Mirzapur 3 Review । भौकाल मचते-मचते रह गया.... खत्म हुई मिर्जापुर की दहशत, कालीन और गुड्डू भैया नहीं दिखा पाए अपना कमाल
हर एपिसोड में कुछ दमदार डायलॉग्स और थोड़ा बहुत खून खराबा देखने को जरूर मिल रहा है, लेकिन पिछले दो सीजन की तरफ भौकाल मचाने वाले सेक्स सीन और गालियां इस सीजन में नहीं हैं। हालाँकि, जहाँ-जहाँ गालियों और सेक्स सीन की जरूरत थी, वहां-वहां मेकर्स ने इन्हें बखूबी दिखाया है।
भारतीय ओटीटी प्लेटफार्म की अब तक की सबसे चर्चित बोल्ड वेब सीरीज 'मिर्जापुर' का तीसरा सीजन रिलीज हो गया है। चार साल के लंबे इंतजार के बाद सीरीज का तीसरा सीजन फैंस के नजरों के सामने हैं। लेकिन जैसे भौकाल की उम्मीद लोग इस सीजन से लगा के बैठे थे, उनपर मेकर्स ने मानसून की पहली बारिश की तरह पानी फेर दिया है। हालाँकि, सीजन में कलाकारों की दमदार एक्टिंग देखने को जरूर मिली है, लेकिन बाकी जब जैसे सीरीज की कहानी, डायलॉग, सेक्स सीन, स्टोरी लाइन और खून खराबा सब फीका और बोरिंग है।
नहीं मचा भौकाल....
मिर्जापुर के तीसरे सीजन का प्रचार करते हुए मेकर्स ने दावा किया था कि पिछले दो सीजन की तरह इस सीजन में भी भौकाल मचले वाला है। लेकिन सीरीज के रिलीज होते ही मेकर्स के तभी दावें बिहार में एक के बाद एक ढहते पुलों की तरह ढह गए हैं। मिर्जापुर के तीसरे सीजन में 10 एपिसोड हैं और हर एपिसोड कम से कम 50 मिनट का है। हर एपिसोड में कुछ दमदार डायलॉग्स और थोड़ा बहुत खून खराबा देखने को जरूर मिल रहा है, लेकिन पिछले दो सीजन की तरफ भौकाल मचाने वाले सेक्स सीन और गालियां इस सीजन में नहीं हैं। हालाँकि, जहाँ-जहाँ गालियों और सेक्स सीन की जरूरत थी, वहां-वहां मेकर्स ने इन्हें बखूबी दिखाया है।
10 घंटे लंबी इस वेब सीरीज में महज एक या दो ही एपिसोड देखने लायक हैं, वो भी आखिर के, बाकी एपिसोड में कहानी को खींचा गया है। विरासत और गद्दी की लड़ाई में अब पॉलिटिक्स पूरी तरह घुस चुकी हैं, जो सीजन के शुरुआत के एपिसोड में देखने में बढ़िया लगती है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है इस पॉलिटिक्स को बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है। इस सीजन में पॉलिटिक्स के मुद्दे को जो ट्विस्ट दिया गया है वो देखने लायक है, लेकिन जितने गंभीर तरीके से इस गंभीर मुद्दे को दिखाया गया है, उसने सीरीज को बोरिंग और ख़राब कर दिया।
कलाकारों की दमदार एक्टिंग ने बचा ली सीजन की शान
कालीन भैया अपनी ही सीरीज में केमियो करते दिखाई दे रहे हैं। शुरुआत के आठ एपिसोड में अभिनेता का रोल बहुत कमजोर हैं, लेकिन आखिरी के दो एपिसोड में उनके पुराने तेवर देखने को मिल रहे हैं। अली फजल उर्फ गुड्डू पंडित की बात करें तो उन्होंने पिछले दो सीजन में अपने अभिनय से जो चिंगारी लगायी थी, इस सीजन में उसका धमाका देखने को मिल रहा है। गुड्डू भैया से जो उम्मीद थी, वो उन्होंने पूरी की है। वह अपनी एक्टिंग से दहशत कायम करने में कामयाब रहे हैं। लेकिन अगर उनकी दमदार एक्टिंग की तरह सीरीज की कहानी में भी थोड़ा दम होता तो गुड्डू भैया की मेहनत पर पानी नहीं फिरता।
पिछले सीजन में महिलाओं का भौकाल देखने को मिला था, जो इस सीजन में भी वह कायम रहा। गोलू, माधवी भाभी समेत सीरीज की अन्य महिलाएं गद्दी के खेल में पूरा योगदान देती नजर आ रही हैं। भौकाल मचाने में पुरुषों की तुलना में महिलाएं कहीं ज्यादा आगे नजर आई। कहा जा सकता है कि कलाकारों की बढ़िया और दमदार एक्टिंग ने मिर्जापुर के इस सीजन को थोड़ा बहुत देखने लायक बना के रखा हुआ है। दूसरे सीजन के जिन नए सितारों को लाया गया था, इस सीजन में उनकी कहानी से रूबरू करवाया गया है। नए सितारों ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है, लेकिन बबलू और मुन्ना भैया जैसी छाप छोड़ने में कोई भी कामयाब नहीं हुआ है। हाँ, एक कवि का नया किरदार इस सीजन में जोड़ा गया है, जो थोड़ा बहुत चर्चा के लायक है। मिर्जापुर के इस सीजन में दो क्रेडिट सीन दिए हैं। इस सीजन में एक ट्विस्ट जो देखने लायक है, वो अंत में दिखाया गया, जिसके साथ मिर्जापुर के अगले सीजन का भी हिंट दिया गया है।
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