुए असम तक पहुंचेगा। भारत के दूसरे राज्यों को पूर्वोत्तर से जोड़ने का एकमात्रा रास्ता चिकेन नेक से होकर जाता है। लेकिन जैसा कि हमने आपको बताया कि चिकेन किसी कारण से कट जाता है तो भारत का पूरे पूर्वोत्तर से संबंध कट जाएगा। इसके ऊपर अंगूठे के आकार का इलाका चुंबी वैली का है। जब डोकालाम का विवाद चल रहा था तब इसी चुंबी वैली से चीन के हमले का खतरा बढ़ रहा था। इस बात का डर था कि चीन कहीं चुंबी वैली से हमला करके चिकेन नेक का रास्ता न काट दे। लेकिन अब पूर्वोत्तर तक पहुंचने का दूसरा रास्ता भारत द्वारा तैयार किया जा रहा है। भारत को इस प्रोजेक्ट के दो फायदे हैं-
1.) चीन की चुनौती का सामना करना
2.) अपने व्यापार को साउथ ईस्ट एशिया तक फैलाना
2021 के आखिर तक पूरा करने की डेडलाइन
प्रोजेक्ट में लगातार देरी भी हो रही है। इसकी डेडलाइन कई बार बढ़ी। फिर 2021 के आखिर तक पूरा करने की डेडलाइन तय की गई लेकिन अभी काफी काम बाकी है और अब माना जा रहा है कि यह 2031 तक पूरा हो पाएगा। यह भारत को साउथ ईस्ट एशिया से जोड़ने का छोटा रास्ता तो होगा ही जिससे व्यापार के नए मौके मिलेंगे इसके अलावा यह सामरिक रूप से भी काफी अहम है। इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 33 पुल हैं जिनमें 8 भारत में बन रहे हैं। सभी पुल इस तरह बन रहे हैं जिसमें सेना के टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां जैसे भारी सैन्य साजो सामान भी आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं।
-अभिनय आकाश
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