बेहमई कांड और दस्यु सुंदरी का चंबल से संसद तक का सफर, 20 साल बाद विरासत के ढेरों दावेदार

phoolan devi
अभिनय आकाश । Aug 4 2021 6:12PM

फूलन देवी के पिता ने उनकी शादी महज 11 साल की छोटी उम्र में कर दी। पति द्वारा बलात्कार किया गया। बाद में खराब स्वास्थ्य की वजह से फूलन देवी ससुराल छोड़ अपने मायके चलीं आईं। बेहमई गांव के ठाकुर जाति के डकैतों लाला राम और श्रीराम सहित कई लोगों ने फूलन का बेरहमी से गैंगरेप किया।

चंबल की रानी फूलन देवी, दस्यु सुंदरी फूलन देवी, बीहड़ की दहशत फूलन देवी। फूलन देवी जिनके नाम भर से कांपता था चंबल। लेकिन साल 1983 मे फूलन ने फांसी न दिए जाने की शर्त पर सरेंडर किया। फिल्मी बैंडीट क्वीन की शक्ल में साल 1994 में फूलन की रॉबिनहुड वाली छवि रूपहले पर्दे पर उतरी। समाजवादी पार्टी ने फूलन के नाम को भुनाया और उन्हें लोकसभा का चुनाव भी लड़वाया। चुनाव जीतकर फूलन देवी संसद भवन जा पहुंची। लेकिन चंबल की परछाई ने फूलन का पीछा नहीं छोड़ा और 25 जुलाई 2001 को राजधानी दिल्ली के संसद भवन से चंद कदमों की दूरी पर दिन दहाड़े फूलन देवी को उनके ही सरकारी बंगले के बाहर गोलियों से छलनी कर दिया गया। फूलन देवी के कत्ल का इल्जाम शेर सिंह राणा पर आता हो जो फिलहाल जमानत पर बाहर है। लेकिन फूलन देवी की मौत के दो दशक बाद उन्हें पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा जोर-शोर से याद किया जा रहा है। वजह साफ है क्योंकि अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। सारे राजनीतिक दल अपने कोर वोट बैंक में निषाद वोट को जोड़ना चाहते हैं। 

फूलन देवी की कहानी 

युमना के किनारे काल्पी के गोरवा के पूर्वा गांव में फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को हुआ। पुराने ख्यालात के लिए अपनी रूढिवाढ़ी सोच की वजह से अपने लड़के और लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर देते थे। ठीक वैसे ही फूलन देवी के पिता ने उनकी शादी महज 11 साल की छोटी उम्र में कर दी। लेकिन फूलन की किस्मत में कुछ और ही लिखा था। पति द्वारा बलात्कार किया गया। बाद में खराब स्वास्थ्य की वजह से फूलन देवी ससुराल छोड़ अपने मायके चलीं आईं और अपने परिवार के साथ रहने लगी। लेकिन यहां पर उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई। फूलन ने पहले से ही गरीबी में जी रहे परिवार का हाथ बंटाना शुरू कर दिया। इसके लिए वो परिवार के लोगों के साथ मजदूरी करने लगी। यहीं से लोगों को फूलन के विद्रोही स्वाभाव के नजारे देखने को मिले। कहा जाता है कि एक बार एक आदमी ने फूलन देवी को मकान बनाने की मजदूरी की एवज में मेहनताना देने से मना कर दिया। जिसके बाद गुस्से में फूलन ने रात को उस आदमी के मकान को कचरे के ढेर में बदल दिया। 

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क्या है बेहमई कांड?

