आप किसी झूठे सिविल केस में कैसे करें अपना बचाव, जानिए कुछ महत्वपूर्ण बातें

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कमलेश पांडे । Aug 3 2023 5:33PM

हालांकि सिविल कानून पूरी तरह से दस्तावेज पर चलता है। यदि किसी व्यक्ति के पास कोई दस्तावेज है तो ही वह व्यक्ति अदालत के समक्ष कोई मुकदमा ला सकता है, अन्यथा उसका सारा मेहनत बेकार जाएगा। इसके अलावा, उल्टे उसके ऊपर मुकदमा भी चलाया जा सकता है।

भारत में कानून का शासन है। यहां के सभी नियम-कानून भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों एवं कर्तव्यों के साथ-साथ विभिन्न अनुच्छेदों से जुड़े/बंधे हुए हैं। देश के लगभग सभी कानून में जनता/आमलोगों पर सिविल और आपराधिक दो तरह के मुकदमों को दर्ज किया जा सकता है। जहां आपराधिक मामलों में सीधे राज्य/सरकार द्वारा कोई प्रकरण चलाया जा सकता है, वहीं सिविल मामलों में व्यथित व्यक्ति को अपना प्रकरण स्वयं ही चलाना होता है। 

आमतौर पर कई मौके ऐसे भी होते हैं जहां पर कोई व्यक्ति यानी वादी अपने किसी प्रतिद्वंद्वी व्यक्ति पर झूठे आधारों पर कोई सिविल प्रकरण अदालत में दर्ज़ करवा देता है, ताकि प्रतिवादी को परेशान किया जा सके। अमूमन, भारत के कानून में यह कतई ज़रूरी नहीं है कि कोई भी सिविल मुकदमा शुरू से लेकर अंत तक पक्षकारों को लड़ना ही पड़े। चूंकि सिविल मुकदमें काफी जटिल और तार्किक होते हैं। इसलिए इन मुकदमों के निर्णय होते होते वर्षों वर्ष भी लग जाते हैं। फिर ऐसे मुकदमें में जब एक अदालत से निर्णय होते हैं तो हारने वाला पक्ष ऊपर की अदालत में अपील या रिवीजन जो भी स्थिति हो, लगा देता है या लगा देने का अधिकारी होता है, एक निश्चित समय सीमा तक।

ऐसी परिस्थिति में यदि किसी व्यक्ति विशेष पर नाहक़ ही कोई मुकदमा दर्ज करवा दिया जाए तो उसे काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जैसे किसी व्यक्ति के किसी मकान या दुकान पर कोई भी व्यक्ति यह दावा कर दे कि उक्त मकान या दुकान उसके स्वामित्व के हैं और जो व्यक्ति उस मकान या दुकान में क़ाबिज़ है, उसके पास उसका मालिकाना हक नहीं है। तब उस मकान या दुकान के मालिक के लिए परेशानी हो जाएगी। 

हालांकि सिविल कानून पूरी तरह से दस्तावेज पर चलता है। यदि किसी व्यक्ति के पास कोई दस्तावेज है तो ही वह व्यक्ति अदालत के समक्ष कोई मुकदमा ला सकता है, अन्यथा उसका सारा मेहनत बेकार जाएगा। इसके अलावा, उल्टे उसके ऊपर मुकदमा भी चलाया जा सकता है। दरअसल सिविल प्रॉसिजर कोड, 1908 में कुछ ऐसे प्रावधान हैं जो किसी भी झूठे मुकदमे को प्रथम दृष्ट्या ही खारिज़ करने की शक्ति अदालत को देते हैं। 

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ऐसे में यदि अदालत को यह लगता है कि मुकदमें में योग्य दस्तावेज नहीं हैं और क्षेत्राधिकार में प्रस्तुत नहीं किया गया है एवं समयावधि में प्रस्तुत नहीं किया गया है या फिर कोर्ट फीस सही अदा नहीं की गई है तब अदालत प्रथम दृष्ट्या ऐसे मुकदमें खारिज़ कर देती है।

# सिविल प्रॉसिजर कोड, 1908 के प्रावधान

सीपीसी के ऑर्डर 7 रूल 11 में ऐसे प्रावधान है जो किसी भी झूठे और तथ्यहीन मुकदमें को पहली नज़र में ही सीधे खारिज़ कर सकती है। इसके लिए संपूर्ण ट्रायल की कोई आवश्यकता नहीं होती है। अर्थात ऐसे प्रकरणों में कोई दस्तावेज एग्जीबिट या गवाहों के कथन इत्यादि कोई कार्य नहीं होता है एवं प्रकरण को सीधे खारिज़ कर दिया जाता है।

