आत्मनिर्भर भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर को विश्वस्तरीय बनाने की जद्दोजहद आखिर कब तक ?
आत्मनिर्भर भारत की भव्य इमारत के दूसरे प्रमुख आधार स्तंभ इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का जो पूरा खाका मोदी सरकार के मातहत तैयार हो चुका है, उसके अमल में कोई बड़ी बाधा नहीं आई तो सम्पूर्ण भारत का कायाकल्प होना तय है।
देश के समग्र आर्थिक विकास के लिए लगभग अट्ठाइस वर्ष पहले लागू की गई नई आर्थिक नीति के अनुपालन के प्रति हमारा विगत नेतृत्व इतना लापरवाह निकला कि विश्व के इंफ्रास्ट्रक्चर क़्वालिटी सूचकांक में भारत 70वें पायदान से ऊपर नहीं चढ़ पाया, जबकि दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में उसका नाम शुमार किया जाता है। लिहाजा, स्वाभाविक सवाल है कि इस नीतिगत बदहाली के लिए किसी न किसी रूप में हमारा पिछला सुस्त नेतृत्व और जनतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था के तहत आंख, कान, नाक बनकर उनको सलाह देने वाली व मिले निर्देशों का अनुपालन करने वाली संस्थाएं ही ज्यादा जिम्मेदार प्रतीत होती हैं। वो तो गनीमत है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने ऐसी नीतिगत बदहाली पर विलम्ब से ही सही, पर सटीक संज्ञान लिया है और अपनी भावी रणनीति की रुपरेखा भी स्पष्ट कर दी है, अन्यथा दुनियावी रेस में भारत तब तक पिछड़ा रह जाता जब तक कि इन मौलिक बातों को समझने-समझाने वाला कोई दूरदर्शी नेतृत्व नहीं मिल जाता।
महज 140 देशों की इंफ्रास्ट्रक्चर रैंकिंग में भारत के 70वें पायदान पर खड़े होने की बात भले ही किसी के गले नहीं उतर रही है, लेकिन नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन की रिपोर्ट में इसी बात का खुलासा हुआ है, जो कि जनचर्चा का विषय बन चुकी है। यह बात लोगों को इसलिए भी रास आ गई, क्योंकि वह भुक्तभोगी भी हैं। दरअसल, हाल ही में एनआईपी की जो रिपोर्ट वित्त मंत्रालय को सौंपी गई है, वह चौंकाने वाली इसलिये है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्सेस यानी बिजली मिलने की रैंकिंग में अपना वतन 105 स्थान तक लुढ़क चुका है और बिजली की क्वालिटी में उसकी रैंकिंग 108 पर है। यह कितनी शर्मनाक बात है कि अंतरिक्ष गामी भारत की रैंकिंग असुरक्षित पेयजल के मामले में 106 पर पहुंच चुकी है। सिर्फ ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर में भारत की रैंकिंग 28 है, जिससे कुछ सुकून मिला है। सवाल है कि सामाजिक न्याय और विकास का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारों ने वास्तविक मोर्चे पर कितना फूहड़ प्रदर्शन किया है कि जनसंख्या के मामले में दूसरा स्थान और अर्थव्यवस्था के मामले में पांचवां स्थान रखने वाला भारत मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता के मामले में कहीं 28, कहीं 70 तो कहीं 105 और उससे भी आगे के क्रम में खड़ा है, जो अपने आप पर हंस रहा है।
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इस बात में कोई दो राय नहीं कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसा होना चाहिए, जो कि आधुनिक भारत की पहचान बन सके। वह इसलिए भी कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए देश में विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर होना लाजिमी है, लेकिन धरातल की कहानी कुछ और ही हकीकत बयां कर रही है। बहरहाल, पीएम मोदी ने सिस्टम द्वारा छोड़ी गई इन कमियों को दूर करने का निश्चय किया है और उनकी सरकार ने यह रूपरेखा भी तय कर लिया है कि अगले 5 साल में भारत को इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में अव्वल बना दिया जाएगा, ताकि फिर किसी को यह सोच कर शर्मिंदा न होना पड़े। बताया जाता है कि सरकार इस मद में 111.30 लाख करोड़ रुपये अगले 5 वर्ष यानी कि 2020-25 तक खर्च करेगी।
एक सरकारी आकलन के मुताबिक, सबसे अधिक धनराशि ऊर्जा के क्षेत्र में खर्च की जाएगी जो कि 24 फीसद तक होगा। वहीं सड़क निर्माण व मरम्मत पर 18 फीसद, शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर के उन्नयन पर 17 फीसद और रेलवे के आधारभूत ढांचे के विकास पर 12 फीसद धनराशि खर्च की जाएगी। यहां पर यह स्पष्ट कर दें कि ऊर्जा क्षेत्र में बिजली, रिन्युएबल परमाणु ऊर्जा और पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस भी शामिल किये गए हैं, जिन पर अगले 5 साल में कुल 26,90,003 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। जबकि सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर पर 2,033,823 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना है। वहीं, रेलवे पर 1,367,563 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसके अलावा, पोर्ट पर 121,194 करोड़ रुपए खर्च होंगे। जबकि एयरपोर्ट पर 143,448 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। वहीं, शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर 19,19,267 करोड़ रुपए खर्च होंगे। बता दें कि शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर में स्मार्ट सिटी, एमआरटीएस, सस्ते मकान, जलजीवन मिशन जैसी योजनाएं शामिल की जा चुकी हैं।
