न्यूयॉर्क में पोलियो: संक्रामक बीमारी के चिकित्सक ने इस दुर्लभ मामले की व्याख्या की
अमेरिका में बच्चों को दो, चार और छह महीने की उम्र पर निष्क्रिय पोलियो टीका लगाया जाता है, जो लकवा देने वाले पोलियो वायरस से लगभग पूरी सुरक्षा प्रदान करता है।
(विलियम पेट्री, मेडिसीन के प्रोफेसर, वर्जीनिया विश्वविद्यालय) वर्जीनिया| अमेरिका में वर्ष 2013 के बाद पोलियो संक्रमण का मामला मिलने का ऐलान न्यूयॉर्क के स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस साल 21 जुलाई को किया।
हालांकि इस अमेरिकी नागरिक का टीकाकरण नहीं किया गया था। बीसवीं शताबदी के मध्य में सुरक्षित और असरदार टीके की खोज से पहले बच्चों में लकवा की बीमारी का आम कारण पोलियो था।
लेकिन वैश्विक टीकाकरण अभियान के कारण आज पोलियो का काफी हद तक उन्मूलन हो चुका है। वर्ष 2022 में आज की तारीख तक दुनियाभर में वाइल्ड पोलियो वायरस के केवल 13 मामले दर्ज किए गए।
न्यूयॉर्क का पोलियो संक्रमित व्यक्ति कथित तौर पर उस प्रकार के पोलियो वायरस के संपर्क में आया जो कमजोर है और जिसका इस्तेमाल पोलियो रोधी टीका बनाने में किया गया। लेकिन इस तरह के टीके का इस्तेमाल अमेरिका में वर्ष 2000 के बाद से नहीं किया गया। स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि यह वायरस उन पुरुष रोगियों को प्रभावित करता है, जिन्हें मांसपेशियों में कमजोरी और लकवा की समस्या है।
संभवतः इस प्रकार का पोलियो वायरस किसी बाहरी देश में उत्पन्न हुआ होगा, जहां अब भी टीके पिलाए जाते हैं। विलियम पेट्री एक संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन की पोलियो अनुसंधान समिति के अध्यक्ष हैं।
वह बताते हैं कि टीका के कारण उत्पन्न पोलियो वायरस क्या है और क्यों आज अमेरिका में लगाए जा रहे निष्क्रिय वायरस आधारित पोलियो टीके ऐसे वायरस उत्पन्न होने का कारण नहीं बनते।
पोलियो टीके के दो प्रकार? टीकाकरण के माध्यम से वायरस के नुकसानदेह प्रकार को शरीर के अंदर प्रवेश कराया जाता है। इसके पीछे विचार यह है कि शरीर को वास्तविक वायरस से लड़ने के लिए प्रशिक्षित कर दिया जाये, ताकि यदि असल वायरस का संक्रमण हो तो शरीर उससे मुकाबला कर सके।
पिलाया जाने वाला पोलियो टीका, मूल रूप से अल्बर्ट सेबिन द्वारा विकसित, बनाने में एक जीवित पर कमजोर पोलियो वायरस का इस्तेमाल किया जाता है। दूसरी तरह के पोलियो टीके को मूल रूप से जोनास साल्क द्वारा विकसित किया गया। इस टीके में निष्क्रिय और मृत वायरस का इस्तेमाल किया जाता है, और इसे इंजेक्शन की मदद से लगाया जाता है।
अमेरिका में बच्चों को दो, चार और छह महीने की उम्र पर निष्क्रिय पोलियो टीका लगाया जाता है, जो लकवा देने वाले पोलियो वायरस से लगभग पूरी सुरक्षा प्रदान करता है। जीवित वायरस आधारित टीके का पोलियो मामलों से क्या संबंध? पिलाये जाने वाले पोलियो टीके में वायरस के कमजोर रूप की मौजूदगी बीमारी को जन्म नहीं दे सकती।
लेकिन यह टीका मुंह के जरिये दिया जाता है, इसलिए कमजोर वायरस मल के जरिये निकलकर फैल जाते हैं। इससे टीकाकरण कराने वाले के संपर्क में आने वाले लोगों में यह वायरस फैल सकता है।