वहीं, आदेश 7 नियम 11 का आवेदन प्रतिवादी के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यहां प्रतिवादी वह होता है जिसके विरुद्ध अदालत में मुकदमा लगाया गया है। प्रतिवादी अदालत के समक्ष ऐसा आवेदन लगाता है कि उसके विरुद्ध जो मुकदमा दर्ज किया गया है, वह फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर दर्ज़ किया गया है एवं प्रकरण में आधारहीन तथ्य हैं, जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।

हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि अदालत ऐसे आवेदन को सुनकर सभी सिविल मुकदमें सीधे ही खारिज़ कर देती है। यदि किसी केस में ऐसी परिस्थिति होती है कि तथ्य विद्यमान हैं, तब अदालत प्रकरण को पूरा सुनती है। यदि अदालत को लगता है कि कोई तथ्य नहीं है और दस्तावेजों में कोई सत्यता प्रतीत नहीं हो रही है, तब अदालत आदेश 7 नियम 11 के अंतर्गत दिए गए आवेदन को स्वीकार करते हुए मुकदमें को पहली सीढ़ी पर ही खारिज़ कर देती है।

दरअसल, सीपीसी में यह प्रावधान इसलिए किया गया है कि किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई नाहक़ मुकदमा अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सके। कोई भी मुकदमा योग्य एवं मज़बूत दस्तावेजों के आधार पर प्रस्तुत किया जाए, जिनमें कहीं न कहीं कोई सत्यता हो।

यहां पर एक बात ध्यान रखने योग्य है कि अदालत के समक्ष ऐसा आवेदन वाद विषय तय होने के पहले दाख़िल किया जाना चाहिए। यदि अदालत वाद विषय तय कर देती है तब ऐसे आवेदन का कोई महत्व नहीं रह जाता है।

इससे स्पष्ट होता है कि भारत में जो कोई भी धोखे से, बेईमानी से, किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने या परेशान करने के इरादे से न्यायालय में यदि कोई दावा करता है, जिसे वह जानता है कि वह झूठा है, उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जा सकता है, जो दो वर्ष तक का हो सकता है और साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। क्योंकि भारत में लागू कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति के खिलाफ झूठे आरोप लगाना दंडनीय अपराध माना जाता है। 

# दंड प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय दंड संहिता 1860 के प्रावधान

ऐसे प्रकरणों में उच्च न्यायालय के पास आपके खिलाफ दायर एक झूठी शिकायत को रद्द करने का अधिकार है, इसलिए आप ऐसा करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर सकते हैं।

आप भारतीय दंड संहिता, 1860 के विभिन्न प्रावधानों के तहत शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक आरोप भी दर्ज कर सकते हैं, जिसमें नुकसान पहुंचाने के इरादे से झूठी सूचना (धारा 182 आईपीसी), झूठे सबूत (धारा 193 आईपीसी), नुकसान पहुंचाने के इरादे से अपराध के झूठे आरोप शामिल हैं। 

इतना ही नहीं, आप पुलिस के खिलाफ भी आरोप भी दायर कर सकते हैं, यदि उन्होंने आपको नुकसान पहुंचाने के इरादे से किसी कानून की अवहेलना की है (धारा 166 आईपीसी), या यदि उन्होंने नुकसान पहुंचाने के लिए जानबूझकर झूठे दस्तावेज तैयार किए हैं या हस्ताक्षर किए हैं (धारा 167 आईपीसी)। इसके अतिरिक्त, आप दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 250 के तहत शिकायतकर्ता से मुआवजे के लिए भी आवेदन कर सकते हैं, यदि आप अपने खिलाफ दायर आरोपों से बरी हो जाते हैं तो।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि झूठे आरोप किसी व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर सकते हैं। वहीं, आपराधिक और नागरिक कार्यवाही में इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। दुर्भाग्यवश तलाक और बाल हिरासत के मामलों में अक्सर झूठे आरोप लगते रहते हैं। ऐसे आरोपों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और मारपीट आदि भी शामिल हो सकते हैं। हममें से बहुत से लोग यह मानते आये हैं कि अदालत प्रणाली के माध्यम से हमेशा सच्चाई की जीत होती है। इसलिए यदि आप पर भी किसी कानूनी मामले में झूठा आरोप लगाया गया है तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या कदम उठाए जाएं। आप बिलकुल घबराएं नहीं और यह समझने की चेष्टा करें कि ऐसी स्थिति में क्या करें?

