क्या इरडा बीमा कंपनियों की नकेल कस सकेगा?

2023-24 में बीमा कंपनियों ने कुल 83 फीसदी दावों का निपटान किया और 11 फीसदी खारिज कर दिया। छह फीसदी दावे 31 मार्च, 2024 तक लंबित रहे। इस अवधि में सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने कुल 2.69 करोड़ स्वास्थ्य दावों का निपटान कर 83,493 करोड़ रुपये का भुगतान किया।
बीमा कंपनियों के बारे में हाल ही में इरडा (भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण) ने एक रिपोर्ट जारी की है कि बीमा कंपनियां बीमा खरीदार द्वारा किए 100 रूपये के भुगतान पर 86 रूपये ही क्लेम देती हैं। इस रिपोर्ट में और भी बहुत कुछ है किंतु इरडा ने यह नहीं बताया कि कम भुगतान करने वाली कंपनियों पर इरडा क्या कार्रवाई कर रही है? कितने मामलों में उसने पूरा भुगतान कराया? इस व्यवस्था में सुधार के लिए उसके द्वारा किए गए निर्णय क्या हैं? बिल प्राप्त हो जाने के बाद बिलों भुगतान क्यों नहीं हो रहा? भुगतान में विंलब की अवधि का उपभोक्ता को सूद क्यों नहीं दिलाया जा रहा?
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि सामान्य, स्वास्थ्य और सरकारी बीमा कंपनियां 100 रुपये का प्रीमियम लेकर सिर्फ 86 रुपये ही क्लेम देती हैं। कुछ बीमा कंपनियां तो 100 रुपये के एवज में 56 रुपये ही क्लेम दे रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023-24 में सामान्य बीमा कंपनियों ने पॉलिसीधारकों को दावे के एवज में 76,160 करोड़ रुपये का भुगतान किया। यह 2022-23 की तुलना में 18 फीसदी अधिक है।
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2023-24 में बीमा कंपनियों ने कुल 83 फीसदी दावों का निपटान किया और 11 फीसदी खारिज कर दिया। छह फीसदी दावे 31 मार्च, 2024 तक लंबित रहे। इस अवधि में सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने कुल 2.69 करोड़ स्वास्थ्य दावों का निपटान कर 83,493 करोड़ रुपये का भुगतान किया। प्रति क्लेम औसत रकम 31,086 रुपये रही। विश्लेषकों का कहना है कि प्रीमियम लेने और दावों के निपटान में क्रमशः 100 फीसदी और 80 फीसदी का औसत ठीक-ठाक है।
कुल दावों में से 72 फीसदी थर्ड पार्टी (टीपीए) ने निपटाए। बाकी 28 फीसदी दावों का निपटान कंपनियों ने अपने तरीके से किया। 66.16 फीसदी दावे कैशलेस तरीके से निपटाए गए, जबकि 39 फीसदी में रिइंबर्समेंट मिला।
सरकारी कंपनियों का क्लेम 100 रुपये के प्रीमियम के एवज में 90 रुपये से अधिक रहा है। नेशनल इंश्योरेंस ने 100 रुपये प्रीमियम लेकर 90.83 रुपये क्लेम दिया है। न्यू इंडिया ने 105.87 रुपये, ओरिएंटल ने 101.96 रुपये और यूनाइटेड इंडिया ने 109 रुपये क्लेम दिया है। सभी सरकारी बीमा कंपनियों का क्लेम औसत 103 रुपये रहा है।
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि सामान्य, स्वास्थ्य और सरकारी बीमा कंपनियां 100 रुपये का प्रीमियम लेकर सिर्फ 86 रुपये ही क्लेम देती हैं। ये इरडा की रिपोर्ट है, जबकि सच्चाई कुछ और है। आप क्लेम मांग कर देखिए, ये कंपनियां कितना परेशान करती हैं। उपभोक्ता के बिल में मनमर्जी की कटौती तो आम बात है। इरडा जो बीमा कंपनियों पर नियंत्रण करती है। उनकी गतिविधियों पर रोक लगाती है। उसका कार्य है कि बीमा कंपनियों द्वारा अवैघ रूप से रोके गए भुगतान दिलाए। उसके नियंत्रण के बावजूद क्यों नहीं बीमा कंपनियों पर सही से नियत्रंण नही हो रहा। इरडा ने कहा कि बीमा कंपनियां 100 रूपये के प्रीमियम पर 86 रूपया ही क्लेम दे रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि है। कुछ बीमा कंपनियां तो 100 रुपये के एवज में 56 रुपये ही क्लेम दे रही हैं। इरडा ने ये रिपोर्ट तो जारी कर दी किंतु यह नहीं बताया कि प्रीमियम की एवज में कम भुगतान करने वाली बीमा कंपनियों के विरूद्ध वह क्या कार्रवाई कर रहा है? वह ऐसा कर कर रहा है कि बीमा कंपनियां पूरा भुगतान दें। उसे इस रिपोर्ट पर उठाए गए कदम और आदेश भी बताने चाहिए थे।
