Vamana Jayanti 2024: वामन द्वादशी व्रत से होती है सभी मनोकामनाएं पूरी

Vamana Dwadashi
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हिंदू धर्म में वामन देव की उपासना का विशेष महत्व है। भगवान वामन श्री हरि के स्वरूप कहे जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधिवत उपासना करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

15 सितम्बर को वामन जयंती है, इसे वामन द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म में वैष्णव लोग वामन द्वादशी श्रद्धापूर्वक मनाते हैं, तो आइए हम आपको वामन द्वादशी व्रत की पूजा विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं। 

जानें वामन द्वादशी के बारे में 

हिंदू धर्म में वामन देव की उपासना का विशेष महत्व है। भगवान वामन श्री हरि के स्वरूप कहे जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधिवत उपासना करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन वामन जयंती पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस साल वामन द्वादशी व्रत यानी 15 सितंबर 2024, रविवार के दिन मनाया जाएगा।

वामन द्वादशी 2024 का शुभ मुहूर्त 

पंडितों के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि का आरंभ 14 सितंबर को रात 08 बजकर 41 मिनट से लेकर अगले दिन 15 सितंबर 2024 को शाम 06 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार, 15 सितंबर को वामन द्वादशी मनाई जाएगी। वहीं, 14 सितंबर को रात 08:32 से लेकर अगले दिन 15 सितंबर को रात 06:49 तक श्रवण नक्षत्र रहेगा।

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जानें भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में 

शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के पुत्र के रूप में अवतार लिया और लोकप्रिय रूप से वामन के रूप में जाने गए। पंडितों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति भगवान वामन की पूजा करता है, तो वह व्यक्ति सभी प्रकार के कष्टों और पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।

वामन द्वादशी पर बन रहे हैं ये शुभ योग

इस बार वामन जयंती के मौके पर सुकर्मा योग शुरू हो रहा है। इस योग को पूजा-पाठ के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। इस दिन सुकर्म योग की शुरुआत 3 बजकर 15 मिनट से शुरू हो रही है। इस समय के बाद से आप नहा-धोकर सच्चे मन से अगर भगवान विष्णु की पूजा करें तो आपको इसका लाभ मिलेगा। इसके अलावा इस दिन अभिजीत मुहूर्त भी लग रहा है।

ये भी एक खास मुहूर्त है। कहा जाता है कि इस मुहूर्त पर अगर दान करें तो इसका भी बहुत लाभ होता है। अभिजीत मुहूर्त की बात करें तो ये सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर 12 बजकर 40 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। वामन जयंती के दिन अगर आप इस दिन दान पूर्ण का काम करते हैं तो निश्चित रूप से इसका लाभ होता है।

वामन द्वादशी पर करें ये अनुष्ठान

वामन द्वादशी के अवसर पर अगर आप अनुष्ठान करना चाहते हैं, तो सबसे सरल और आदर्श तरीका यह है कि इस दिन आप गरीबों को दही, चावल और भोजन दान करें। इसे वामन द्वादशी के दिन लाभकारी माना जाता है। वामन जयंती के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने से वह आपके सारे दु:ख दर्द हर लेते हैं। इस दिन यदि आप विष्णु सहस्रनाम और अन्य विभिन्न मंत्रों का पाठ करते हैं। इस दिन आपको भगवान विष्णु के 108 नामों का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा भगवान विष्णु या वामन देव की मूर्ति या फिर चित्र के सामने अगरबत्ती, दीपक और फूल चढ़ाना चाहिए।

देश भर में वामन द्वादशी व्रत मनाया जाता है धूमधाम से 

वामन द्वादशी व्रत भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो श्रद्धालु इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इस ब्रह्मांड के संरक्षक भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उनके सभी पिछले पापों के लिए क्षमा प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

वामन द्वादशी का महत्व 

हिन्दू धर्म में वामन द्वादशी का खास महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के दिन अगर श्रावण नक्षत्र हो तो इसका महत्व बढ़ जाता है। इस दिन भक्त स्नान कर वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा को की मंत्रोच्चार से पूजा करने पर सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। पंडितों का मानना है कि वामन भगवान ने जैसे राजा बलि के कष्ट दूर किए थे वैसे ही वह भक्तों के कष्टों का भी निवारण करते हैं। 

वामन द्वादशी के दिन ऐसे करें पूजा

पंडितों के अनुसार वामन द्वादशी पर विशेष पूजा करें। स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें। घर के मंदिर में विष्णुजी के वामन स्वरूप की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान वामन की पंचामृत से स्नान कराएं। उन्हें तुलसी का पत्ता अर्पित करें। विष्णुजी को फल,फूल,धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।

वामन द्वादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा भी है खास 

वामन अवतार को विष्णु भगवान का प्रमुख अवतार माना जाता है। श्रीमदभागवत पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है। कथन के अनुसार एक बार देवता तथा दानवों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवता दानवों से पराजित होने लगे। दानव अमरावती पर आक्रमण करने लगे तभी इन्द्र विष्णु के पास जाकर सहायता के लिए याचना करने लगे। तब विष्णु भगवान ने सहायता का वचन दिया और कहा कि वह वामन रूप धारण कर माता अदिति के गर्भ से जन्म लेंगे। दानवों के राजा बलि द्वारा देवताओं की हार से कश्यप जी ने अदिति को पुत्र प्राप्ति के लिए पयोव्रत का अनुष्ठान करने को कहा जाता है। तब भादो महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन भगवान अदिति के गर्भ से अवतार लेते हैं और ब्राह्मण का रूप लेते हैं। 

वामन अवतार और राजा बलि 

महर्षि कश्यप दूसरे कई ऋषियों के साथ मिलकर वामन भगवान का उपनयन संस्कार करते हैं। इस संस्कार में वामन बटुक को पुलह नामक के महर्षि ने यज्ञोपवीत संस्कार कराया। आंगिरस ने वस्त्र, अगस्त्य ने मृगचर्म, सूर्य ने छत्र, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, मरीचि ने पलाश दण्ड, भृगु ने खड़ाऊं, अदिति ने कोपीन, कुबेर ने भिक्षा पात्र तथा सरस्वती ने रुद्राक्ष माला दिए उसके बाद वामन भगवान पिता की आज्ञा लेकर राजा बलि के पास गए। उस समय राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते थे। वामन भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर राजा बलि से भीख मांगने पहुंचें। उस समय वामन अवतार ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने वामन के इस मांग पर सहमति व्यक्त की। इस पर वामन भगवान ने एक पैर से स्वर्ग था दूसरे पैर से पूरी पृथ्वी नाम ली। इसके बाद वह तीसरा पैर रखने के लिए राजा बलि से पूछे। इस पर राजा बलि भगवान का पैर रखने के लिए अपना सर दे देते हैं। राजा बलि के सिर पर पैर रखते हैं ही बलि परलोक चले जाते हैं। विष्णु भगवना प्रसन्न होकर राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना देते हैं। इस तरह देवताओं को स्वर्ग वापस मिल जाता है और वह प्रसन्नता पूर्वक रहने लगते हैं। 

- प्रज्ञा पाण्डेय

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