यदि आप पर किसी अपराध का झूठा आरोप लगाया गया है तो यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि आप बिल्कुल शांत रहें और सावधानी से सोचें कि आप इस मामले में कैसे प्रतिक्रिया कर सकते हैं। आप यानी बचाव पक्ष अपने वकील के बिना प्रश्नों का उत्तर न दें या पुलिस से बात न करें। हालांकि पुलिस से बात करने से पहले आपको अपने वकील की प्रतीक्षा करना सबसे अच्छा निर्णय है। पुलिस अधिकारियों को संदिग्धों से स्वीकारोक्ति, यहां तक कि झूठे बयान भी निकालने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। ऐसे में वे आपके वकील के बिना उनसे बात न करने के आपके कानूनी अधिकार को छोड़ने के लिए आप पर दबाव डालने का भी प्रयास करेंगे। ये दोनों बातें सच हैं, भले ही आपको झूठे आरोप के कारण गिरफ्तार किया गया हो। लेकिन आप दृढ़ रहें और पुलिस को बता दें कि आप अपने वकील की मौजूदगी के बिना उनसे कोई बात नहीं करेंगे। ऐसा करने से आपके कानूनी बचाव में काफी मदद मिलेगी।

वहीं, अपनी मदद के लिए एक अच्छे वकील की सेवा लें।

चाहे आप एक आपराधिक आरोप या एक सिविल/नागरिक मामले से संबंधित झूठे आरोपों का सामना कर रहे हों, एक वकील से परामर्श करना सबसे अच्छा और महत्वपूर्ण होता  है जो आप खुद को बचाने के लिए कर सकते हैं। क्योंकि झूठे आरोपों का सामना करते समय एक वकील को किराए पर लेना संभवतः सबसे महत्वपूर्ण कदम है। हालाँकि आप इसे अकेले करने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन यह काफी आसान होगा, जब आपके पास एक अनुभवी वकील आपकी वकालत करेगा। सबसे पहले आपका वकील उस अपराध के कानूनों को समझने में आपकी मदद करने में सक्षम होगा, जिस पर आप पर झूठा आरोप लगाया गया है। वे आपके विरुद्ध झूठे आरोप के संबंध में उचित कानूनों की व्याख्या भी करेंगे।

वहीं, एक वकील से परामर्श करने के बाद आप अपने मामले का समर्थन करने वाले सबूत इकट्ठा करने के लिए अपने वकील के साथ काम करना शुरू कर सकते हैं। यदि आप विवादास्पद तलाक या बाल हिरासत मामले से गुजर रहे हैं तो आपको हमेशा सावधानी पूर्वक अपना रिकॉर्ड रखना चाहिए। ऐसा करना महत्वपूर्ण है क्योंकि आपको यह साबित करना होगा कि आपने क्या कहा और आपने कैसे कार्य किया। आपको अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अदालत में सबूत पेश करने होंगे और यह साबित करना होगा कि आपके खिलाफ जो झूठा आरोप लगाया गया है, वह उस तरह से कभी नहीं हुआ, जिस तरह से उसे पेश किया जा रहा है।

वहीं, अभियोक्ता की विश्वसनीयता को भी आप चुनौती दें।

अपने वकील से मिलने के बाद आप और आपका वकील आपके खिलाफ झूठे आरोपों का मुकाबला करने की रणनीति विकसित करना शुरू कर देंगे। रणनीति कई अलग-अलग कारकों पर निर्भर करेगी, जिसमें झूठे आरोपों का प्रकार और चाहे आप दीवानी या फौजदारी अदालत में हों। हालाँकि सभी विभिन्न प्रकार के मामलों में एक प्रभावी रणनीति में गवाह की विश्वसनीयता को चुनौती देना शामिल है। अगर किसी ने आप पर गलत काम करने का आरोप लगाया है तो आपका वकील शपथ के तहत उन्हें स्टैंड पर रख सकता है।

वहीं, अपने स्वयं के गवाह खोजें और प्रमाण प्रस्तुत करें।

उस व्यक्ति या लोगों को चुनौती देने के अलावा, जिन्होंने आप पर झूठा आरोप लगाया है, उनके खिलाफ आपको अपने खुद के गवाह भी ढूंढने चाहिए। जिस तरह एक अभियुक्त आपके खिलाफ गवाहों का उपयोग कर सकता है, उसी तरह से आपको भी ऐसे गवाहों का उपयोग करने का अधिकार है, जो आपकी बेगुनाही या किसी अन्य व्यक्ति के दुराचार को प्रमाणित कर सकते हैं। इसलिए आप अपनी बेगुनाही साबित करने वाले सबूतों को जुटाएं। वहीं, आपके खिलाफ आरोपों को संबोधित करने वाले वीडियो, टेक्स्ट या ईमेल साक्ष्य भी खोजने में सक्षम हो सकते हैं। इन सभी मामलों में आपका वकील गवाहों को गवाही देने के लिए बुला सकता है कि आपने वह नहीं किया, जो आप पर करने का झूठा आरोप लगाया गया है।

- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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