दरअसल बीमा कंपनियों की भुगतन में मनमर्जी चलती है। बीमा कराने वाले की कोई नहीं सुनता। मेरा ओरिंयटल इंशोरेंस कंपनी का दस लाख का मेडिक्लेम है। दस साल से पुरानी पोलिसी है। पहले यह बीमा पांच लाख रूपये का था। लगभग छह साल पहले मैंने इसे बढ़ाकर दस लाख का करा लिया। दस लाख में मैं और मेरी पत्नी दोनों कवर है। मैंने लगभग चार साल पहले अपनी पत्नी की आंख का मोतियाबिंद का आपरेशन देहरादून के अमृतसर आई क्लीनिक में कराया। कंपनी का कहना है कि मोतियाबिंद के आपरेशन में हम चालीस हजार रूपये का भुगतान करेंगे। आपने खर्च कितना ही किया हो, हमें इससे कुछ नहीं लेना। मैंने दोनों आखों के आपरेशन का 40−40 हजार रूपये का बिल कंपनी को भेजा। पहले आपरेशन का इन्होंने अपनी मनमर्जी से 22 हजार का भुगतान किया। दूसरी आंख का चालीस हजार रूपये का भुगतान दिया। मैंने लिखा पढ़ी की तो उत्तर आया कि हम कर सकते हैं। हमने कर दिया। काफी लिखा पढ़ी करने और धमकाने पर काफी समय बाद बचे 18 हजार रूपये भुगतान किया। इसके बाद मैंने घुटनों का ट्रांसप्लांट कराया। पहले घुटने का बिल भेजा। दो लाख 38 हजार का। इन्होंने भुगतान किया दो लाख 36 हजार का। दूसरे घुटने के आपरेशन का बिल बना दो लाख 42 हजार। इन्होंने इस भुगतान किया दो लाख 38 हजार। यह ठीक था। इतनी कटौती हो सकती है। इस पर किसी भी उपभोक्ता को आपत्ति नहीं होगी।
पिछले साल मैं छोटे बेटे के पास राजकोट में था। वहां मुझे बाईपास सर्जरी करानी पड़ी। इस सर्जरी का खर्च में इन्होंने करीब 70 हजार की कटौती की। इसमें 55 हजार के आसपास आपरेशन के दौरान अस्पताल द्वारा मुझे खिलाए भोजन के साथ ही आपरेशन में प्रयुक्त हुए सामान निडिल, ग्लोबज और सिरेंज आदि के व्यय की की गई। अब को इनसे पूछने वाला नही कि आपरेशन के दौरान अस्पताल में रहने के दौरान क्या मरीज भोजन नहीं करेगा? क्या बिना भोजन किए आठ दिन रहा जा सकता है? इंजेक्शन सिरेंज, निडील, ग्लोबस आदि के बिना आपरेशन हो सकता है, किंतु कोई सुनने वाला नहीं। ये मेरा ही नहीं औरों का भी ये ही किस्सा है। उन्होंने भी कहा कि उनके भी आपरेशन में प्रयोग हुईं निडिल सिरेंज ग्लोबस के भुगतान में मनमर्जी है। किसी केस में भुगतान कर देते हैं किसी में नहीं। ये समझ नहीं आता कि भुगतान में बीमा कंपनियों मनमर्जी क्यों करती हैं? इरडा को स्पष्ट आदेश करना चाहिए कि वे क्या भुगतान करेंगी क्या नहीं। ये ही आदेश वाहनों के बारे में होना चाहिए।
इरडा ने पीछे आदेश किया कि अप्रैल 2024 से सभी अस्पताल में कैशलेश की सुविधा मिलेगी, किंतु सभी कंपनी ऐसा नहीं कर रही। एक बात और अप्रैल 2024 से पहले अस्पताल को कैशलैश के पैनल में शामिल करने में भी बड़ा खेला है। प्राइवेट कंपनियां तो केशलैश के पैनल में अस्पताल को शामिल करने में बहुत उदार हैं, किंतु सरकारी कंपनी नहीं। पत्नी की आखों का मोतियांबिंद का आपरेशन देहरादून के प्रसिद्ध 25 साल से ज्यादा पुराने अस्पताल अमृतसर आई क्लीनिक में कराया। इतना पुराना ये अस्पताल ओरियंटल इंशोरेंस कंपनी के पैनल में नहीं था। गुजराज का स्टर्लिंग अस्पताल वहां का बड़ा और 25 साल पुराना अस्पताल है। इसकी गुजरात में कई ब्रांच है। यह भी इस कंपनी के पैनल में नहीं है। छोटे शहरों के अस्पताल की तो बात ही क्या की जाएं। पिछले अप्रैल से इरडा ने आदेश किया है कि पैनल में न होने वाले अस्पतालों में भी कैशलैश की सुविधा मिलेगी, किंतु अब भी इन कंपनी की मनमर्जी चल रही है। सभी को कैशलैश की सुविधा नहीं मिल रही। मजबूरन लोगों को अस्पताल को पहले खुद भुगतान करना पड़ता है, बाद में बीमा कंपनी भुगतान करती हैं, वह भी मनमर्जी से। इस भुगतान में भी कई–कई माह लगा देती हैं। इरडा को चाहिए कि बीमा कंपनियों को यह भी आदेश करें कि बीमा कंपनियां बिल प्राप्त होने के बाद 15 दिन में बिल की राशि का भुगतान करें। भुगतान में विलंब होने पर बाजार दर से उपभोक्ता को उसके बिल की राशि पर सूद दें।
अशोक मधुप
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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