यदि यह कमजोर वायरस लंबे समय तक एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुंचकर उत्परिवर्तित (म्युटेट) होता रहा, तो यह लकवा देने यानी लोगों को विकलांग बनाने की अपनी क्षमता को दोबारा हासिल कर सकता है। उत्परिवर्तित वायरस खराब साफ-सफाई और कम टीकाकरण वाले समुदायों के लोगों को संक्रमित करके उन्हें लकवा की बीमारी दे सकता है।
न्यूयॉर्क में पोलियो वायरस का नया मामला मिलना दुर्लभ मामला है। वर्ष 20000 के बाद से अब तक पोलियो टीके की 10 अरब खुराक पिलाई जा चुकी है, लेकिन टीका जनित पोलियो वायरस के केवल 800 मामले मिले हैं।
ऐसा लगता है कि न्यूयॉर्क का वर्तमान रोगी किसी तरह उत्परिवर्तित पोलियो वायरस के संपर्क में आया था, जो विदेशों में टीकाकरण के बाद प्रसारित हुआ था। इस गर्मी की शुरुआत में नियमित निगरानी के दौरान लंदन के सीवेज तंत्र में टीका जनित पोलियो वायरस देखा, लेकिन वहां कोई मामला सामने नहीं आया।
अगर इतना जोखिम है, तो पिलाये जाने वाले पोलियो टीके का उपयोग क्यों? मुंह के जरिये दिये जाने वाले पोलियो टीके का एक सकारात्मक पहलू यह है कि मौखिक टीका प्राप्त करने वाले की विष्टा से कमजोर वायरस पूरे समुदाय में फैल सकता है।
इससे उन लोगों में भी पोलियो वायरस के प्रति प्रतिरक्षा उत्पन्न हो जाती है, जिनका प्रत्यक्षरूप से टीकाकरण नहीं किया गया है। इसके अलावा पिलाया जाने वाला टीका निष्क्रिय पोलियो टीके की तुलना में सस्ता है और इसे लगाना भी आसान है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जीवित वायरस से बना टीका वाइल्ड पोलियो वायरस के संचरण को जिस तरह से रोकता है, वैसा निष्क्रिय-वायरस आधारित टीका नहीं कर सकता। अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में पोलियो उन्मूलन की उपलब्धि मात्र पिलाये जाने वाले टीके से हासिल की गई।
एक नया और सुरक्षित पिलाये जाने वाला पोलियो टीका, जिसमें इंजीनियरिंग करके उत्परिवर्तन की संभावना को शून्य किया गया है, अब पहले के जीवित वायरस आधारित टीके की जगह ले रहा है। इस प्रकार, पोलियो टीकाकरण के कारण पोलियो संक्रमण के दुर्लभ मामले भी जल्द ही अतीत की बात हो जाएंगे।
हम पोलियो उन्मूलन के कितने करीब? जबरदस्त वैश्विक प्रयास की बदौलत पोलियो बीमारी देने वाले तीन में से दो वायरस खत्म हो गए हैं। दुनिया अब आखिरी वाइल्ड पोलियो वायरस-1 को खत्म करने की कगार पर है।
स्थानीय स्तर पर पोलियो संक्रमण केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पाया जाता है। पाकिस्तान में जहां 2022 में लकवाग्रस्त पोलियो के 12 मामले मिले, अफगानिस्तान में इस वर्ष पोलियो का केवल एक मामला मिला।
एक बार वाइल्ड पोलियो वायरस के धरती से समाप्त हो जाने पर हम निष्क्रिय पोलियो वायरस पर आधारित टीका लगाने में सक्षम हो सकते हैं, ताकि भविष्य में पोलियो टीके के कारण पोलियो वायरस के उत्पन्न होने की संभावना को समाप्त किया जा सके।
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