14 फरवरी 1981 को 20 लोगों की हत्या से पहले कोई भी बेहमई गांव के बारे में जानता था। हिन्दुस्तान तो क्या उत्तर प्रदेश के नक्शे पर भी बेहमई की कोई खास पहचान नहीं थी। क्योंकि कानपूर देहात जिले का ये छोटा सा गांव बिहड़ों के नजदीक है और जिला मुख्यालय के काफी दूर। चंबल के बीहड़ की सुनसान पगदंडियां जिनपर मौत आगे बढ़ी जा रही थी। उस मौत के एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों हाथ-पांव थे। हाथों में खतरनाक हथियारों के साथ मौत बीहड़ की खामोशी को रौंदते हुए अपनी मंजिल यमुना किनारे बसे गांव बेहमई था। बीहड़ से आए दर्जनों डकैत धड़ाधड़ गांव में दाखिल हो गए। डकैतों को देखते ही गांव में चारो तरफ अफरा-तफरी मच गई। महज कुछ ही पलों में गांव के बच्चे, बूढ़ें और महिलाएं घरों के अंदर कैद हो गए। गांव की गलियों में बीहड़ के डकैत अपने शिकार की तलाश करने लगे। बंद घरों की खिड़की और दरवाजों से झांकती आंखें मौत की आहट से खौफजदा थीं। डकैत इस गांव में अपने दो दुश्मनों श्रीराम और लाला राम को पकड़ने पहुंचे थे। उसके बाद एक-एक कर घर की तलाशी शुरू हो गई। डकैतों ने घरों में छिपे मर्दों को बाहर खींचकर निकाला। गांव के तमाम मर्द सिर झुकाए खड़े थे और उनके सामने सीना तानकर खड़ी थीं डकैतों की बंदूक और रायफल। अचानक ही बंदूकों ने गरजना शुरू कर दिया। बंदूकें जब खामोश हुई तो चारो तरफ खून ही खून नजर आ रहा था और सामने पड़ी थी 20 लाशें। कुछ गांव वालों के जेहन में उस खौफनाक मंजर की यादें आज भी ताजा हैं। इस घटना के चश्मदीद ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया था कि हमलोग उस दिन गांव के कुएं के करीब थे। फूलन देवी अपने साथियों मान सिंह, फूसा और भीखा के साथ गांव में दाखिल हुई। फूलन देवी और उसके गिरोह ने गांववालों पर फायरिंग शुरू कर दी।  इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए एक और चश्मदीद महिला ने बताया था कि फूलन देवी जय मां काली के नारे लगा रही थी। गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका थर्रा उठा और जमीन पर लाशें ही लाशें नजर आ रही थी। बीहड़ से मौत बनकर आई फूलन देवी और उनके साथियों की गोलियों ने कई घरों के चिराग हमेशा के लिए बुझा दिए। 20 मिनट तक ताबड़तोड़ गोलियां चलती रही। जब लगा कि पूरा गांव मातम में तब्दील हो गया है तो फूलन औऱ उसके साथी खेतों के रास्ते जंगल भाग गए। 

फूलन देवी ने क्यों लिया इतना खौफनाक बदला?

फूलन का गांव बेहमई से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है। उस जौर में इस इलाके में डकैतों का आतंक चलता था। बेहमई गांव के ठाकुर जाति के डकैतों लाला राम और श्रीराम सहित कई लोगों ने फूलन का बेरहमी से गैंगरेप किया। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में फूलन देवी ने कहा था कि उन्होंने बहुत बुरा काम किया था। उस दिन को याद करते हुए फूलन देवी ने कहा था कि मेरे साथ उनलोगों ने इतने बुरे-बुरे अत्याचार किए तो हम क्यों मर जाएं? क्यों न हम उन अत्याचार करने वालों को बताएं कि तुमने जो किया है उसका तुम्हें भी जवाब मिलेगा। दरअसल, नाराज दबंगों के कहने पर डाकुओं ने फूलन का अपहरण कर लिया और बीहड़ में तीन हफ्तों तक उससे रेप करते रहे। इसके बाद फूलन ने विक्रम मल्लाह के साथ मिलकर बंदूक उठा ली और दुश्मनों का सफाया करने लगी।

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राजनेता फूलन देवी

बेहमई कांड के दो साल बाद ही फूलन देवी ने 1983 में मध्य प्रदेश सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसमें मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की बड़ी भूमिका थी। फूलन देवी को लग रहा था कि यूपी सरकार उनके प्रति पर्याप्त संवेदनशील नहीं है और उनकी शर्तों को मानने के लिए तैयार नहीं है। फूलन देवी ने शर्त रखी थी कि उसे यूपी की जेल में नहीं रखा जाएगा। इसके बाद वो 11 वर्षों तक ग्वालियर और जबलपुर की जेल में रहीं। उन पर 22 हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के चार्जेज लगे। 90 के दशक में जब राम मंदिर आंदोलन का उफान जब थमा और 1993 में चुनाव हुए तो मुलायम सिंह यादव बहुजन समाज पार्टी के सहयोग से मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि उत्तर प्रदेश में फूलन देवी पर दर्ज सभी मुकदमें वापस ले लिए जाए। फूलन देवी जब ग्वालियर जेल से रिहा हुईं तो उनका यूपी में ऐसे स्वागत किया गया जैसे वो कोई रॉबिनहुड हो।  1994 में फूलन जेल से छूटीं और उम्मेद सिंह से शादी कर ली। मुलायम सिंह की रणनीति थी कि यमुना के काल्पी से लेकर हीमरपुर, फतेहपुर व मिर्जापुर के निषाद वोटरों पर पार्टी के प्रभाव को बढ़ाया जाए। मुलायम सिंह को फूलन देवी इस काम के लिए सबसे मुफीद लगी। 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत गईं। मिर्जापुर से सांसद बनीं। कभी चम्बल की गलियों में घूमने वाली फूलन अब दिल्ली के अशोका रोड के शानदार बंगले में रहने लगी। 1998 में हारीं, लेकिन 1999 में फिर चुनाव जीत गईं। 

