‘स्क्रीनिंग टूल’ से छात्रों के भावनात्मक, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में पता लगाना संभव
हालांकि, बेहद कम शिक्षकों को बच्चों के मानसिक और व्यवहारिक स्वास्थ्य को समझने का प्रशिक्षण प्राप्त होता है, जिससे उनके छात्रों के दुर्व्यवहार, मसलन आक्रामकता या निर्देशों की अनदेखी पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना ज्यादा रहती है।
(नथानियल वॉन डेर एम्बेस, स्कूल साइकोलॉजी के प्रोफेसर, दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय) टम्पा (अमेरिका)| अमेरिका में टेक्सास के रॉब एलीमेंट्री स्कूल जैसी हिंसक घटनाएं जब भी होती हैं, तब अक्सर इस बात पर चर्चा की जाती है कि क्या स्कूल प्रबंधन घटना से पहले उसके संदर्भ में मिली ‘‘चेतावनियों’’ पर गौर नहीं कर पाया।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में विशेषज्ञता रखने वाले एक शोधकर्ता का मानना है कि इन चर्चाओं में महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी की गई है। स्कूल में हिंसक घटनाओं की रोकथाम से जुड़ी चर्चा ‘स्कूलों में क्या चूक हुई’ के बजाय इस बात पर केंद्रित होनी चाहिए कि ‘स्कूल प्रबंधन ऐसे छात्रों की पहचान कैसे कर सकता है, जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परामर्श की जरूरत है।’
शोधकर्ता के अनुसार, स्कूल में माहौल इस तरह का होना चाहिए, जिसमें सभी छात्रों की उन वयस्कों तक पहुंच हो, जो उनकी देखभाल कर सकते हैं।
एक सामान्य प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक हर साल स्कूल में छात्रों के साथ 1,000 घंटे से अधिक समय बिताता है और इस प्रकार छात्रों के व्यवहार में भावनात्मक परिवर्तनों की पहचान वह ही सबसे सही तरीके से कर सकता है।
हालांकि, बेहद कम शिक्षकों को बच्चों के मानसिक और व्यवहारिक स्वास्थ्य को समझने का प्रशिक्षण प्राप्त होता है, जिससे उनके छात्रों के दुर्व्यवहार, मसलन आक्रामकता या निर्देशों की अनदेखी पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना ज्यादा रहती है। चुनौतियां और तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन इनसे निपटने के लिए स्कूलों ने सकारात्मक व्यवहार हस्तक्षेप एवं समर्थन के रूप में पहचाने जाने वाली एक प्रणाली अपनाई है।
यह प्रणाली स्कूल, कक्षा और व्यक्तिगत स्तर पर समर्थन के माध्यम से विद्यालय परिसर में एक सकारात्मक माहौल बनाने के लिए विकसित की गई है। शोधकर्ता के मुताबिक, कई स्कूलों ने भौतिक सुरक्षा उपायों पर ध्यान केंद्रित किया है, जैसे कि मेटल डिटेक्टर आदि।
हालांकि, एक व्यापक और प्रभावी सुरक्षा योजना में शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक सुरक्षा के उपाय भी शामिल होने चाहिए। शोधकर्ता ने कहा, ‘‘मैं 2012 से भावनात्मक एवं मानसिक स्वास्थ्य सहायता की दरकार रखने वाले छात्रों को सक्रिय रूप से पहचानने के लिए ‘स्क्रीनिंग टूल’ पर शोध कर रहा हूं।
‘स्क्रीनिंग टूल’ एक संक्षिप्त मूल्यांकन पद्धति है, जिसे पूरा करने में आमतौर पर दो मिनट से भी कम समय लगता है और इससे किसी की सामाजिक, व्यवहारिक और भावनात्मक जरूरतों का पता लगाया जा सकता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पिछले एक दशक में मेरे सहयोगियों और मेरे द्वारा किए गए शोध में लगातार पाया गया है कि ‘स्क्रीनिंग टूल’ के जरिये स्कूलों में छात्रों की सामाजिक, व्यवहारिक और भावनात्मक जरूरतों का समय पर और सटीक तरीके से पता लगाया जा सकता है।’’ उन्होंने बताया कि लगभग एक-चौथाई अमेरिकी स्कूल अब छात्रों के मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए किसी तरह के व्यावहारिक उपकरण का उपयोग कर रहे हैं।
यह 2014 की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत अधिक है। हालांकि, अधिकतर स्कूल अब भी इस तरह के सक्रिय उपकरणों का उपयोग नहीं कर रहे हैं। ऐसे स्कूलों का तर्क है कि इस तरह के उपकरणों के इस्तेमाल में खर्च अधिक आता है, समय अधिक लगता है।
उन्होंने कहा कि अधिक लागत और अधिक समय लगने के बावजूद लंबे समय में ऐसे उपकरण काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। ‘स्क्रीनिंग टूल’ के इस्तेमाल से व्यवहार संबंधी महत्वपूर्ण चिंताओं में 50 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।
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