नए हिंदी मंथ में पुरानी याद (व्यंग्य)

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संतोष उत्सुक । Sep 13 2023 4:21PM

हिंदी में बहुत कुछ करना अब सचमुच आसान हो गया है, मुश्किल है तो व्यक्तिगत योगदान। परिवार में हो रहे विवाह, जन्मदिन या अन्य आयोजनों के निमंत्रण पत्र हिंदी में छपवाने बारे सिर्फ सोचना भी कितना पिछड़ा हो जाना होता है। अगर महीना, सितम्बर का हो तो भी क्या फर्क पड़ता है।

एक दर्जन महीनों में से सिर्फ एक महीना ही तो है अपनी हिंदी के लिए। बेचारा सितम्बर। अब नए आयोजन चाहे डिजिटल और जितने मर्ज़ी कर लो लेकिन कहीं न कहीं, पुराने सशरीर आयोजनों की याद आ ही जाती है। उन दिनों रूठी हिन्दी को पूरी तरह मनाने के लिए हिंदी प्रेमी पूरे महीने कार्यक्रम आयोजित करते थे। सरकारी कर्मचारी, भाषा कार्यान्वन समितियों के कार्यक्रमों में पुरस्कार पाने के लिए तैयारी करते थे। हिन्दी बढ़ाने, फैलाने व समझाने के लिए जिन्होंने अपने कार्यालयों में पिछली बार प्रतियोगिता करवाई थी, यह देखने को आतुर रहते कि नया आयोजक कौन सा तीर मारेगा। अधिकांश कर्मचारी व अधिकारी, दर्जनों सालों से अंग्रेजी मारमार कर हिन्दी को भगा रहे थे। कार्यालयों में हिन्दी कार्यक्रम संचालन के लिए कोई साहित्य प्रेमी कर्मचारी, बहुत मेहनत व अथक प्रेरणा से बीस बार ‘यू कैन ओनली डू इट’ कहने पर ही तैयार होता था। बहुतों को पता नहीं चलता था कि आयोजन कैसे करें, ठीक जैसे किसी युग में स्कूल अध्यापकों को पल्ले नहीं पड़ता था कि भाषण, वादविवाद या पत्रपाठन प्रतियोगिता में सचमुच अंतर है।

पुरानी बिल्डिंग में एक प्रतियोगिता आयोजित हुई। आपस में उलझे हुए ट्रैफिक से जैसे कैसे जान बचाकर, हम हिन्दी प्रेमी भी पहुंचे थे प्रतियोगी शक्ल बनाकर। प्रतियोगी पुराने कमरे में लंगडाती कुर्सियों पर टिकाए गए थे। स्वागती भाषण निबटाकर आयोजक बोले, ‘सौरी, जिस हाल में कंपीटीशन होना है वहां मीटिंग अभी खत्म नहीं हुई इसलिए यू हैव टू सिट हियर’। आज प्रतियोगिता का विषय है, ‘चित्र देखो एंड राइट एनीथिंग यू लाइक, लेख, स्टोरी या पोयम’। इस बीच स्टैपल किए दो सफेद कागज़ पकड़ा दिए थे, साथ में किसी कार्यालय की वार्षिक पत्रिका जिसने कार्डर्बोड की भूमिका निभानी थी।

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बारिश तेज़ होने के कारण बिजली गई और अंधेरा हो गया। एमरजैंसी लाईट नहीं थी। आयोजक हँसकर बोले, ‘आज तो आपकी आईज़ की एक्सर्साइज़ भी हो जाएगी,’ जो वास्तव में हो रही थी। प्रतियोगिता शुरू होने को थी। आयोजक ने हिन्दी में मुस्कुराकर कहा, ‘अपनी प्रिय सितम्बर भाषा, सौरी, माफ कीजिए राजभाषा हिन्दी को प्रोमोट करने के लिए हम आपको पांच फोटोज़ देंगे। इनमें से किसी एक को वॉच कर आपने कुछ लिखना है। शरारती प्रतियोगी बोले, ‘प्रतियोगिता तो एक फोटो बारे लिखकर होनी चाहिए’। जवाब मिला, ‘प्रतियोगिता में नोवेलिटी लाने व इंट्रस्टिंग बनाने के लिए फाइव दिए गए हैं’। आपको पता है हिन्दी में कुछ भी करना कितना टफ होता है। 

प्रतियोगिता के दौरान ही ठंडे गुलाबजामुन, बासी समोसा और काढ़ा हो चुकी चाय हाथ में पकड़ा दी थी। यह चीज़ें संभालना प्रतियोगी की ज़िम्मेदारी थी। आयोजकों का हिन्दी मंथ में कुछ नया करने पर संतुष्ट दिखना स्वाभाविक और ज़रूरी था।

हिंदी में बहुत कुछ करना अब सचमुच आसान हो गया है, मुश्किल है तो व्यक्तिगत योगदान। परिवार में हो रहे विवाह, जन्मदिन या अन्य आयोजनों के निमंत्रण पत्र हिंदी में छपवाने बारे सिर्फ सोचना भी कितना पिछड़ा हो जाना होता है। अगर महीना, सितम्बर का हो तो भी क्या फर्क पड़ता है।

- संतोष उत्सुक

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