20 बरस की बाली उमर को सलाम (व्यंग्य)

लॉकडाउन में लोग आराम करते करते इतना थक गए हैं कि ‘अच्छे दिन’ के बजाय पुराने दिन याद आ रहे हैं। बाबा आजम के जमाने की एलबम से ढूंढ-ढूंढकर ऐसे फोटू निकाले जा रहे हैं, जैसे सरकारें कब्र में दफन हो चुकी योजनाएं ढूंढ ढूंढकर निकालती है।
महाकवि आनंद बक्षी ने कई साल पहले ‘एक दूजे के लिए’ में 16 साल की बाली उमरिया को सलाम किया था। उस वक्त हर गली-मुहल्ले की पान की दुकान पर 16 साल की बाली उमरिया को सलाम ठोंका जा रहा था। चूंकि अपन, ना अपनी भावी गर्लफ्रेंड 16 की हुई थी सो हम दोनों ही एक दूसरे की बाली उमरिया को सलाम नहीं ठोंक पाए। लेकिन, ईश्वर के घर देर है अँधेर नहीं। इस बार ईश्वर ने 20 साल की उमरिया को सलाम ठोंकने का अवसर दिया है। दुनिया भर में लोग फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर अपनी 20 साल की फोटू पोस्ट कर खुद को ऐसे निहार रहे हैं, जैसे उम्र ना हुई सरकारी फाइल हुई, जो बाबू के मेज पर अटकी-पड़ी है और रिश्वत के प्रसाद से मनचाही दिशा में मुड़ जाएगी।
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लॉकडाउन में लोग आराम करते करते इतना थक गए हैं कि ‘अच्छे दिन’ के बजाय पुराने दिन याद आ रहे हैं। बाबा आजम के जमाने की एलबम से ढूंढ-ढूंढकर ऐसे फोटू निकाले जा रहे हैं, जैसे सरकारें कब्र में दफन हो चुकी योजनाएं ढूंढ ढूंढकर निकालती है। कई बंदे, जो खुद दादा-दादी हो लिए हैं, वो अपनी बाली उमरिया की फोटू निकालकर पोते-पोतियों से टक्कर ले रहे हैं कि देखो बेट्टे- ‘हम भी दिलीप कुमार और मधुबाला से कम नहीं थे।'
सोशल मीडिया की अच्छी बात यही है कि बंदों पर कुछ काम ना हो तो वो काम दे देता है। इन दिनों चचा मार्क जुकरबर्ग और जैकडॉर्सी की मेहरबानी से पूरी दुनिया के लोगों को ये नया काम मिला है- यादों की जुगाली का। कई लोग एक तस्वीर आज की और एक तब की, जो वो 20 साल के थे, साथ पोस्ट कर लिख रहे हैं- हाय ! वो भी क्या दिन थे। हाय ! ये दिन क्या दिन हैं। इन दोनों लिखित ‘हाय’ में उल्लास के वेदना में परिवर्तित हुई ध्वनि पाठक को स्वत: सुननी होती है। आखिर, अधेड़ हो चुके कई लोगों के सिर से बाल उसी तरह रुखसत हो चुके हैं, जैसे शाहीन बाग से प्रदर्शनकारी रुखसत हो चुके हैं। कइयों के भरे गालों में जवानी की बरसात के बाद उसी तरह गड्ढे दिखायी दे रहे हैं, जैसे भारी बरसात के बाद हिन्दुस्तानी सड़कों में दिखायी देते हैं। कुछ तस्वीरें 440 वोल्ट का जोर का करंट धीरे से दे रही है। मसलन कई आंटियां अपनी भूतकाल की ऐसी ऐसी मनमोहक-खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट कर रही हैं कि उम्र का तकाजा ना हो तो कई अंकल ओले-ओले गाने लगें।
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लेकिन, 20-21 का ये खेला कई लोग नहीं खेल पा रहे। कइयों की बेशकीमती यादें ट्रांसफर वगैरह के चक्कर में उसी तरह नष्ट हो चुकी हैं, जिस तरह आयकर विभाग में अकसर महत्वपूर्ण फाइलें जलकर नष्ट हो जाती हैं। कई लोग फोटू पोस्ट करने से इसलिए हिचक रहे हैं, क्योंकि उनका अतीत बहुत डरावना है। मसलन, मैं। मैं अपनी 20 साल वाली फोटू पोस्ट करुं तो डर है कि बीवी कहीं यह कहते हुए ना छोड़कर चली जाए कि चिरकुट दिखने की भी हद होती है।
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बहरहाल, 20 की बाली उमरिया को सलाम कहने का मौका मिला है तो जरुर कहिए। भगत सिंह जैसों के पास मुश्किल दौर में बड़ा काम था तो वो 20-21 की बाली उमरिया में ही बड़ा खेला कर चले गए। हमारे पास मुश्किल दौर में कुछ काम नहीं है तो हम फोटू डाल रहे हैं। वक्त वक्त का फर्क है।
- पीयूष पांडे
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