डेटिंग का चक्कर (व्यंग्य)
ज्योतिषी जी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा – “हाँ बहिन जी! मैं जिन गुणों की बात कर रहा हूँ। उनके बारे में सुनेंगी तो आप का माथा भी ठनक जाएगा। एक समय था जब लड़का-लड़की रूप, रंग, गुण, स्वभाव आदि को देखकर चट मंगनी पट ब्याह कर लेते थे।
वे लोग वर-वधू के गुण-नक्षत्र पर जोर देने के बजाए किसी ओर चीज़ को लेकर परेशान थे। पंडित जी ने लड़की की माँ से कहा – “देखिए बहिन जी! गुण-नक्षत्रों का क्या है, वो तो ले देकर भी सेटल किये जा सकते हैं। वह तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है। लेकिन आजकल के लड़के-लड़कियों के लिए पंचांग वाले छत्तीस गुणों की चिंता कम दूसरे किस्म के गुणों की चिंता अधिक रहती है। कहने को तो पढ़े-लिखे होते हैं लेकिन व्यवहार गंवारों वाले करते हैं।”
लड़की की माँ ने बड़े भोलेपन से पूछा – “हे ज्योतिषाचार्य जी! मैं कुछ समझी नहीं। आप किन गुणों की बात कर रहे हैं? क्या ये गुण इतने जरूरी हैं कि इनके बिना शादी नहीं हो सकती।”
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ज्योतिषी जी ने आँखें बड़ी करते हुए कहा – “हाँ बहिन जी! मैं जिन गुणों की बात कर रहा हूँ। उनके बारे में सुनेंगी तो आप का माथा भी ठनक जाएगा। एक समय था जब लड़का-लड़की रूप, रंग, गुण, स्वभाव आदि को देखकर चट मंगनी पट ब्याह कर लेते थे। अब वैसे दिन कहाँ रहे। अब तो हजार किस्म के चोंचले हैं। मसलन लड़का-लड़की बिल्ली-कुत्ता पसंद करते हैं कि नहीं। करते हैं तो किस रंग, आकार और ऊँचाई का। आल्कोहलिक हैं या नॉन-आल्कोहलिक। आल्कोहलिक हैं तो कौनसी ब्रैंड, फिर वह ब्रैंड नियमित पीते हैं या फिर कभी-कभार आदि-आदि। कौन सा रंग, फल-फूल, सब्जी, गाना, अभिनेता, फिल्म, साइट सीन पसंद है या नहीं आदि-आदि।”
लड़की की माँ आश्चर्य से – “बाप रे बाप! लड़का-लड़की एक-दूसरे को पसंद करने के लिए इतने चोंचले करते हैं। फिर ऐसे लोगों की शादी करने के लिए क्या करना चाहिए महाराज?”
ज्योतिषी जी हँसते हुए – “बहिन जी इसके लिए हमें कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जो कुछ करना होता है वो तो लड़का-लड़की को करना होता है। इसीलिए आजकल वे डेटिंग पर जाते हैं। डेटिंग पर जाने से लड़का-लड़की एक-दूसरे को शारीरिक, मानिसक, बौद्धिक रूप से अच्छी तरह समझ जाते हैं। एक तरह से कहिए कि कोई बर्तन खरीदने से पहले ठोक-बजाकर देख लेते हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि वे आगे एक-दूसरे के साथ टिक पायेंगे कि नहीं। सब कुछ ठीक रहा तो वे ब्याह करने के लिए राजी हो जायेंगे। नहीं तो तू अपनी गली मैं अपनी गली।”
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)
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