पैतृक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी कौन? जानें महिला या बेटा का कितना होता अधिकार
वारिस एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे कानूनी रूप से अपने पूर्वजों की संपत्ति विरासत में प्राप्त करने का अधिकार होता है, जो बिना वसीयत छोड़े मर गए- जिन्हें निर्वसीयत के रूप में जाना जाता है। एक वारिस की अवधारणा एक धर्म से दूसरे धर्म में भिन्न होती है।
पैतृक संपत्ति क्या होती है?
हिंदू कानून के तहत एक संपत्ति या तो स्वयं अर्जित होती है या पैतृक संपत्ति होती है। एक संपत्ति जिसे आपने अपने संसाधनों का उपयोग करके अर्जित किया है वह आपकी अपनी स्वयं की अर्जित संपत्ति होती है, वहीँ वो संपत्ति जो आपको अपने परिवार के सदस्यों से विरासत में मिली है वह एक पैतृक संपत्ति होती है। जब कोई पैतृक संपत्ति संयुक्त हिंदू परिवार के सदस्यों में बांट दी जाती है तो वह परिवार के सदस्य के हाथों में स्वयं अर्जित संपत्ति बन जाती है। इसी तरह किसी व्यक्ति के परदादा की स्व-अर्जित और अविभाजित संपत्ति अंततः पैतृक संपत्ति बन जाती है।
पैतृक संपत्ति के कानूनी उत्तराधिकारी कौन होते हैं?
वारिस एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे कानूनी रूप से अपने पूर्वजों की संपत्ति विरासत में प्राप्त करने का अधिकार होता है, जो बिना वसीयत छोड़े मर गए- जिन्हें निर्वसीयत के रूप में जाना जाता है। एक वारिस की अवधारणा एक धर्म से दूसरे धर्म में भिन्न होती है। यही कारण है कि मृत व्यक्ति की संपत्ति में उनके संपत्ति के अधिकार भी उनके धर्म के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।
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उदाहरण के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindus Succession Act- HSA) हिंदुओं, बौद्ध, जैन और सिखों पर लागू होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम भारतीय मुसलमानों और ईसाइयों पर लागू नहीं होता है, क्योंकि उनके पास यह निर्धारित करने के लिए अपना व्यक्तिगत कानून है कि संपत्ति उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को कैसे विरासत में मिलेगी।
पैतृक संपत्ति में बेटी का अधिकार क्या होता है?
पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार में काफी वृद्धि हुई है। परिवर्तन इस हद तक हुआ है कि जब धन की योजना बनाने और उसके प्रबंधन की बात आती है तो भारतीय महिलाएं इसके बारे में काफी मुखर और खुली हो गई हैं। भारतीय उत्तराधिकार कानूनों में विकास इस परिवर्तन के कारणों में से एक है।
पहले, उत्तराधिकार के मामले में हिंदू कानून के तहत महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकार सीमित थे। जहाँ पुत्रों का अपने पिता की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार था, वहीं पुत्री का यह अधिकार केवल तब तक प्राप्त था जब तक कि उनकी शादी नहीं हो जाती। हालाँकि, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 का संशोधन अब बेटियों को वही अधिकार, कर्तव्य और दायित्व प्रदान करता है जो पहले बेटों तक सीमित थे।
पैतृक संपत्ति न होने पर बेटियों के उत्तराधिकार का अधिकार
हिंदू कानून के तहत संपत्ति को पैतृक और स्वयं अर्जित संपत्ति के बीच विभाजित किया गया है। पैतृक संपत्ति वह है जो पुरुष वंश की चार पीढ़ियों तक विरासत में मिली है और इस अवधि के दौरान अविभाजित रही है। जबकि स्व-अर्जित संपत्ति वह है जिसे पिता ने अपने पैसे से खरीदा है।
जब विरासत में मिली संपत्ति पैतृक संपत्ति होती है तो जन्म के समय से ही एक समान हिस्सा होता है, चाहे वह बेटी हो या बेटा। हालाँकि यदि संपत्ति पिता की स्व-अर्जित संपत्ति है तो पिता को ऐसी संपत्ति को किसी भी तरीके से निपटाने का पूरा अधिकार होता है। स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में एक पिता अपने बेटे या बेटियों को संपत्ति नहीं देने का भी फैसला कर सकता है और उसके पास उपहार देने का विकल्प भी होता है।
बिना वसीयत के पिता की मृत्यु होने पर बेटियों के विरासत अधिकार
यदि पिता की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है तो संपत्ति को कानूनी वारिसों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाता है। इसका मतलब है कि पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति दोनों को समान रूप से माता और बच्चों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाता है।
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2005 के संशोधन के बाद पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति पर उत्तराधिकार का अधिकार
जैसा कि ऊपर कहा गया है, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 से पहले पैतृक संपत्ति में केवल बेटों का हिस्सा होता था, लेकिन संशोधन के बाद बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर हिस्सा मिलता है।
जबकि स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में पिता को उपहार देने का अधिकार है या वह अपनी संपत्ति किसी को भी जिसे वह उचित समझे दे सकता है और बेटी इस तरह के हस्तांतरण पर आपत्ति नहीं उठा सकती है। इस प्रकार, यदि संपत्ति पिता की स्व-अर्जित संपत्ति है और उसने अपनी इच्छा से किसी को ऐसी संपत्ति उपहार में दी है या वसीयत की है- बिना किसी जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव, धोखाधड़ी या गलत बयानी के, तो संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता है।
बेटी की शादी होने पर विरासत का अधिकार
2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद बेटी की वैवाहिक स्थिति उसके पिता की पैतृक संपत्ति के वारिस के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकती है। संशोधन के अनुसार, एक बेटी को पैतृक संपत्ति में एक सहदायिक के रूप में मान्यता दी जाती है, यानी पैतृक संपत्ति में उसका जन्म से अधिकार होता है और इस प्रकार एक बेटी का पैतृक संपत्ति में उतना ही हिस्सा होगा जितना कि शादी के बाद भी एक बेटे का होता है।
- जे. पी. शुक्ला
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