इसके अलावा, सरकार द्वारा डिजिटल कम्युनिकेशन पर अगले 5 साल में 309,672 करोड़ रुपए खर्च किये जायेंगे। जबकि सिंचाई सुविधा के विकास के नाम पर 894,473 करोड़ रुपए खर्च किये जाने का प्रावधान किया गया है। वहीं, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, जिसमें गांव में पानी व सफाई जैसी मूलभूत सुविधाओं को भी शामिल किया गया है, पर 773,915 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। वहीं, एग्रो व फूड प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर 5 साल में कुल 168,727 करोड़ रुपये खर्च होंगे। जबकि, सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर कुल 393,386 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है। यहां स्पष्ट कर दें कि सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर के तहत उच्च शिक्षा, स्कूल शिक्षा, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण, खेलकूद व पर्यटन जैसे क्षेत्र शामिल किये गए हैं। वहीं, इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर पर कुल 314,957 करोड़ रुपये खर्च होंगे। साथ ही, इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर में इंडस्ट्रीज व आंतरिक व्यापार के साथ स्टील को शामिल किया गया है।
इस प्रकार यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि आत्मनिर्भर भारत की भव्य इमारत के दूसरे प्रमुख आधार स्तंभ इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का जो पूरा खाका मोदी सरकार के मातहत तैयार हो चुका है, उसके अमल में कोई बड़ी बाधा नहीं आई तो सम्पूर्ण भारत का कायाकल्प होना तय है। इसके तहत वर्ष 2020-25 के बीच भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर जो 111.30 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे, उसका असर जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की के रूप में दिखाई देगा। खास बात यह कि इनमें सबसे अधिक 24 फीसद राशि ऊर्जा क्षेत्र पर खर्च होगी, जिसके बिना आधुनिक विकास की परिकल्पना ही व्यर्थ है। पीएम मोदी की दूरदर्शी टीम ने आत्मनिर्भर भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में सोशल व डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को भी जो तरजीह दी है, उसका सकारात्मक असर भी समाज पर बहुत जल्द दिखाई पड़ेगा।
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ज्यादा दिन नहीं हुए, बस पिछले सप्ताह ही पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि आत्मनिर्भर भारत की भव्य इमारत जिन पांच मुख्य आधार स्तंभों पर खड़ी होगी, उसमें पहला स्तंभ इकोनामी, दूसरा स्तंभ इंफ्रास्ट्रक्चर, तीसरा स्तंभ सिस्टम, चौथा स्तम्भ डेमोग्राफी और पांचवां स्तंभ डिमांड होगा। तब उन्होंने इस बात के स्पष्ट संकेत दिए थे कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसा हो जो आधुनिक भारत की पहचान बन सके और विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सक्षम हो। इसके लिए देश में विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर होना अत्यंत आवश्यक है और सबको इसकी अहम जरूरत है। इसके पीछे मूल वजह यही है कि अभी इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े कई क्षेत्रों में भारत की रैंकिंग काफी नीचे है, जिसे ऊपर लाने के लिए सरकार ने अपनी कमर कस ली है। बस हम सबको भी उसके साथ कदमताल भरते हुए अपने राष्ट्र को विश्वस्तरीय विभिन्न मानदंडों में अव्वल बनाना है। इस दिशा में कुछ कमी रह भी जाये तो प्रथम पांच में हमारा स्थान कायम रहे, इस लिहाज से भी सतत सक्रिय और जागरूक बने रहना है। कर्म हमारे वश में है, इसलिए फल की चिंता किये बगैर हमें कर्मरत रहना होगा।
-कमलेश पांडेय
(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)
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