राजनीतिक और जीवन दोनों सफर का अंत ऐसे हुआ

 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा फूलन से मिलने आया. इच्छा जाहिर की कि फूलन के संगठन ‘एकलव्य सेना’ से जुड़ेगा। खीर खाई और फिर घर के गेट पर फूलन को गोली मार दी। इसके दो दिन बाद शेर सिंह राणा ने देहरादून में आत्मसमर्पण करके इल्ज़ाम अपने सिर लिया। उसने कहा कि मैंने बेहमई हत्याकांड का बदला लिया है। 17 फरवरी 2004 को शेर सिंह राणा तिहाड़ जेल से फ़रार हो गया। दो साल बाद 17 मई 2006 को कोलकाता में गिरफ़्तार किया गया। 14 अगस्त 2014 को दिल्ली की एक अदालत ने शेर सिंह राणा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 

फूलन देवी की हत्या के तार मुलायम सिंह से भी जुड़े थे?

जनवरी 2002 में लखनऊ के प्रेस कल्ब में खुद को शार्ट फिल्म का प्रोड्यूसर बताने वाले पत्रकार लोकेंद्र सिंह ने एक प्रेस कॉफ्रेंस बुलाई जब पत्रकार पहुंचे तो उसने वहां मौजूद पत्रकारों को प्रोजेक्टर पर एक फिल्म दिखाई। फिल्म में दिखाया जा रहा था कि एक नेता समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सामने कह रहा है कि फूलन देवी को निपटा देने के ज्यादा चुनावी फायदें होंगे। बीजेपी ने इस मामले को लेकर सपा नेता को घेरा और आरोप लगाया कि मल्लाहों के साथ होने का दिखावा करते हैं। लेकिन अब असलियत सामने आ गई। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि उस प्रेस कॉफ्रेंस लोकेंद्र प्रताप सिंह का कुछ पता नहीं चला। 

निषाद वोटरों को लुभाने के लिए फूलन देवी के नाम का सहारा

बेहमई नरसंहार के 40 साल बाद आज यूपी और बिहार में फूलन की विरासत के ढेरों दावेदार हैं। 25 जुलाई को पहले के मुकाबले फूलन देवी को कहीं ज्यादा जोर शोर से याद किया गया। वजह साफ है अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं और यूपी में सारे राजनीतिक दल अपने कोर वोट बैंक में निषादों को जोड़ना चाहते हैं। मोटे तौर पर देखें तो निषादों में 150 से ज्यादा उपजातियां हैं। पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में इनकी अच्छी खासी तादाद है। यह वही 18 जिले हैं जहां एनडीए की सहयोगी और बिहार की विकासशील इंसान पार्टी की फूलन देवी की पुण्यतिथि पर 25 जुलाई को उनकी विशाल प्रतिमा लगाना चाहती थी। यूपी पुलिस ने ऐसा होने नहीं दिया। निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल यानी निषाद जिस  पार्टी के चीफ है डॉक्टर संजय निषाद 2017 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी से हाथ मिलाया और 62 सीटों पर चुनाव लड़े लेकिन जीत मिली सिर्फ एक सीट पर। अगले साल मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया तब संजय निषाद ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर अपने इंजीनियर बेटे प्रवीण को गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़वाया जो सांसद बन गए। योगी गढ़ में जीत ने निषाद पार्टी की बारगेनिंग पावर को बढ़ा दिया। अगले साल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने संजय निषाद को अपने पाले में ला उन के बेटे को संत कबीर नगर सीट से टिकट दिया और वह जीते। लेकिन आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले डॉक्टर संजय निषाद ने डिप्टी सीएम पद की मांग कर डाली। वहीं बिहार से निकलकर उत्तर प्रदेश में निषादों को गोलबंद करने में जुटे मुकेश सैनी का कहना है कि उनकी पार्टी सरकारी नौकरियों में निषाद समुदाय के आरक्षण के लिए एक आंदोलन शुरू करेगी। पार्टी ने यूपी चुनाव में करीब 160 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। वही फूलन देवी को लेकर सियासत करने में समाजवादी पार्टी भी पीछे नहीं रही है पिछले साल फूलन देवी की बरसी पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने फिल्म बैंडिट क्वीन का पोस्टर ट्वीट किया था। -अभिनय आकाश

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